संदेश

ओबामा और इस्राइल की गुंडागर्दी

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आखिरकार मुझे ब्लॉग की दुनिया में फिर से लौटने का मौका मिल ही गया। नए साल की शुरुआत जिस उथल-पुथल भऱे माहौल में हुई थी, उससे तो लग रहा था कि इसके लिए समय निकालने के दिन गए। लेकिन अब समय मिला तो फिर हाजिर हूं कि – मैं गया हुआ वक्त नहीं हूं जो लौटकर न आऊंगा...मैं जरूर आऊंगा और बार-बार आऊंगा। इतने दिनों की गैरमौजूदगी के लिए माफी चाहता हूं - यूसुफ किरमानी अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बरॉक ओबामा से फिलहाल आम अमेरिकी का मोह भंग नहीं हुआ है लेकिन अमेरिकी विश्लेषकों ने दबी जबान से यह कहना शुरू कर दिया है कि जॉर्ज डब्लू बुश की विदेश और सामरिक नीतियों से जो अमेरिका गर्त में जा चुका है, कमोबेश ओबामा भी उसी पर चलने वाले हैं। क्योंकि ओबामा के एक्शन यही बता रहे हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत है इस्राइल का गाजा पट्टी पर हमला और बेगुनाहों का नरसंहार। ओबामा ने एक लफ्ज भी इस्राइल की गुंडागर्दी के खिलाफ नहीं बोला। ओबामा ने शायद उन 87 मासूमों की लाशों को देखा होगा, जिन्हें इस्राइल ने एक मिसाइल गिराकर मार डाला। इस्राइल ने यह हमला यह कहकर किया है कि फिलिस्तीन की सत्तासीन सरकार हमास लगातार इस्राइल के कुछ इलाक

2009 मैं तुम्हारा स्वागत क्यों करूं?

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एक रस्म हो गई है जब बीते हुए साल को लोग विदा करते हैं और नए साल का स्वागत करते हैं। इसके नाम पर पूरी दुनिया में कई अरब रूपये बहा दिए जाते हैं। आज जो हालात हैं, पूरी दुनिया में बेचैनी है। कुछ देश अपनी दादागीरी दिखा रहे हैं। यह सारा आडंबर और बाजारवाद भी उन्हीं की देन है। इसलिए मैं तो नए साल का स्वागत क्यों करूं? अगर पहले से कुछ मालूम हो कि इस साल कोई बेगुनाह नहीं मारा जाएगा, कोई देश रौंदा नहीं जाएगा, किसी देश पर आतंकवादी हमले नहीं होंगे, कहीं नौकरियों का संकट नहीं होगा, कहीं लोग भूख से नहीं मरेंगे, तब तो नववर्ष का स्वागत करने का कुछ मतलब भी है। हालांकि मैं जानता हूं कि यह परंपरा से हटकर है और लोग बुरा भी मानेंगे लेकिन मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता? इसलिए माफी समेत... अलविदा 2008, इस साल तुमने बहुत कष्ट दिए। तुम अब जबकि इतिहास का हिस्सा बनने जा रहे हो, बताओ तो सही, तुम इतने निष्ठुर हर इंसान के लिए क्यों साबित हुए। तुम्हें कम से कम मैं तो खुश होकर विदा नहीं करना चाहता। जाओ और दूर हो जाओ मेरी नजरों से। तुमने ऐसा कुछ भी नहीं किया कि तुम्हें उल्लासपूर्वक विदा करूं और तुम्हारे ही साथी २००९ का स्व

आइए, एक जेहाद जेहादियों के खिलाफ भी करें

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मेरा यह लेख नवभारत टाइम्स, दिल्ली में 27-12-2008 को संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ है। इस ब्लॉग के पाठकों और मित्रों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं। उम्मीद है कि मेरा संदेश जहां पहुंचना चाहिए, पहुंचेगा।...यूसुफ किरमानी इन दिनों तमाम इस्लामिक मुद्दों पर बहस खड़ी हो रही है, लेकिन उतने ही मुखर ढंग से कोई उन बातों और आयतों को समझने-समझाने की कोशिश करता नज़र नहीं आता, जो हमारे मजहब में जिहाद के बारे में लिखी और कही गई हैं। जिहाद का अर्थ है इस्लाम के लिए आर्थिक और शारीरिक रूप से कुर्बानी देना। जब कोई यह कहता है कि जिहाद का मतलब अन्य मतावलंबियों, इस्लाम के विरोधियों या दुश्मनों की हत्या करना है, तो वह सही नहीं है। दरअसल, इस्लामिक मूल्यों और शिक्षा का प्रचार जिहाद है, न कि हिंसा। जिहाद हमें यह बताता है कि कोई इंसान कैसे अपनी इच्छाओं को अल्लाह के आदेश के तहत रखे और किसी तानाशाह के भी सामने निडरता से सच बात कहे। जिहाद शब्द दरअसल 'जाहद' से बना है, जिसका अर्थ है कोशिश करना, कड़ी मेहनत करना। इसकी एक मीमांसा यह भी है कि इस्लाम की रक्षा के लिए न सिर्फ अपने परिवार या रिश्तेदारों, बल्कि अपने देश को

इन साजिशों को समझने का वक्त

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नीचे वाले मेरे लेख पर आप सभी लोगों की टिप्पणियों के लिए पहले तो धन्यवाद स्वीकार करें। देश में जो माहौल बन रहा है, उनके मद्देनजर आप सभी की टिप्पणियां सटीक हैं। मेरे इस लेख का मकसद कतई या नहीं है कि अगर पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत युद्ध छेड़ता है तो उसका विरोध किया जाए। महज विरोध के लिए विरोध करना सही नहीं है। सत्ता प्रमुख जो भी फैसला लेंगे, देश की जनता भला उससे अलग हटकर क्यों चलेगी। कुल मुद्दा यह है कि युद्ध से पहले जिस तरह की रणनीति किसी देश को अपनानी चाहिए, क्या मनमोहन सिंह की सरकार अपना रही है। मेरा अपना नजरिया यह है कि मौजूदा सरकार की रणनीति बिल्कुल सही है। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पर भारत पूरी तरह बेनकाब कर चुका है। करगिल युद्ध के समय भारत से यही गलती हुई थी कि वह पाकिस्तान के खिलाफ माहौल नहीं बना सका था। उस समय पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ सत्ता हथियाने की साजिश रच रहे थे और उन्होंने सत्ता हथियाने के लिए पहले करगिल की चोटियों पर घुसपैठिए भेजकर कब्जा कराया और फिर युद्ध छेड़ दिया। फिर अचानक पाकिस्तान की हुकूमत पर कब्जा कर लिया। उन दिनों को याद करें तो इस साजिश में