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एक ख्वाब ले आया मुझे भारत की दहलीज पर

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आखिर अमेरिका के लोग क्यों नहीं चाहते हैं ईरान पर हमला

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हालांकि ओबामा सरकार इस जनमत के खिलाफ है विदेशी पत्रिकाओं और आनलाइन साइटों के राजनीतिक लेखों पर भारतीय नाममात्र को टिप्पणी करते मिलेंगे। यदा-कदा कोई दक्षिण भारतीय नाम ही देखने को मिलता है। उत्तर भारत के लोगों के नाम तो तलाशने पर भी नहीं मिलते। इधर जब से ईरान ( Iran )को अमेरिका ( US ) और इस्राइल ( Israel ) चौतरफा घेर रहे हैं ( Operation Infinite Justice ), तमाम विदेशी अखबारों, पत्रिकाओं और आनलाइन साइटों पर ईरान विरोधी लेखों की बाढ़ आ गई है। इन लेखों का मकसद है कि ईरान को लेकर हर तरह की दहशत फैलाई जाए। (Anglo-American aggression) अमेरिका जैसा देश ऐसे मामलों में किस तरह मीडिया का इस्तेमाल करता है, यह इसका जीता जागता सबूत है। कुछ लेखों पर मैंने टिप्पणियां कीं और संभावित युद्ध का पूरी तरह से विरोध किया। कुछ जगहों पर मेरी टिप्पणियों को छपने दिया गया और कुछ जगहों पर रोक लगा दी गई और कुछ जगहों पर सिर्फ एन इंडियन रीडर लिखकर काम चला लिया गया लेकिन आप यह जानकर हैरान होंगे कि उन टिप्पणियों पर अमेरिकी लोगों ने सकारात्मक प्रतिक्रियाएं दीं। उनमें से तमाम लोगों ने ओबामा सरकार की ईरान नी

अध्यात्मिक भारत में मोहर्रम के मायने

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Meaning of Muhramme in Spiritual India इस्लामिक कैलंडर के हिसाब से साल की शुरुआत हो चुकी है। मोहर्रम उसका पहला महीना है। लेकिन न सिर्फ इस्लामिक कैलंडर के हिसाब से बल्कि पूरी दुनिया में जितनी भाषाएं, धर्म, जातियां मौजूद हैं, उनके लिए भी मोहर्रम के कई मायने और मतलब है। पर, अध्यात्मिक भारत के लिए इसका महत्व बहुत खास है। भारत में मुंशी प्रेमचंद ने कर्बला का संग्राम जैसी प्रसिद्ध पुस्तक लिखकर इसे आम हिंदी भाषी लोगों तक पहुंचाया तो भारत के नामवर उर्दू शायर कुंवर मोहिंदर सिंह बेदी ने इसे नए तेवर और अकीदत के साथ पेश किया। अपनी एक रचना में वह लिखते हैं कि कर्बला के मैदान में शहीद होने वाले पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन महज किसी एक कौम की जागीर क्यों रहें, क्यों न उस कुर्बानी को आम बनाया जाए जो इंसानियत के नाम दर्ज है। जिसमें छह महीने के बच्चे से लेकर बड़ों तक बेमिसाल शहादत शामिल है। महात्मा गांधी ने अपनी अहिंसा की अवधारणा का जिक्र करते हुए लिखा है कि उन्हें इस तरफ प्रेरित करने वाली विभूतियों में इमाम हुसैन भी शामिल हैं। पूरी दुनिया में जब हिंसा अपने नए-नए चेहरे रखकर

हमारी-आपकी जिंदगी में ब्लैकबेरी

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क्या आपके पास ब्लैकबेरी (Blackberry) है, मेरे पास तो नहीं है। मैं इस मोबाइल फोन का विरोधी नहीं हूं। दरअसल पिछले तीन दिन से इसकी सेवाएं भारत सहित दुनिया के 6 करोड़ लोगों को नहीं मिल रही हैं। यह भारत के अखबारों की पहले पन्ने की खबर बन गई है। दुनिया के किसी और अखबार ने इस खबर को पहले पन्ने पर जगह नहीं दी। भारत में यह फोन आम आदमी इस्तेमाल नहीं करता। यह भारत के कॉरपोरेट जगत यानी बड़ी कंपनियों के बड़े अधिकारी, नौकरशाह, खद्दरधारी नेता, अमीर घरों के बच्चे, अमीर बनने की इच्छा रखने वाले और उनकी अपनी नजर में ठीकठाक वेतन पाने वाले प्रोफेशनल्स का यह चहेता फोन है। भारत में एक कहावत मशहूर है कि अगर आपका जूता अच्छी तरह चमक रहा है तो उससे आपकी हैसियत का अंदाजा लगाया जाता है। यानी वह जमात जो खुद को प्रभावशाली बताती है, आपको अपनी जमात में शामिल करने को तैयार है। अब उस जूते की जगह ब्लैकबेरी ने ले ली है। मैं ब्लैकबेरी खरीद सकता हूं और उसकी सेवा का दाम भी चुका सकता हूं। लेकिन मुझे उसे ठीक तरह इस्तेमाल करना नहीं आता है। जब मैं मीटिंगों में जाता हूं तो वहां लोग अपने हाथ में ब्लैकबेरी निकालकर बैठे होते