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आजतक बहुत घटिया चैनल है...क्या सचमुच

यह कैसे तय होगा कि कौन सा न्यूज चैनल सबसे अच्छा है और फलां सबसे खराब...यह कैसे तय होगा कि कौन से खबरिया चैनल का पत्रकार सबसे अच्छा है और फलां सबसे खराब...क्या किसी खबरिया चैनल को घटिया कह देने से आप मेरी बात मान लेंगे... केंद्रीय मानव संसाधन (एचआरडी) मंत्री स्मृति इरानी को लेकर आजतक चैनल ने इसी सोमवार को एक शो दिखाया जिसका शीर्षक था – स्मृति की परीक्षा। इस शो में रिपोर्टर के सवाल औऱ बीजेपी समर्थकों द्वारा रिपोर्टर के खिलाफ नारेबाजी ने इस बहस को फिर जन्म दे दिया है कि क्या टीवी न्यूज के पत्रकारों को अपने गिरेबान में झांकने का वक्त आ गया है। उस शो में आजतक के रिपोर्टर अशोक सिंघल ने स्मृति से ऐसा सवाल पूछा जो महिलाओं की गरिमा के खिलाफ था औऱ सीधे-सीधे स्मृति के चरित्र पर चोट करता था। उनका सवाल था – नरेंद्र मोदी ने सबसे कम उम्र की मंत्री बनाया आपको, एचआरडी जैसा बड़ा पोर्टफोलियो दिया और डिग्री का भी विवाद है, आप ग्रैजुएट हैं या अंडर ग्रैजुएट...लेकिन क्या खूबी लगी आपमें...क्या वजह थी... बात इससे पहले आगे बढ़ाई जाए, उससे पहले साफ कर दूं कि मैं किसी पार्टी या नेता विशेष का समर्थक नही
मोबाइल ने जिंदगी को किस तरह कबाड़खाना बना दिया है...इस पर बहुत ज्यादा ज्ञान न देते हुए एक विडियो यहां दे रहा हूं, जिसे देखकर आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि दरअसल हम लोग किस तरफ जा रहे हैं। महानगरों में लोगों की यह शिकायत आम होती जा रही है कि एक तो आपस में रिश्तेदार मिलते तक नहीं और अगर मिलते हैं तो सारे के सारे आपस में बात करने की बजाय मोबाइल से चिपके रहते हैं...यह हकीकत है... इसी हकीकत से रूबरू कराता यह विडियो... 《低头人生》 Posted by 李金雄 on Sunday, April 19, 2015

केजरीवाल को माफ कर दो गजेंद्र भाई

गजेंद्र सिंह ने क्या वाकई फसल चौपट होने पर खुदकुशी की...यह सवाल कल से मन में कौंध रहा था। क्योंकि मैंने जब टीवी फुटेज और बाद में फोटोग्राफर मित्र सुनील कटारिया द्वारा घटनास्थल से खींचे गए फोटो देखे तो यह शंका बढ़ गई कि इस खुदकुशी का संबंध फसल चौपट होने से नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी की राजनीति से मोह भंग होने से जुड़ा मामला है। राजस्थान से आई आज कुछ मीडिया रपटों ने मेरे इस शक की पुष्टि कर दी है। गजेंद्र सिंह ने तीन पार्टियों भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अब आम आदमी पार्टी में अपनी मंजिल तलाश की। उन्होंने विधानसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़ा। यह शख्स सपा का जिला अध्यक्ष भी रहा। हिंदुस्तान टाइम्स ने दौसा में गजेंद्र सिंह के घर अपने रिपोर्टर को भेजकर पूरी जानकारी मंगाई। जिसे पढ़ने और कल शाम को फुटेज और फोटो देखने के बाद मेरा नजरिया इस खुदकुशी को लेकर बदला। मैं आपको कुछ कारण गिनाता हूं जो उनके परिवार के हवाले से मीडिया में आए हैं – -     उनके परिवार के पास खेती की अच्छी खासी जमीन है लेकिन उनके पिता अभी भी सारे फैसले लेते हैं क्योंकि उनका यह लड़का गजेंद्र सि

जिन्ना की आस छोड़ो...वो नहीं आएगा...

वाकई भारतीय मुसलमान बेपेंदी के लोटे हैं, जब पाकिस्तान बन रहा था, तब वहां गए नहीं...घर वापसी भी नहीं की...अब भुगतो...वोट देने के लायक भी नहीं रहोगे...नसबंदी भी करवानी पड़ेगी...यार सिग्नल पकड़ो...कानून तुम्हारे साथ नहीं...अदालतें भी तुम्हें नापसंद करती हैं...हाशिमपुरा- नरोदापाटिया से तुम्हें भगाया जाता है, तुम फिर लौटकर वहीं आ जाते हो...कभी पिल्ले बन जाते हो तो कभी टोपी पहनाने पहुच जाते हो...इस्लामिक आतंकवाद का कलंक तुम्हारे माथे पर है...शाकाहारी बनने में क्या बुराई है...मांस तो अब उनके खाने की चीज है जिनके लिए इसका खाना कभी एडवेंचर था, झूठ है तो बरेली वाले त्रिपाठी जी से पूछ लो...जालंधर वाले शर्मा जी से पूछ लो...आखिर क्या चाहते हो...जाओ, यार भाग जाओ पाकिस्तान...यहां रहकर क्या करोगे...या फिर नाम बदल लो...तुम इस्तेमाल किए जाने के लिए बने हो, यूज एंड थ्रो...सेकुलर शब्द गाली है, उसे अपने सीने से चिपकाए बैठे हो... देखो हिटलर के वक्त का जर्मनी याद करो...सब नाजी अंध राष्ट्रभक्त हो गए थे...गैस चैंबर तैयार थे...कत्लेआम की साजिश चारों तरफ से थी...अब राष्ट्रभक्तों का जमाना है...तुम्हारा क