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आप भी तो शीशे के घर में रह रहे हैं...

- क्या इस महान देश के अपने ही कुछ लोग कुल्हाड़ी लेकर यहां के लोकतंत्र का गला घोंटना चाहते हैं... -क्या हमने कुछ बंदरों को ऐसा हथियार थमा दिया है जिससे वे अपना ही गला काटने पर उतारू हैं... -ताजा हालात इस तरफ इशारा कर रहे हैं। यह अकेले मेरा सरोकार नहीं है। आप अखबार उठाइए...आप टीवी पर खबरें देखिए-सुनिए...आप फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर जाइए...चारों तरफ ऐसा लगता है कि कुछ अंध देशभक्त कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हो गए हैं और उन सब ने मिलकर इस महान देश की आत्मा को झिंझोड़ना का ठेका ले लिया है... -मुंबई बम धमाकों में मुजरिम पाए गए याकूब मेमन को फांसी दे दी गई। आपने मुंबई ब्लास्ट में मारे गए 257 लोगों के साथ इंसाफ भी कर दिया लेकिन उस मुजरिम के जनाजे में शामिल होने वाले 8000 लोगों पर त्रिपुरा का गवर्नर शक जता रहा है...वह कह रहा है कि ये संभावित आतंकवादी हो सकते हैं...इन पर नजर रखी जाए... -दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में मुजफ्फरनगर दंगों पर एक डॉक्युमेंट्री दिखाई जा रही थी, संघ से जुड़े संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने उसे दिखाने से रोक दिया और कहा कि यह फिल

याकूब मेमन की अपनी बेटी से आखिरी बातचीत

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मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट में मारे गए 257 लोगों की हत्या के जुर्म में आतंकवादी याकूब मेमन को 30 जुलाई 2015 को नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। मरने से पहले याकूब ने अपनी बेटी से फोन पर बातचीत करने की इच्छा जताई थी... याकूबः बेटी, मेरा आखिरी सलाम, तुम उदास मत होना। दुआओं में याद रखना। अपनी मां का ख्याल रखना। बेटीः पापा... याकूबः बेटी रो मत...ये होना था। तुमको अब ऐसे ही रहना होगा। ऐसे ही जीना होगा। इसी तरह ही दुनिया का सामना करना होगा। पर बेटी, तुम ये मत समझना कि मैं गुनहगार था। तुम्हारा पापा गुनहगार नहीं था। मैं आखिरी वक्त में झूठ नहीं बोल सकता। मेरे भाइयों ने यह सब किया था। अगर मैं इसमें शामिल होता तो मैं कभी खुद को सीबीआई के हवाले नहीं करता। बेटीः पर, पापा ये तो आपके साथ धोखा हुआ न। याकूबः बेटी, अब इसे जो भी समझो। लेकिन मेरा यकीन तो भारतीय संविधान और यहां की अदालत में मरते दम तक रहेगा। ...और तुम भी इसे बनाये रखना। देखो जज साहबान ने कितनी सुबह तक इस पर सोचा कि मुझे फांसी दी जाए या नहीं। बेटी, ऐसा कहीं और नहीं होता। तमाम मुसलमान देशों में तो मौत

भूल गए मेरी करामात...

एक साल में यह हाल कि दुनिया करे सवाल उस बुड्ढे की ये मजाल कि अपने साक्षात्कार से मचाए भौकाल क्या भूल गए सब लोग मेरा गुजरात क्या याद नहीं मेरी पुरानी करामात अरे ओ मोटू जरा बता मेरी औकात और हां नागपुर को भेज नई सौगात मैं हिंसक हूं, विंध्वसक हूं, मैं काल हूं मैं राजा विक्रमादित्य का बेताल हूं मैं देश का जीता जागता संक्रमणकाल हूं मैं मानवीयता से बेहद कंगाल हूं मेरे नवधनकुबेर मित्रों को कुछ न कहना अभी तो कई साल यही सब होगा सहना इस सोने की चिड़िया को होगा बार-बार मरना दाढ़ी, टोपी, तसबीह टांग दो सब खूंटी पर मुल्ला जी, नमाज पढ़ो जाकर किसी चोटी पर फिक्र न करना, याद रखना ये होगी अस्थायी हिजरत गिरना, उठना, फिर जुटना है इंसान की फितरत भरोसा रखो, आगे बढ़ो, छा जाओ भारत पर @copyright2015Yusuf Kirmani 

आजतक बहुत घटिया चैनल है...क्या सचमुच

यह कैसे तय होगा कि कौन सा न्यूज चैनल सबसे अच्छा है और फलां सबसे खराब...यह कैसे तय होगा कि कौन से खबरिया चैनल का पत्रकार सबसे अच्छा है और फलां सबसे खराब...क्या किसी खबरिया चैनल को घटिया कह देने से आप मेरी बात मान लेंगे... केंद्रीय मानव संसाधन (एचआरडी) मंत्री स्मृति इरानी को लेकर आजतक चैनल ने इसी सोमवार को एक शो दिखाया जिसका शीर्षक था – स्मृति की परीक्षा। इस शो में रिपोर्टर के सवाल औऱ बीजेपी समर्थकों द्वारा रिपोर्टर के खिलाफ नारेबाजी ने इस बहस को फिर जन्म दे दिया है कि क्या टीवी न्यूज के पत्रकारों को अपने गिरेबान में झांकने का वक्त आ गया है। उस शो में आजतक के रिपोर्टर अशोक सिंघल ने स्मृति से ऐसा सवाल पूछा जो महिलाओं की गरिमा के खिलाफ था औऱ सीधे-सीधे स्मृति के चरित्र पर चोट करता था। उनका सवाल था – नरेंद्र मोदी ने सबसे कम उम्र की मंत्री बनाया आपको, एचआरडी जैसा बड़ा पोर्टफोलियो दिया और डिग्री का भी विवाद है, आप ग्रैजुएट हैं या अंडर ग्रैजुएट...लेकिन क्या खूबी लगी आपमें...क्या वजह थी... बात इससे पहले आगे बढ़ाई जाए, उससे पहले साफ कर दूं कि मैं किसी पार्टी या नेता विशेष का समर्थक नही