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पैकेज किसी और का, जाकिर नायक सिर्फ सेल्स एजेंट

नोट ः मेरा यह लेख आज (12 जुलाई 2016) नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में प्रकाशित हो चुका है। हिंदीवाणी के पाठकों के लिए इसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है... कुछ आतंकवादी घटनाओं के बाद सरकारी एजेंसियों और मीडिया की नजर इस्लाम की वहाबी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने वाले कथावाचक टाइप शख्स जाकिर नायक की तरफ गई है। उनके खिलाफ जांच भी शुरू हो चुकी है, जिसका नतीजा आना बाकी है। हालांकि जाकिर नायक ने ढाका की आतंकी घटना के कई दिन बाद मक्का में उसकी निंदा की और कहा कि इस्लाम किसी की जान लेने की इजाजत नहीं देता है। जाकिर नायक ने अपने बचाव में उसी इस्लाम और धार्मिक पुस्तक कुरान का सहारा लिया जिसकी आयतों की मीमांसा (तफसीर) को वो अभी तक तोड़ मरोड़कर पेश करते रहे और तमाम युवक-युवतियां उसे सुन-सुनकर उसी को असली इस्लाम मान लेने में यकीन करते रहे। हर धर्म के युवक-युवतियों के साथ ऐसा छल उस धर्म के कथावाचक पिछले कई दशक से कर रहे हैं, जिसमें धर्म तो कहीं पीछे छूट गया लेकिन खुद के बनाए सिद्धांत को आगे रखकर किसी खास विचारधारा का प्रचार प्रसार करना उसका मुख्य मकसद हो गया। कुरान अरबी में है। भारत

जिहाद का गेटवे

नोट ः नवभारत टाइम्स, दिल्ली में  03 जून 2016 के अंक में प्रकाशित मेरा आलेख अमेरिका के अरलैंडों, फ्लोरिडा से लेकर इस्तांबुल के अतातुर्क एयरपोर्ट पर हुए आतंकी हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट का नाम सामने बार-बार आया है। अमेरिका में 9 /11 के बाद वहां के बारे में दावा किया गया था कि अमेरिका ने अपनी सुरक्षा इतनी मजबूत कर ली है कि वहां अब कुछ भी होना नामुमकिन है। लेकिन हाल ही में हुई घटनाओं ने इस सुरक्षा कवच की धज्जियां उड़ा दीं। आखिर कैसे आईएस इतना मजबूत होता जा रहा है और दुनिया की सारी सुरक्षा एजेंसियां उसके सामने बौनी साबित हो रही हैं।     अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इंस्टिट्यूट फॉर द स्टडी आफ ह्यूमन राइट्स के डायरेक्टर डेविड एल. फिलिप्स ने एक रिसर्च पेपर जारी किया है, जिसमें कुछ कड़ियों को जोड़ते हुए जवाब तलाशने की कोशिश की गई है। डेविड अमेरिकी विदेश मंत्रालय में बतौर विदेशी मामलों के विशेषज्ञ के रूप में नौकरी भी कर चुके हैं। वह कई थिंक टैंक से भी जुड़े हुए हैं। उनके रिसर्च पेपर के मुताबिक तुर्की का बॉर्डर आईएस और दूसरे आतंकी संगठनों के बीच जिहाद का गेटवे के रूप में जाना जा

अमजद साबरी जैसा कोई नहीं

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26 जून 2016 के नवभारत टाइम्स लखनऊ में प्रकाशित पाकिस्तान के मशहूर कव्वाल अमजद साबरी पर प्रकाशित मेरा लेख...बाकी पाठकों को भी यह उपलब्ध हो सके, इसलिए इसे यहां पेश किया जा रहा है... पाकिस्तान में सूफी विरासत को मिटाने का सिलसिला जारी है। चाहे वो सूफियाना कलाम गाने वाले गायक हों या सूफी संतों की दरगाहें हों, लगातार वहाबियों व तालिबानी आतंकवादियों का निशाना बन रही हैं। 45 साल के अमजद साबरी 22 जून 2016 को इसी टारगेट किलिंग का शिकार बने। वहाबियों का सीधा सा फंडा है, पैगंबर और उनके परिवार का जिक्र करने वाले सूफी गायकों, शायरों और सूफी संतों की दरगाहों को अगर मिटा दिया गया तो इन लोगों का नामलेवा कोई नहीं बचेगा। लेकिन कट्टरपंथी यह भूल जाते हैं कि किसी को मारने से उस विचारधारा का खात्मा नहीं होता। वह और भी जोरदार तरीके से नए रूप में वापसी करती है। अमजद साबरी के साथ भी तो यही हुआ। कहां तो अमजद को हमेशा कैरम और क्रिकेट खेलने का शौक रहा लेकिन विरासत में मिली जिम्मेदारी को निभाने के लिए उन्हें कव्वाल बनना पड़ा। ...और वो न सिर्फ बने बल्कि मरते दम तक वो पाकिस्तानी यूथ के आइकन थे।

यूसुफ किरमानी का कवितासन

तुम करो आसन                                         हम करें शासन भाड़ में जाए जनता का राशन गरीब हो तो भूखे पेट ही करो शीर्षासन कंगाल हो तो टमाटर पर करो ताड़ासन सरकार और संतरी भी करें योगासन न आए कुछ समझ तो करें चमचासन दाल के रेट पर मत करें क्रोधासन आलू के दाम पर करें पद्मासन बैंगन पर करें स्वार्गं आसन लौकी पर करें सर्पासन जी हां, योग अब 100 पर्सेंट धंधा है काले को सफेद करने वाला बंदा है कैसे उस ब्रैंड को मार भगाया और कैसे अपना पैर जमाया जो न समझे खेल को वो अंधा है सत्ता की आड़ है, धर्म की बाड़ है गऊ माता के देश में बाबा ही सांड़ है जागो मेरे भारत जागो अभी सवेरा है यूसुफ तुम भी जुटो जहां बहुत अंधेरा है फिर मत कहना, दरवाजे पर खड़ा लुटेरा है कुछ बातें, कुछ संदर्भ .............................. मेरी इस कविता की पहली दो लाइन रिटायर्ड आईपीएस जनाब  Vikash Narain Rai ( वीएन राय) के सौजन्य से है। उन्होंने पिछले साल योग दिवस पर दिल्ली के राजपथ पर हुए तमाशे के मौके पर वो दो लाइने अपने फेसबुक स्टेटस में लिखी थीं। आज फिर योग दिव