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देश में शॉर्टकट पॉलिटिक्स कौन कर रहा है

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Shortcut Politics in India: Leaders and their Character   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को विपक्षी दलों पर शॉर्टकट पॉलिटिक्स करने का आरोप लगाते हुए उन्हें चेतावनी दी। शॉर्टकट पॉलिटिक्स का मतलब है राजनीति में जल्द सफलता हासिल करने के नुस्खे। पीएम मोदी का यह जुमला सोमवार को देश के कुछ अखबारों की सुर्खियां बन गया। लेकिन इन सुर्खियों में वो बात कहीं नहीं लिखी गई कि दरअसल, कौन सा राजनीतिक दल शॉर्टकट पॉलिटिक्स में विश्वास नहीं रखता है। बल्कि अगर सलीके से इस बात को कहा जाए, तो आधुनिक भारतीय राजनीतिक इतिहास में मोदी जी शॉर्टकट पॉलिटिक्स के मसीहा बन गए हैं। उनके जुमलों पर नजर डालते जाइए और शॉर्टकट पॉलिटिक्स को समझते जाइए।     क्यों कही पीएम मोदी ने यह बात   उससे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर पीएम मोदी ने किस वजह से बीजेपी को छोड़कर बाकी राजनीतिक दलों को शॉर्टकट पॉलिटिक्स न करने की चेतावनी दी। दरअसल, हाल ही में गुजरात, हिमाचल, एमसीडी के अलावा कुछ उपचुनावों के नतीजे आए हैं। गुजरात को छोड़कर बीजेपी बाकी जगह हार गई है। आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली, पानी के वादे के साथ दिल्ली से लेकर पंजाब और अ

गुजरात, हिमाचल, दिल्ली के चुनाव नतीजे क्या बताते हैं- मोदीत्व कितना चलेगा

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Election results of Gujarat, Himachal, Delhi : how long Moditva will last गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 दिसंबर को आए। इससे पहले 7 दिसंबर को दिल्ली में एमसीडी चुनाव के नतीजे आए थे। लेकिन मीडिया गुजरात की चर्चा कुछ ज्यादा ही कर रहा है। 8 दिसंबर को गुजरात में बीजेपी को जीत दिलाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendar Modi) ने अपने संबोधन में भी गुजरात का जिक्र ज्यादा किया, हिमाचल और एमसीडी में बीजेपी की हार की चर्चा नहीं के बराबर की।  गुजरात में बीजेपी को भारी जीत मिली है। इसमें कोई शक नहीं है। 182 विधानसभा सीटों में से 157 सीटें जीतना मामूली बात नहीं है। दिल्ली एमसीडी चुनावों में भी भगवा पार्टी (Saffron Party ) ने अप्रत्याशित रूप से दमदार प्रदर्शन किया, लेकिन आम आदमी पार्टी से एक मामूली अंतर से हार गई। गुजरात में बीजेपी की जीत काबिले तारीफ है। तथ्य यह है कि उसे 52% से अधिक वोट शेयर मिला है। यही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबदबे को बताने के लिए काफी है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच विपक्षी वोटों के बंटवारे के साथ ही गुजराती मतदाताओं से मोदी के  भावनात्मक जुड़ा

कोरोना वैक्सीन के बाद अचानक हो रही मौतों की वजह क्या है

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  देश के तमाम हिस्सों खासकर उत्तर भारत से ऐसे युवा लोगों की मौत की खबरें आ रही हैं, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज लगवाए थे। ऐसे लोगों को काम के दौरान अचानक दिल का दौरा आता है और वहीं पर उनकी मौत हो जाती है।  इस लेख का मकसद किसी को डराना नहीं है, बल्कि इस समस्या पर मची हलचल पर बात  करना है और इसका विश्लेषण करना है। नवभारत टाइम्स के पत्रकार नरेंद्र नाथ मिश्रा ऐसी मौतों पर बराबर नजर रख रहे हैं और जहां कहीं से भी उन्हें सूचना मिलती है, वे फौरन ट्वीट कर देते हैं। लोग उन ट्वीट को पढ़ते हैं और सहम जाते हैं।  इस तरह कोविड वैक्सीन का हृदय पर संभावित प्रभाव एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। भले ही कोविड टीकों को सुरक्षित और प्रभावी के रूप में बताया गया हो, डॉक्टर हृदय स्वास्थ्य पर टीके के हल्के प्रभाव से पूरी तरह से इनकार नहीं करते हैं। हालांकि, वे इस बात को भी कहते हैं कि वैक्सीन का लाभ लोगों में होने वाले दुष्प्रभावों, यदि कोई हो, से कहीं अधिक है। दिल का दौरा पड़ने के कुछ मामलों के सामने आने के बाद कुछ दिन पहले ट्विटर पर #हार्टअटैक ट्रेंड करने लगा - वरमाला समारोह के दौरान दिल का दौरा

चुप्पियों के दिन

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   लिखता हूँ, फिर जल्दी से मिटा देता हूँ  डर है, उनकी भावनाएँ आहत होने का। देखते हैं चुप्पियों के दिन कैसे कटते हैं? लेकिन चुप्पियों की पीड़ा असह्य है।  निन्दक निकट रखने के पुराने दिन गए चापलूस निन्दकों की जयजयकार है। बहुसंख्यक आहत भावनाओं के राष्ट्र में  अल्पसंख्यक चाहतों को स्थान कहाँ है? -यूसुफ किरमानी  दरअसल मेरी ये चंद लाइनें केदारनाथ सिंह की उन लाइनों को समर्पित हैं। 👆👆👆

आज़म खान के भरोसे मुसलमान !!!

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आज़म खान आज (20 मई 2022) जेल से छूट गए हैं। मुसलमान ख़ुशियाँ मना रहा है, यह जाने बिना की #आज़म_खान का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा? देश नफरत की आग में जल रहा है। मुसलमान तय नहीं कर पा रहा है कि उसे क्या करना चाहिए। ऐसे में किसी आज़म खान में उम्मीद तलाशना खुद को धोखा देना है। हालाँकि आज़म खान से पूरी हमदर्दी है। किसी पर 89 केस बना दिए जाएँ तो उसके महत्व को समझा जा सकता है।  बाबरी मस्जिद आंदोलन के दौरान सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की हरकतों, बयानों को भुलाया नहीं जा सकता। आज़म खान उस वक्त मुलायम के साथ थे। उस वक्त आज़म का क्या फ़र्ज़ बनता था? इसका इतिहास लिखा जाएगा। अयोध्या आंदोलन को चरम पर ले जाने के दाग से ये दोनों भी बच नहीं पाएंगे। जेल से बाहर आने के बाद अब ज़रा आज़म के बयानों पर नज़र रखने की ज़रूरत है। मुद्दा ये है कि हर नेता की दुकान है। वो धर्म, जाति, नफ़रत के कारोबार से मुसलमान हिन्दू दोनों को बेवकूफ बना रहा है। जिस देश में महंगाई, बेरोज़गारी चरम पर हो, इस देश के राजनीतिक दलों के लिए बड़ा जन आंदोलन खड़ा करने की तमन्ना ही न हो तो उस देश की जनता को किसी नेता विशेष से कोई उम्मीद नह

अभी बैराग लेकर क्या करेंगे......पौराणिक पृष्ठभूमि पर हिन्दी ग़ज़ल

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 पौराणिक पृष्ठभूमि पर ग़ज़ल  पौराणिक पृष्ठभूमि पर कविता, ग़ज़ल, नज़्म लिखना आसान नहीं होता। और उर्दू पृष्ठभूमि का कोई रचनाकार अगर हिन्दू पौराणिक कहानियों को अपनी ग़ज़ल के साँचे में ढालता है तो ऐसी कविता या ग़ज़ल और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। हिन्दी कविता जगत तमाम खेमेबंदियों में उलझा हुआ है। उसे यह देखने, समेटने की फ़ुरसत ही नहीं है कि कवियों, ग़ज़लकारों की जो नई पीढ़ी आ रही है, उसके लेखन को कैसे तरतीब दी जाए या बढ़ाया जाए। हिन्दी की नामी गिरामी पत्रिकाएँ भी सही भूमिका नहीं निभा पा रही हैं।  फहमीना अली अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) की शोध छात्रा हैं। उनकी ग़ज़ल और कविताओं का आधार अक्सर हिन्दू पौराणिक कहानियाँ होती हैं। यह ग़ज़ल - अभी बैराग लेकर क्या करेंगे - फहमीना अली की ताज़ा रचना है। हिन्दीवाणी पर इसका प्रकाशन इस मक़सद से किया जा रहा है कि हिन्दी वालों को मुस्लिम पौराणिक कहानियों पर कविता, ग़ज़ल लिखने की प्रेरणा मिलेगी। उर्दू स्कॉलर होने के बावजूद फहमीना अली ने हिन्दू पौराणिक कथाओं को अपने साहित्य का हिस्सा बनाने की जो कोशिश की है, उसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इस ग़जल में रदीफ-काफ

हम क्यों उनको याद करें!

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आम्बेडकर को क्या करोगे याद करके देश आम्बेडकर के संविधान से नहीं, गोलवरकर की किताब से चलेगा गौर से चेहरे और नामों को पढ़िए  जो तलवारें लहरा रहे हैं उन्मादी नारे लगा रहे हैं। उसने अपने अनुयायियों को बौद्ध बनाया पर, वो न बौद्ध हो सके और न इंसान वो सब के सब बन गए हैं हिन्दू-स्तान। हिन्दू होना ज़रा भी बुरा नहीं है गोलवरकर बन जाना ख़तरनाक है सावरकर से गोडसे तक नाम ही नाम हैं हेडगेवार से पहले भी तो हिन्दू थे उनके हाथों में भगवा नहीं, तिरंगा था वे चंद्रशेखर आज़ाद थे, वे बिस्मिल थे वे हिन्दू थे, लेकिन भगवाधारी हिन्दू नहीं थे वे भगत सिंह थे, वे सुखदेव थे वे किसी सिख संगत के मेंबर नहीं थे। आम्बेडकर ने मनुस्मृति को कुचला मनुस्मृति कुचलने से हिन्दुत्व ख़त्म नहीं हुआ वो मनुस्मृति का नया संस्करण ले आए संविधान ही मनुस्मृति में बदल रहा है।  लेकिन अब्दुल को क्यों फ़र्क़ पड़े इन बातों से उसे तो पंक्चर ही लगाना है उसे दंगाई कहलाना है और घर पर बुलडोज़र बुलवाना है। बाबा के संविधान ने अब्दुल को क्या दिया हाँ, यूएपीए दिया, टाडा दिया, एनआईए दिया अब्दुल को उलझाने के अनगिनत हथियार दिए कथित धर्मनिरपेक्ष भारत को अ