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क्या हो आज के मुसलमान की दिशा

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भारतीय मुसलमानों की दशा और दिशा क्या हो, इसे लेकर तमाम बहसें चलती रहती हैं। भारतीय मुसलमानों के नए-नए स्वयंभू नेता भी रोजाना पैदा होते हैं और खुद को चमकाने के बाद वे परिदृश्य से गायब हो जाते हैं। देश के जाने-माने पत्रकार एम.जे. अकबर ने रविवार को पटना में एक व्याख्यानमाला के तहत दिए गए लेक्चर में मुसलमानों को लेकर कुछ बातें रखी हैं। मैं समझता हूं कि अकबर साहब ने जितनी सटीक और व्यावहारिक बातें कहीं हैं, वे मौजूदा पीढ़ी के मुसलमानों को भी जाननी चाहिए। हालांकि अकबर साहब ने आतंकवाद जैसे मुद्दे पर कुछ नहीं बोला लेकिन जो बोला है, वह व्यावहारिक है। आइए जानते हैं कि दरअसल उन्होंने कहा क्या है... प्रख्यात पत्रकार और लेखक एम. जे. अकबर ने कहा कि देश के मुसलामानों को सुरक्षा का भय दिखाने वालों को नहीं बल्कि उनके विकस की बात करने वालों के पक्ष में अपना मत देना चाहिए। पटना में बिहार इंडस्ट्रीज एसोसियशन हॉल में आयोजित शाह मुश्ताक अहमद स्मृति व्याख्यान माला आर्थिक विकास एवं वंचित वर्ग पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अकबर ने कहा कि देश के मुसलामानों को सुरक्षा का भय दिखाने वाले को नहीं बल्कि उनके विकास क

चीन की दीवार के पार गूगल

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दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी गूगल ने चीन (Google China) से अपना कारोबार समेटने की धमकी देकर बड़ा धमाका कर दिया है। गूगल की इस घोषणा के चंद घंटे बाद ही अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैन्सी पलोसी (Nancy Pelosi) ने बयान देकर अमेरिका का नैतिक समर्थन भी गूगल को दे दिया। इंटरनेट और कारोबारी दुनिया की यह सबसे बड़ी खबर है। भारत के पड़ोस का घटनाक्रम के नाते इस पर हम लोगों को बात करनी चाहिए और उन मुद्दों को जानना चाहिए। गूगल का चीन (Google China) में 35 फीसदी मार्केट शेयर है और आंकड़े बताते हैं कि वह लगातार बढ़ रहा था। यानी गूगल ने यह घोषणा ऐसे समय की है जब उसका कारोबार बढ़ रहा है। उसने चीन से कारोबार (Google China Business) समेटने की धमकी देने के पीछे जो खास वजह बताई है, उसके मुताबिक चीन में उसके कारोबार पर साइबर अटैक (Cyber Attack) हो रहे थे, वहां के टेक्नीशियन या आईटी एक्सपर्ट (IT Experts) गूगल के डेटा बेस (Google China Data Base) (आंकड़ों के भंडार में) में सेंध लगाकर उस डेटा को हैक (Data Hacking) कर रहे थे। गूगल के पास जिन कंपनियों का डेटा था, गूगल ने उन्हें उनसे फौरन अवगत करा दिया। वहां की सरकार

इडियट्स का ही है ज़माना

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अब हम लोग इडियट्स के युग में प्रवेश कर चुके हैं। कलयुग भूल जाइए। अब इडियट्स इरा का जमाना है। वरना 3 इडियट्स की तमाम बेजा हरकतों के बावजूद एक जाने-माने भारतीय लेखक चेतन भगत को उलटा माफी मांगना पड़ जाए तो यह इडियट्स युग की देन है। लेकिन मैं भी अपने तमाम फेसबुक, जी टाक, ट्विटर, याहू मैसेंजर और दीगर मित्रों से माफी मांगता हूं कि मैं फालतू में ही चेतन भगत को पेड़ पर चढ़ा रहा था। यह शख्स तो चने के झाड़ पर भी चढ़ने के लायक नहीं है। भारत के बौद्धिक संपदा अधिकार (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) की जय हो। हुआ यह था कि आमिर खान की सुपरहिट फिल्म 3 इडियट्स (3 Idiots)के रिलीज होने के बाद जब चेतन भगत को क्रेडिट न देने का मामला उठा तो मैंने खुद को चेतन भगत के साथ खड़ा पाया। मैंने चेतन भगत को पूरा तो नहीं पढ़ा है लेकिन अपने अंग्रेजी उपन्यासों के अलावा उन्होंने यहां-वहां जो कुछ भी लिखा है, उस नाते मैं उनका प्रशंसक हूं। हालांकि अभी भी मैं उनको अरुंधति राय से ज्यादा गहरी समझ रखने वाला अंग्रेजी का भारतीय लेखक नहीं मान पाया हूं। बहरहाल, मुद्दा यह था कि 3 इडियट्स की कहानी चेतन भगत के अंग्रेजी उपन्यास (Five Po

गले में खिचखिच...विक्स न खाना

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क्या विक्स का इस्तेमाल करते हैं...जरूर करते होंगे। बच्चे को खांसी आई नहीं कि उसके गले पर या तो विक्स मल दी गई या फिर उसे विक्स की गोली चूसने को दे दी गई। लेकिन अब विक्स का इस्तेमाल न करें। इस प्रोडक्ट को बनाने वाली कंपनी प्रॉक्टर एंड गैंबल (पी एंड जी) ने अमेरिका में अपनी इस दवा को वापस ले लिया है यानी कंपनी इस दवा को अब अमेरिकन बाजार में नहीं बेचेगी। इस कंपनी ने सिर्फ विक्स ही नहीं बल्कि अपना एक और प्रॉडक्ट 24 लिक्वि कैप्स बोनस पैक भी वापस ले लिया है। पर...भारत समेत दुनिया के विकासशाली देशों यानी गरीब देशों में दोनों दवाओं को वापस नहीं लिया गया। क्यों वापस लिया विक्स को प्रॉक्टर एंड गैंबल (Procter and Gamble)ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा है कि इस दवा को इसके दावे के अनुरूप नहीं पाया गया। कंपनी ने विक्स (Vicks) के पैकेट पर लिखा था कि यह दवा 12 साल से कम उम्र के बच्चों पर काफी तेजी से असर करती है। लेकिन कंपनी ने पाया कि ऐसा नहीं है। इसका असर बच्चों पर नहीं होता। ठीक यही नतीजा क्वि कैप्स के साथ भी निकला। कंपनी ने अपनी रिलीज में यह भी कहा कि उसने खुद ही पहल करते हुए दोनों दवाओं को वापस लिया

दोज़ख़ - इस्लाम के खिलाफ बगावत

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टीवी पत्रकार और लेखक सैयद जैगम इमाम के उपन्यास दोजख का विमोचन सोमवार शाम दिल्ली के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम में किया गया। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब का विमोचन जाने - माने साहित्यकार और हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने किया कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी के विख्यात आचोलक नामवर सिंह ने की। इस मौके पर बोलने वालों में आईबीएन सेवन के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष, मशहूर साहित्यकार अनामिका और शोधकर्ता शीबा असलम फहमी शामिल थीं। मंच का संचालन सीएसडीएस से जुड़े रविकांत ने किया। कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत अतिथियों को फूल भेंटकर की गई। कार्यक्रम में सबसे पहले अपनी बात रखते हुए आईबीएन 7के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष ने कहा कि उन्हें इस उपन्यास को पढ़कर अपना बचपन याद गया। उन्होंने अपने वक्तव्य में बनारस, मिर्जापुर और चंदौली की भाषा का इस्तेमाल किया और कहा कि जैगम का उपन्यास भाषा के स्तर पर लाजवाब है। उन्होंने उपन्यास के संदर्भ के जरिए मुस्लिम समाज को लेकर पैदा की जा रही भ्रांतियों पर भी कड़ा प्रहार किया। दोज़ख़ को इस्लाम से बगावत की किताब बताते हुए आशुतोष ने साफ कहा कि मुसलमान अब उस अंदाज में

इस कुरबानी को भी पहचानिए

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मेरा यह लेख शुक्रवार 27 नवंबर 2009 को नवभारत टाइम्स , नई दिल्ली में संपादकीय पेज पर प्रकाशित हुआ। इस लेख को नवभारत टाइम्स से साभार सहित मैं आप लोगों के लिए इस ब्लॉग पर पेश कर रहा हूं। यह लेख नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर भी है, जहां पाठकों की टिप्पणियां आ रही हैं। अगर उन टिप्पणियों को पढ़ना चाहते हैं तो वहां इस लिंक के जरिए पहुंच सकते हैं - http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5272127.cms -यूसुफ किरमानी बकरीद अपने आप में बहुत अनूठा त्योहार है। हालांकि इस्लाम धर्म के बारे में ज्यादा न जानने वालों के लिए यह किसी हलाल जानवर को कुरबानी देने के नाम पर जाना जाता है लेकिन बकरीद सिर्फ कुरबानी का त्योहार नहीं है। यह एक पूरा दर्शन है जिसके माध्यम से इस्लाम ने हर इंसान को एक सीख देने की कोशिश की है। हालांकि कुरानशरीफ की हर आयत में इंसान के लिए पैगाम है लेकिन इस्लाम ने जिन त्योहारों को अपनी संस्कृति का हिस्सा बनाया, वह भी कहीं न कहीं कुछ संदेश लिए नजर आते हैं। अल्लाह ने हजरत इब्राहीम से उनकी सबसे प्यारी चीज कुरबान करने की बात कही थी, इब्राहीम ने काफी मनन-चिंतन के बाद अपने बेटे की कुरबान

मैं हूं राजकुमार ठाकरे

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मैं हूं राजकुमार ठाकरे। अगर आप मराठी भाषी नहीं हैं तो इसे पढ़ने की हिमाकत न करें। मुझे मेरे डॉन ने एक टारगेट दिया है जिसे मैं किसी भी हालत में पूरा करना चाहता हूं। दरअसल मेरे डॉन ने खूब कोशिश कर ली कि भारत में हिंदू-मुस्लिम दंगें (Hindu-Muslim Riots) हों, लोग बड़े पैमाने पर अराजकता पर उतर आएं। उसने यहां वहां अपने भाड़े के लोगों को भेजकर बम ब्लास्ट कराए लेकिन छुटपुट घटनाओं को छोड़कर कोई बड़ा बखेड़ा नहीं खड़ा हो सका। अब मुझे नया मिशन सौंपा गया है कि भाषा के नाम पर इतना बड़ा बवाल कर दो कि हर राज्य में भाषा का झगड़ा खड़ा हो जाए और लोग एक दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो जाएं। इसकी शुरुआत मैंने मुंबई से की है। क्योंकि मुंबई से बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती। यह मिनी इंडिया है, हर राज्य, धर्म और भाषा बोलने वाले यहां रहते हैं। यहां सफल होना आसान है। चूंकि यहां सबसे ज्यादा यूपी के भैया और बिहार के बिहारी रहते हैं तो उनको डराना सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर वे डर गए तो बाकी सारे तो मुट्ठी भर हैं, खुद ही भाग जाएंगे। मुझे इस मिशन के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है। मेरे बुजुर्ग इतना ज्ञान इस बारे में दे