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मोदी अपडेटः कौन सही – कौन गलत

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की उस विशेष जांच समिति (सिट) के सामने पेश हुए जो गुलबर्गा सोसायटी नरसंहार के मामले की जांच कर रही है। सिट ने उनसे 5 घंटे तक पूछताछ की। अपने पिछले लेख में मैंने इस मुद्दे को सामने रखा था। उस वक्त उस लेख पर कमेंट करने वालों ने कहा था कि मोदी को जब उस कमिटी ने तलब ही नहीं किया तो मोदी के पेश होने का मतलब ही नहीं था। बहरहाल, अब उन शीर्ष टिप्पणीकारों को जवाब मिल गया होगा कि मोदी को दरअसल उसी समय तलब किया गया था लेकिन उनकी तैयारी नहीं थी कि वे कमिटी को किस बात का जवाब किस तरह देंगे। उन्होंने अब 6 दिन का समय तैयारी में लगाया और शनिवार को कमिटी के सामने पेश हो गए। अब वे शीर्ष टिप्पणीकार तय करें कि कौन सही था और कौन गलत।

अदालतें भी तो अपने गिरेबान में झांकें

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क्या वह दिन आने वाला है कि जब अदालतों का कोई महत्व नहीं रह जाएगा और लोग इसके फैसलों को मनाने से इनकार कर देंगे। क्या भारत की अदालतें भी सांप्रदायिक ध्रवीकरण का शिकार हो रही हैं। इस जैसे ही कुछ और सवाल हैं जो आम आदमी के मन में इस समय कौंध रहे हैं। हाल ही में हुई कुछ घटनाओं के बाद इस तरह के सवाल उठ खड़े हुए हैं। अहमदाबाद की गुलबर्गा सोसायटी में हुए नरसंहार के मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पेश नहीं हुए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले के लिए गठित विशेष जांच कमेटी (सिट) ने उन्हें एक नोटिस भेजकर कमेटी के सामने पूछताछ के लिए उपस्थित होने को कहा था। मोदी सरकार के अधिकारियों ने यह कहकर बचाव किया कि वह नोटिस कोई समन यानी कानूनी नोटिस नहीं था, इसलिए मोदी उसे मानने को बाध्य नहीं हैं। मोदी की बीजेपी पार्टी ने नई दिल्ली में बयान दिया कि जो कानून के मुताबिक होगा, मोदी उस पर चलेंगे। गुजरात में मोदी की रहनुमाई में एक समुदाय विशेष के साथ जो हुआ, उस पर काफी कुछ लिखा जा चुका है। कुछ महीनों में ऐसी घटनाओं को पूरा एक दशक हो जाएगा लेकिन कानून तोड़ने वाले खादी पहने अब भी आजाद घूमते नजर आ रहे हैं

आओ बाबा रामदेव, आप ही बाकी रह गए थे

इस समय बाबा लोग चर्चा में है। कभी किसी वजह से तो कभी वजह से। ताजा चर्चा बाबा रामदेव की है, जिन्हें राजनीति का चस्का लग गया है। हालांकि पिछले काफी दिनों से वह इस तरफ यह जुमला कहकर इशारा कर रहे थे कि वह राजनीति को बदलना चाहते हैं। बाबा ने मंगलवार को दिल्ली में बाकायदा अपने राजनीतिक अभियान की शुरुआत कर दी है।उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की है। बाबा के इस पहलू पर मैंने अपने ताजा लेख में नजर डालने की कोशिश की है। लेकिन वह पूरा लेख पढ़ने के लिए आपको जाना पड़ेगा जनपक्ष ब्लॉग पर। उसका लिंक आप लोगों के लिए दे रहा हूं...http://jantakapaksh.blogspot.com/2010/03/blog-post_17.html

इस षड्यंत्र से मुसलमान हो जाएं होशियार

महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पास होने के बाद पूरे देश में तालियां पीटी जा रही हैं। वाजिब भी है, भारत जैसे देश में महिलाओं को यह हक गए-गुजरे देश बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी बाद में मिला है। लेकिन इस सारे शोर में यह बात दबकर रह गई है कि इस बिल के जरिए अल्पसंख्यकों और अन्य जातियों के गरीब तबके को हाशिए पर लाने का षड्यंत्र पर बहुत शानदार तरीके से रचा गया है। कांग्रेस-बीजेपी की मिलीभगत पूरी तरह खुलकर सामने आ गई है, रीढ़ विहीन वामपंथियों की औकात मुसलमानों को आरक्षण और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के जरिए पता चल चुकी है। मुसलमानों के लिए राजनीति में भागीदारी अब और भी मुश्किल हो जाएगी। अभी तमाम राजनीतिक दलों में उनकी न तो कोई आवाज है और न ही हैसियत। अगर यह मान भी लिया जाए कि तमाम मुस्लिम महिलाएं अचानक राजनीति में सक्रिय हो जाएंगी और उन्हें उनके घर वाले पूरी छूट दे देंगे तो यह एक खूबसूरत ख्वाब के अलावा और कुछ नहीं होगा। मुसलमानों को तमाम नए समीकरणों पर विचार करना होगा। यह काम कैसे होगा, इसकी शुरुआत कैसे होगी, यह सब बहुत पेचीदा सवाल हैं, जिनका जवाब समय के गर्भ में है। हो सकता है कि कल को कोई अचा

तू मुसलमान है तो क्यों है...

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तमाम वजहों से मुसलमान हर वक्त चर्चा में रहता है लेकिन इन दिनों कुछ ज्यादा चर्चा में है। कभी किसी ब्लॉग पर तो कभी किसी अखबार में। लगता है कि इस समय देश का सबसे जरूरी काम मुसलमानों पर चर्चा करना ही रह गया है। तो मैं भला पीछे क्यों रहूं। मैं अपने इस ब्लॉग पर इस चर्चा को जानबूझकर कर रहा हूं। पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों पर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान की टिप्पणी के बाद उनकी फिल्म माई नेम इज खान का शिवसेना के गुंडों ने जिस तरह से विरोध की कोशिश की, उसे इस देश के लोगों ने अपने ही ढंग से जवाब देकर उनकी कोशिश को तार-तार कर दिया। हालांकि शिवसेना के लोग यह जाने बिना विरोध कर रहे थे कि हो सकता है कि यह शाहरुख की अपनी फिल्म को सफल बनाने के लिए की गई चालाकी हो, क्योंकि मुझसे निजी बातचीत में तमाम मुस्लिम लोगों ने कहा कि यह सब शाहरुख की चालाकी थी, जिसमें शिवसेना पस्त हो गई। लेकिन मैं शाहरुख पर कोई शक किए बिना इस बात को आगे बढ़ाना चाहता हूं। इस देश में कट्टरवाद के पोषक एक खास किस्म के तालिबानियों (मैं यहां किसी धर्म विशेष का नाम नहीं ले रहा हूं, आप समझदार हैं) ने जो माहौल बना दिया है, उसमें आम मुसलमान क्

इसे जरूर पढ़े ः कॉमरेड, आपने मुसलमानों के साथ ये क्या किया?

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल अपनी धारदार लेखनी के लिए जाने जाते हैं। पश्चिम बंगाल में मुसलमानों को आरक्षण के ड्रामें पर उन्होंने बहुत विचारोत्तेजक लेख लिखा है। यह लेख जनसत्ता में 23 फरवरी को संपादकीय पेज पर छपा है। वही लेख अब उनके ब्लॉग रिजेक्ट माल पर भी उपलब्ध है...उस लेख को जरूर पढ़ें। लिंक यहां दिया जा रहा है... कॉमरेड, आपने मुसलमानों के साथ ये क्या किया? -दिलीप मंडल

पुणे ब्लॉस्ट पर द हिंदू अखबार की सनसनीखेज रिपोर्ट

पुणे ब्लॉस्ट पर द हिंदू अखबार ने 19 फरवरी 2010 को बहुत ही सनसनीखेज रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पुणे ब्लॉस्ट में हिंदूवादी संगठन का हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। उसने अपनी रिपोर्ट में अभिनव भारत का नामं लिया है जिसके तमाम पदाधिकारियों पर मालेगांव व अन्य स्थानों पर बम विस्फोट का आरोप है। द हिंदू अखबार की रिपोर्ट कितनी सही या गलत है कि यह आप उस रिपोर्ट को पढ़कर खुद तय करें। इस मामले पर अभी से कोई राय कायम करना सही नहीं होगा। इस रिपोर्ट को मैं यहां पेश कर रहा हूं लेकिन उसका लिंक भी दे रहा हूं जिससे आप सीधे उनकी वेबसाइट पर भी जाकर पढ़ सकते हैं। लिंक है...http://beta.thehindu.com/news/national/article109312.ece?homepage=true और अब द हिंदू की रिपोर्ट पढ़ें... Hindutva terror probe haunts Pune investigation Praveen Swami Investigators focus on jihadist groups, but some fear Hindutva group may have carried out German Bakery bombing. Back in November 2008, as Lieutenant-Colonel Prasad Shrikant Purohit walked into a Nashik court to face trial for his alleged role