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मैडम किरन बेदी, बुखारी के फतवे के पीछे कौन था

किरन बेदी को बीजेपी वाले समझा क्यों नहीं रहे...वह अपनी हार से उबरने का नाम नहीं ले रही हैं। अपनी हार के लिए बीजेपी और इसके नेताओं को जिम्मेदार ठहराने के बाद उन्होंने अपनी हार में एक और फैक्टर मुस्लिम वोटों का न मिलना भी जोड़ दिया है और कहा है कि जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के फतवे की वजह से अंतिम समय में दिल्ली के कृष्णानगर इलाके में रहने वाले मुसलमानों का वोट उन्हें नहीं मिला, जिस वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव से पहले किरन का शुमार देश के तेज-तर्रार पुलिस अधिकारियों में था। जैसे ही बीजेपी ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने वाला न्यौता दिया, उनकी छवि पर सबसे पहला हमला यहीं से हुआ। आईपीएस विकास नारायण राय ने जनसत्ता में एक लेख लिखा जिसमें बहुत बारीकी से किरन का विश्लेषण किया गया। राय को मैं काफी दिनों से जानता हूं और वह भारतीय पुलिस सेवा में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उन्होंने लिखा था कि किरन बेदी भारतीय लोगों के बीच में एक जीवित मिसाल बन गई थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें अपने लिए इस्तेमाल कर उनकी छवि पर बट्टा लगा दिया है। किरन के बाद भारतीय

सलमान रश्दी का कूड़ा और भालचंद्र निमाड़े

सलमान ऱश्दी की बौखलाहट समझ में आती है। तमाम तरह का कूड़ा लिखने के बाद भारत में जब उन्हें पहचान नहीं मिली तो वह मराठी लेखक भालचंद्र निमाड़े को गाली देने पर उतर आए। निमाड़े को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की घोषणा के बाद रश्दी बौखला गए। किसी भी लेखक को दूसरे लेखक के काम का आकलन करने का अधिकार है। निमाड़े का आकलन है कि सलमान ऱश्दी और वी. एस. नॉयपाल जैसे लेखकों ने पश्चिमी देशों का प्रचार किया और उनका लेखन उस स्तर का नहीं है...इसमें क्या गलत है लेकिन इसके बदले अगर दूसरा लेखक पलटकर गाली देने लगे तो आप इसे क्या कहेंगे।...मैं साहित्यकार नहीं हूं लेकिन साहित्य की समझ जरूर रखता हूं। सलमान रश्दी या भारत में चेतन भगत सरीखे लेखक अंग्रेजी में जो चीजें परोस रहे हैं, उससे कहीं बेहतर भालचंद्र निमाड़े का लेखन है।...भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में रश्दी औऱ चेतन भगत जैसा कूड़ा करकट लिखने वालों से कहीं बेहतर उपन्यासकार मौजूद हैं। ...और तो और अरुंधति राय का लेखन रश्दी या चेतन भगत के स्तर से बहुत ऊंचा और बड़ा है। रश्दी औऱ नॉयपाल ने अपने लेखन में वह सब बेचा जो पश्चिमी देशों को गरीब देशों के बारे में जानना और सुनना प

मोदी जीतें या फिर केजरीवाल...देश जरूर पूछेगा सवाल

बिना किसी भूमिका के कुछ वजहों से दिल्ली के चुनावी दंगल में अरविंद केजरीवाल की जीत क्यों हो, इसको बताना जरूरी लग रहा है...औऱ इनमें से किसी एक की जीत होने पर सवाल तो पूछे ही जाते रहेंगे...यह किसी टीवी चैनल की अदालत नहीं है जहां सब कुछ मैनेज कराकर सवाल पूछे जाते है...जनता की अदालत का सामना बार-बार करना पड़ेगा... - दिल्ली के चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल किसने बनाया...आपने इसे क्यों नहीं इसे एक छोटे से राज्य का सामान्य सा विधानसभा चुनाव मानकर क्यों नहीं लड़ा। देश के प्रधानमंत्री की इज्जत एक मामूली से विधानसभा चुनाव में दांव पर लगाने की जरूर क्या थी, किरन बेदी की इज्जत पूरे देश में एक तेजतर्रार महिला आईपीएस की रही है लेकिन अफसोस की इस चुनाव ने इस इमेज को तार-तार कर दिया...और यह सब उस महान रणनीतिकार के कारण हुआ जिसे चारों केसरिया रंग देखने की आदत पड़ गई है... -बीजेपी और इसके ब्ल्यू आइड ब्वॉय नरेंद्र मोदी को पिछले लोकसभा चुनाव में पूरे देश ने भारी बहुमत से जिताकर लोकसभा में भेजा। पिछले 8 महीनों से यह देश इस बात का इंतजार कर रहा है कि सरकार कुछ ठोस पहल करेगी लेकिन बदले में पब्लिक

अरे, वो बदनसीब इंसान...

...गोया कि आप नसीब से प्रधान सेवक बने हैं यानी आपके भाग्य में लिखा था कि आप एक दिन प्रधान सेवक बनेंगे जरूर ।...तो उस कर्म का क्या होगा जो जिसके लिए किसी भाग्य की जरूरत नहीं पड़ती। जिसका ज्ञान अब स्कूलों में पढ़ाने की बात आपके एक राज्य का प्रधान चौकीदार कर रहा है। कह रहा है गीता दर्शन पढ़वाउंगा स्कूलों में। वो गीता दर्शन जिसमें भाग्य नहीं कर्म की बात कही गई है। ...सचमुच बहुत कमजर्फ और नामूकल इंसान है वो अदना सा मामूली आदमी जो बदनसीबी के साथ आया है। बदनसीबी उसके साथ-साथ चल रही है और प्रधानसेवक और उसकी सेना ऐसे बदनसीबों से घबराई हुई है। न उगलते बन रहा है और निगलते बन रहा है। सचमुच ये बदनसीब लोग बहुत हठधर्मी होते हैं...नतीजा बेशक सिफर रहे लेकिन नानी याद दिला देते हैं। ...देखो-देखो उस शख्स ने फेसबुक पर क्या चुटकी ली है, लिखता है 10 साल बाद एक बदनसीब देश का प्रधान सेवक। कुछ इस तरह कहेगा कि ...मैं इस बदनसीब देश का प्रधान सेवक गैर सेकुलर संविधान की शपथ लेकर कहता हूं कि वाकई इस देश के लोग बदनसीब थे जिनका मैं प्रधान सेवक रहा। ये लोग इस काबिल थे ही नहीं कि एक नसीब वाले को बतौर प्रधान स

मिशेल, तुम क्या जानो मेरा दर्द

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मिशेल के नाम एक भारतीय दासी का खत ............................................................... प्रिय मिशेल,  तुम कितनी खुशनसीब हो। दुनिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश से तुम आई और जब मैंने तुम्हारे पति का हाथ तुम्हें पकड़े देखा तो मैं गर्व से फूली नहीं समायी कि अमेरिकी प्रथम महिला का यह सम्मान उसका पति भारत जैसे विकासशील देश में आकर भी बरकरार रखे हुए है, जहां लड़की को ब्याहते समय पति को परमेश्वर मानने की शिक्षा दी जाती है। सचमुच मिशेल तुम सौभाग्यशाली हो, इतना होशियार, समझदार पति पाया है, उसका सीना कितने इंच का है, यह तो मैं नहीं जानती और शायद तुम भी नहीं, लेकिन यहां तो जो अपने पति को परमेश्वर मानती हैं, उन्हें 56 इंच का सीना दिखाने वाले पुरुषों की मर्दानगी भरी बातें दिन-रात जरूर झेलनी पड़ती हैं। मिशेल तुमसे मुझे ईर्ष्या हो रही है। हाय, तुम्हें जरा भी लाज न आई। गाला डिनर में अपने पति के साथ डिनर करते हुए...कितने आंखें तुम्हें निहार रही थीं। यहां तो हम लोग पति परमेश्वर के भरपेट खाने के बाद ही खाते हैं...सास-ससुर होते हैं तो उनसे भी छिपाकर खाते हैं। मिशेल, तुम विकसि

बुखारी पर चंद बातें

दो बातें... ठेलना का मतलब जानते हैं...मीडिया यही कर रहा है। खासकर शाही इमाम अहमद बुखारी के मामले में...उनको जबरन ठेल-ठेल कर मुसलमानों का नेता बना दे रही है। कुछ लोगों की रहनुमाई करने का दावा करने वाला शख्स अपने निजी कार्यक्रम में किसी को बुलाए या न बुलाए, उसका निजी मामला है। इसमें मीडिया राजनीति क्यों खोज रहा है। बीजेपी भी मीडिया के सुर में बोल रही है और शाही इमाम को जबरन भारतीय मुसलमानों का नेता बना दे रही है...11 नवंबर से दिल्ली में विश्व हिंदू कॉन्फ्रेंस होने जा रही है...बहुत बड़ा आय़ोजन है। किसी मौलवी या धर्मगुरु को क्यों ऐतराज होना चाहिए कि विश्व हिंदू कॉन्फ्रेंस में उन्हें नहीं बुलाया गया। दूसरी बात... बुखारी ने बड़ी ही चालाकी से देश के मुसलमानों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है कि देखो तुम अब सारी पार्टियों से इतना पिट चुके हो कि अब मुझे अपना नेता मान लो...मैं ही तुम्हारा रहबर (रास्ता दिखाने वाला) हूं। मेरी शरण में आ जाओ। बताइए जिस शख्स ने अपने दामाद को मंत्री बनवाने के लिए समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव से हाथ मिलाया औऱ फिर उन्हें छोड़ दिया...बताइए जिस शख्स पर जामा मस्

महान अडानी जी...वगैरह

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देश विकास के रास्ते पर बढ़ चला है। अच्छे दिन लाने के लिए एक से बढ़कर एक फैसले किए जा रहे हैं। तमाम फैसलों को मिलाकर हम एक ऐसे भारत का निर्माण करने जा रहे हैं, जहां जनता को मनरेगा, कोयला, स्पेक्ट्रम जैसे घोटालों से निजात दिलाने की कोशिशें शुरु हो गई हैं। केंद्र का सबसे ताजा फैसला इस विकास को और रफ्तार देने जा रहा है... क्या आप अडाणी या अडानी (Adani) को जानते हैं...शायद कुछ सिरफिरे हों, जो न जानते हों। संक्षेप में ये है कि ये गुजरात के बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं और देश की तरक्की के लिए खुद को समर्पित कर चुके हैं। केंद्र का ताजा फैसला इन्हीं के बारे में है... *महाराष्ट्र के विदर्भ के गोंडिया जिले में अडानी ग्रुप के पावर प्लांट (Power Plant) के लिए केंद्र सरकार ने 148.59 हेक्टेयर वन भूमि ( Forest Land ) मंजूर कर दी है। यहां पर 1980 मेगावॉट का पावर प्लांट अडानी ग्रुप लगाएगा। 2008 से प्रोजेक्ट लटका हुआ था लेकिन केंद्र में नई सरकार आने के बाद 28 अगस्त 2014 को प्रोजेक्ट को पहले मंजूरी दी गई, फिर 20 अक्टूबर 2014 को केंद्रीय पर्यावरण (Enviornment) और वन मंत्रालय ने भी इसे मंजूर कर लिया।