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'छबीला रंगबाज का शहर' का मंचन

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' छबीला रंगबाज का शहर ' केवल आरा या बिहार की कहानी नहीं है अपितु इसमें हमारे समय की जीती जागती तस्वीरें हैं   जिनमें हम यथार्थ को नजदीक से पहचान सकते हैं। राज्यसभा सांसद और समाजविज्ञानी मनोज झा ने हिन्दू कालेज में छबीला रंगबाज का शहर के   मंचन में कहा कि   पढ़ाई के साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भी   हिन्दू कालेज की गतिविधियां प्रेरणास्पद रही हैं। झा यहाँ हिंदी नाट्य संस्था   अभिरंग के सहयोग से ' आहंग ' द्वारा मंचित नाटक में बोल रहे थे।   युवा लेखक प्रवीण कुमार द्वारा लिखित इस कहानी को रंगकर्मी - अभिनेता   हिरण्य हिमकर ने निर्देशित किया है। कैसे हुए निर्देशन और चुस्त अभिनय के कारण   लगभग दो घंटे लम्बे इस नाटक को यहां दर्शकों ने मंत्रमुग्ध होकर देखा। कहानी का बड़ा हिस्सा इस   शहर   के अनूठे अंदाज को बताने में लगता है। तभी घटनाएं होती हैं और एक दिन तनाव के मध्य अरूप अपने किसी रिश्तेदार किशोर को ऋषभ के घर रात भर ठहरा लेने के अ

गांधी हैकर्स के क़ब्ज़े में

महात्मा गांधी इस बार 2 अक्टूबर को हैकर्स का शिकार हो गए हैं।...गोडसे की संतानें गांधी को याद कर रही हैं... इस बार दो अक्टूबर ऐसे वक़्त में आया है जब दिल्ली आ रहे किसानों को यूपी बॉर्डर पर रोक दिया गया है...गांधी जिस लोकतंत्र के लिए लड़े, उसी लोकतंत्र में देश के अन्नदाता को रोका जा रहा है... अपने ग़ुस्से को शांत करने के लिए 2 अक्टूबर 2015 को गर्म हवा नाम की कविता अपने ब्लॉग हिंदीवाणी से निकाली और मामूली संपादन के बाद यहाँ फिर से दे रहा हूं...याद आ रहा है तब तक गौरी लंकेश की हत्या नहीं हुई थी...इसलिए दाभोलकर और पनसारे का ही ज़िक्र आया है...गांधी हैकर्स के विरोध में पढ़िए यह कविता...                    गर्म हवा... बापू हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा हैं पहनते हैं खादी, जुमलेबाजी में उम्दा हैं                                             कहता है खुद को अहिंसा का पुजारी लेकिन जान ले रहा इंसान की दुराचारी बापू हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा हैं... कितनी गर्म हवा चल रही है अपने देश में गली-गली हत्यारे घूम रहे हैं साधू के वेश में बापू हम शर्मिंदा हैं ते

मुस्लिम ब्रदरहुड से बड़ी चुनौती है आरएसएस की

-विकास नारायण राय, पूर्व आईपीएस राहुल गाँधी की आरएसएस की मुस्लिम ब्रदरहुड से तुलना सटीक होते हुए भी ऐतिहासिक सतहीपन का शिकार नजर आती है| सबसे पहले, उन्होंने वैश्विक शांति के नजरिये से आकलन में वही गलती की है जो 2013 में मिश्र में मोहम्मद मोरसी की सरकार का तख्ता पलट होने देने में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने की थी| पॉलिटिकल इस्लाम को अरब समाज के लोकतान्त्रिक परिदृश्य से ओझल नहीं किया जा सकता; न पॉलिटिकल हिंदुत्व को भारतीय समाज के! दूसरे, भारतीय समाज को आरएसएस के खतरे से चेताने के लिए उन्हें देशी जमीन का इस्तेमाल करना चाहिये था क्योंकि आरएसएस विश्व शांति को नहीं भारतीय समाज की शांति को खतरा है| आज मिश्र में ब्रदरहुड के साठ हजार लोग जेलों में हैं जबकि भारत में आरएसएस अपने आप में कानून बना हुआ है; इस लिहाज से आरएसएस कई गुना बड़ी चुनौती कहा जाएगा| अमेरिका में इसी महीने मिश्र में ब्रदरहुड सत्ता पलट पर न्यूयॉर्क टाइम्स के कैरो में ब्यूरो प्रमुख रहे डेविड किर्कपैट्रिक की किताब ‘इनटू द हैंड्स ऑफ़ द सोल्जर्स’ का प्रकाशन हुआ है| उनकी थीसिस के अनुसार, ब्रदरहुड शासन में अंततः लोकतान्त्रिक

ढोंगी चाय वाले की महानतम खोज...

कुछ सुना आपने...अब हम लोग नाली से निकलने वाली गैस से चाय बना सकते हैं...सुना है कि किसी फलाने देश के ढोंगी चाय वाले ने यह महानतम खोज की है... ...उस देश में इतने मैनहोल हैं, सभी जगह की गैस जमा करके सभी बेरोजगार वहां चाय की दुकान खोल सकते हैं...हर वक्त ताजी गैस मिलेगी और चाय भी शानदार होगी... मैंने तो फलाने देश के प्रधानमंत्री जी को लिख दिया है कि कृपया इस बार भगवा क़िले की दीवार पर चढ़कर अपने भाषण में नाली से निकलने वाली गैस और उससे बनने वाली चाय के बारे में विस्तार से रौशनी डालें...ताकि फलाने देश के तमाम बेरोजगार इसमें अपने लिए कुछ खोज सकें... मुझे लगता है कि "पकौड़ा तलो रोजगार योजना" के बाद "नाली गैस की चाय" योजना फलाने देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी... ताज्जुब है कि गैस पैदा करने वाली देश की तमाम नालियों और मैनहोलों की पुख्ता सुरक्षा का इंतजाम नहीं किया गया है। इसके लिए कम से कम एक कैबिनेट लेवल का मंत्री तो नियुक्त ही किया जाना चाहिए जो देश भर में ऐसी नालियों से निकलने वाली गैस की सुरक्षा संभाल

कोई चिट्ठी से न मारो...मेरे मोदी दीवाने को

अरे बाबा...बड़ा डर लगता है रे...अपने मोदी जी की कुछ सिरफिरे हत्या करना चाहते हैं।...सब मिलकर उनकी सलामती के लिए दुआ करो भाइयों-बहनों... कौन हैं ये लोग...कोई शहरी नक्सली बताए जाते हैं। ...मतलब शहर में रहने वाले कुछ सिरफिरे हैं जो यह करना चाहते हैं।...पुलिस ने किसी सादे काग़ज़ पर लिखी चिट्ठी बरामद की है जिसमें किसी ने मोदी जी की हत्या के बारे में लिखा है... मतलब कितने कमअक्ल हैं ये बदमाश की चिट्ठी लिखकर यह बात बताते हैं...बहुत दुर्दिन चल रहे हैं नक्सलियों के...हरामजादों चिट्ठी लिखकर मोदी जी को भला कैसे मारने देंगे हम लोग, तुम लोगों को...जिस देश ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या देखी...इंदिरा गांधी की हत्या देखी...राजीव गांधी की हत्या देखी...न कोई चिट्ठी ...न संदेश...न तारीख़ पर तारीख़...धायं- धायं की और उड़ा दिया...ये कौन बदमाश है जो चिट्ठी लिखकर मोदी जी को मारने चला है...सवा सत्यानाश हो उसका... अपना मोदी तो सवा सेर है।...पट्ठा खुली जीप में रोडशो करता है।...कश्मीर चला जाता है...जैसे कोई मसीहा आया हो.... सारा प्रोग्राम मीडिया चार दिन पहले बता देता है कि देश का प्रध

क्या मोदी ने जानबूझकर भगत सिंह के बारे में झूठ बोला

हम यह मानने को तैयार नहीं कि भारत के प्रधानमंत्री के पास पीएमओ में लाइब्रेरी नहीं होगी, रिसर्चर नहीं होंगे और उनको भाषण के लिए इनपुट न दिए जाते होंगे। ...लगता यही है कि  मोदी की ऐसी कोई मजबूरी है जो उनसे शहीदे आज़म भगत सिंह और अन्य के बारे में जानबूझकर झूठे तथ्य बुलवा रही है ताकि उस झूठ को सच बताकर स्थापित किया जा सके। वरना मोदी से इतनी बड़ी ग़लती नामुमकिन है। एक झूठ को सच साबित करने के लिए अगर कुछ बड़े लोग मिलकर झूठ बोलने लगें तो काफ़ी लोगों को वह झूठ सच लगने लगता है। बड़े लोगों का झूठ इतनी नफ़ासत से सामने आता है कि तथ्यों से बेख़बर लोग उसे सच मान लेते हैं। आररएसएस इसी नीति पर काम कर रहा है। बतौर प्रधानमंत्री मोदी जब बार बार ऐतिहासिक तथ्यों पर झूठ बोलेंगे तो लोग उसी झूठ को सच मानने लगेंगे। क्योंकि उनसे भारत का सामान्य मानवी ऐसी उम्मीद नहीं कर सकता। पीएमओ के बारे में मैं बहुत नज़दीक से जानता हूँ। वहाँ हर सूचना मात्र एक क्लिक पर उपलब्ध रहती है। हर चीज़ के एक्सपर्ट पीएमओ से जुड़े हुए हैं।  यह कैसे संभव है कि पीएम कुछ भी अंट शंट बोलने से पहले ऐतिहासिक जानकारियों की पुष्टि न करते