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हमारा तेल खरीदो, हमारा हथियार खरीदो...फिर चाहे जिसको मारो-पीटो

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भारत अमेरिका-इस्राइल-अरब के जाल में फँस गया है। नया वर्ल्ड ऑर्डर (विश्व व्यवस्था) अपनी शर्तें खुलेआम बता रहा है। ...हमारा तेल ख़रीदो और हमारे ही हथियार ख़रीदो। नहीं तो बम धमाकों, तख़्ता पलट, दंगों का सामना करो।...अगर किसी आतंकवादी गुट से बातचीत या समझौता करना होगा तो वह भी हम करेंगे। अगर तुम अपने देश में अपनी किसी आबादी या समूह पर जुल्म करना चाहते हो, उनका नरसंहार करना चाहते हो तो वह हमारी बिना मर्जी के नहीं कर सकते। हमारी सहमति है तो उस आबादी और समूह से तुम्हारी फौज, तुम्हारी पुलिस कुछ भी करे, हम कुछ नहीं बोलेंगे। बस तुम्हारी अर्थव्यवस्था हमारी मर्जी से चलनी चाहिए और वहां के समूहों को कुचलने में हथियार हमारे इस्तेमाल होने चाहिए।  इस वर्ल्ड ऑर्डर में चीन और उसका सिल्क रूट, ईराऩ जैसे कई मुल्क सबसे बड़ी बाधा हैं। भारत ने तटस्थ होने की कोशिश की लेकिन उसके नेता नैतिक साहस नहीं जुटा पाए और अमेरिकी वर्ल्ड आर्डर के सामने घुटने टेक दिये। #अमेरिका ने #भारत से कहा, #ईरान का तेल मत ख़रीदो, हम सऊदी अरब से महँगा तेल दिलवा देंगे लेकिन ख़रीदना सऊदी का तेल ही पड़ेगा।

अभाव, गंदगी, चुनाव के झूठे वायदों के बावजूद हरिजन कैंप में जिंदगी गुलज़ार है

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जगह- हरिजन कैंप, लोदी कॉलोनी, साउथ दिल्ली की मस्जिद बच्चे का नाम - मोहम्मद सलमान सोर्स का नाम - मोहम्मद मोती, राज मिस्त्री (मैंशन) पहले वीडियो देखें फिर नीचे की तस्वीर देखें...वीडियो में क्या है, जानबूझकर नहीं लिखा। अगर आपने सुना तो शायद आप ही बता दें। दिल्ली में लोदी रोड पर इंडिया हबीतात सेंटर है और इसी से चंद कदम की दूरी पर हरिजन कैंप आबाद है। जिस इंडिया हबीतात सेंटर में ग़रीबों और ग़रीबी पर आए दिन सेमीनार होते रहते हैं, वहीं चंद कदम की दूरी पर यह बस्ती उन तमाम लफ्फाजियों को मुंह चिढ़ाती रहती है। मैं इस बस्ती में कल था। लोग बता रहे थे तीन दिन से पानी नहीं आ रहा है। लेकिन लोग उस गुस्से में शिकायत नहीं कर रहे थे, जिसकी उम्मीद की जाती है। चुनाव के मौसम में जब हर वोटर अपनी समस्याएं बताते नहीं थकता है, ऐसे में इस बस्ती में चुनाव कोलाहल से दूर लोग खुद में मस्त नजर आए। खबरों के मामले में टीवी के तमाम घटिया प्रभावों के बावजूद इस बस्ती के लोगों को नहीं मालूम कि इस आम चुनाव में कौन जीतेगा। उनका कहना था कि हमें कल फिर दिहाड़ी पर निकल जाना है, हमें क्या फर्क पड़ेगा, कौन जितेगा और क

मस्जिदों में गोलीबारी के बाद न्यूजीलैंड महान है या भारत...

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कोई भी देश महान उसके लोगों से बनता है...भारत न्यूज़ीलैंड की घटना से बहुत कुछ सीख सकता है...सिर्फ नारा भर देने से कि गर्व से कहो हम फलाने महान हैं तो कोई महान नहीं बनता। पूरे न्यूजीलैंड के लोग अपने आसपास के मुस्लिम घरों में जा रहे हैं, वे उन्हें गुलाब पेश करते हैं और कहते हैं हम आपके साथ हैं।...वहां की प्रधानमंत्री का भाषण कल रात से मैंने कई बार सुना।...प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डन का मारे गए लोगों के लिए बोला गया यह शब्द - They are us (दे आर अस) यानी वो हम ही हैं - अब वायरल है और ऐसे ही शब्द किसी देश के नेता के व्यक्तित्व का परिचय कराते हैं। वरना ढिंढोरचियों की तो कमी नहीं है। कोई बुज़ुर्ग पोस्टर लेकर न्यूजीलैंड से मीलों दूर मैन्चेस्टर की मस्जिद के बाहर खड़ा है, जिस पर लिखा है- मैं आपका दोस्त हूँ। जब आप नमाज़ पढ़ेंगे, मैं आपकी सुरक्षा करूँगा।...और उस बुज़ुर्ग की बेटी उस पोस्टर को शेयर करते हुए लिखती है कि मुझे गर्व है कि आप मेरे पिता हैं। आज मैंने जाना कि  सेकुलर होने का मतलब क्या है? बीबीसी को इस बुज़ुर्ग के पोस्टर में इतनी गहराई नज़र आती है कि वह

देवताओं का वॉर रस प्रवचन

देवता आसमान से पुष्प वर्षा कर रहे हैं...आज वॉर रस पर प्रवचन का दिन है... देवता वॉर वाणी (War Sermons) कर रहे हैं...बच्चा जीवन में टाइमिंग का ही महत्व है।...कुछ कार्य का समय चुन लो...वॉर रस से मंत्रमुग्ध जनता को अगर शांति पाठ करने को कहोगे तो तुम्हें कच्चा चबा जाएगी लेकिन वॉर रस में अगर उसे पबजी गेम में भी अटैक बोलोगे तो वह ख़ुश हो जाएगी। टाइमिंग की कला जिसको आती है, वही वीर है। अच्छे टाइमिंग का ताजा उदाहरण देखो...कल वॉर मेमोरियल (War Memorial) का उद्घाटन हुआ, आज यानी 26 फ़रवरी को  भारतवर्ष की सेना ने अपने पड़ोस में जाकर कई किलो बम गिरा दिए...नोमैंस लैंड में क़रीब तीन सौ लोग मारे गए...कई आतंकी शिविर हमेशा के लिए तबाह हो गए। यही टाइमिंग है...वॉर रस में डूबी जनता को अपना टॉपिक और टॉनिक मिल गया है। सीआरपीएफ़ जवानों की तेरहवीं के दिन किए गए इस अटैक से संबंधित पक्षों ने कई हसरतें पूरी कर ली हैं। वॉर रस में डूबी जनता जश्न मोड में आ चुकी है। स्कूलों में पढ़ाई की जगह बच्चों में भी नारे लगवा कर वॉर रस का संचार किया जा रहा है। जब तक इस वॉर रस का ख़ुमार उतरेगा तो धर्म का रस तैयार है।

पुलवामा पर तमाम प्रयोगशालाओं की साजिशें नाकाम रहीं

पुलवामा ने हमें बहुत कुछ दिया। जहां देश के लोगों ने सीआरपीएफ के 40 जवानों की शहादत पर एकजुट होकर अपने गम-ओ-गुस्से का इजहार किया, वहां तमाम लोगों ने नफरत के सौदागरों के खिलाफ खुलकर मोर्चा संभाला। पुलवामा की घटना के पीछे जब गुमराह कश्मीरी युवक का नाम आया तो कुछ शहरों में ऐसे असामाजिक तत्व सड़कों पर निकल आए जिन्होंने कश्मीरी छात्रों को, समुदाय विशेष के घरों, दुकानों को निशाना बनाने की कोशिश की लेकिन सभी जगह पुलिस ने हालात संभाले। लेकिन इस दौरान सोशल मीडिया के जरिए भारत की एक ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसकी कल्पना न तो किसी राजनीतिक दल के आईटी सेल ने की थी न किसी नेता ने की थी। उन्हें लगा था कि नफरत की प्रयोगशाला में किए गए षड्यंत्रकारी प्रयोग इस बार भी काम कर जाएंगे। देश की जानी-मानी हस्तियों ने, लेखकों ने, इतिहासकारों ने, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने, पत्रकारों ने, कुछ फिल्म स्टारों ने और सबसे बढ़कर बहुत ही आम किस्म के लोगों ने अपील जारी कर दी कि अगर किसी जगह किसी कश्मीरी या समुदाय विशेष के लोगों को नफरत फैलाकर निशाना बनाया जा रहा है तो उनके दरवाजे ऐसे लोगों को शरण देने के

एक कविता शहीदों के नाम...

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पुलवामा की बर्फीली सड़क और छद्म युद्ध

जब आप इस वक्त गहरी नींद में हैं, तब कश्मीर के पुलवामा में उन जवानों की लाशों के टुकड़े जमा किए जा रहे हैं, जिन्हें आतंकी हमले में मार दिया गया... मेरी नींद भी गायब है...मैं उन 42 नामों की सूची को पढ़ रहा हूं, जो अब हमारे बीच नहीं हैं। शहीदों की सूची में दूसरा ही नाम निसार अहमद का है... थोड़ा तसल्ली सी हुई कि चलो, भक्तों और भगवा ब्रिगेड को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा...कि मरने वाले एक ही धर्म या बिरादरी के थे...या इस्लामिक आतंकवाद ने सिर्फ एक ही धर्म वालों को मार दिया... जैश-ए-मोहम्मद या हिजबुल मुजाहिदीन सिर्फ एक ही धर्म या देश के दुश्मन नहीं है। दरअसल, वह मुसलमान और कश्मीरियत के दुश्मन हैं। ...जानते हैं इस हमले से कश्मीरी अवाम की आवाज कमजोर कर दी गई है। उनके साथ अब लिबरल लोग खड़े होने से छिटक जाएंगे।... हर हिंसक हमला बड़े आंदोलन को कमजोर कर देता है। खैर, ऐसे बहुत सारे निसार अहमद आज उन 42 लोगों में हो सकते थे, लेकिन बेचारे जब भर्ती किए जाएंगे, तभी तो ढेर सारे निसार अहमद ऐसी कुर्बानी देने को मिलेंगे।...यह एक शिकवा है, निसार अहमदों को जब भर्ती नहीं क