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कैसे यलगार हो...Kaise Yalgaar Ho

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होशियार हो जाओ...और तैयार हो जाओ... सिम सिम खुल जा और खुल गया... उस देश की फासिस्ट सरकार ने आपको चारों तरफ से घेर कर पटक दिया है। आप कहीं के नहीं रहे... आप उस देश में या तो नौकरी करते होंगे या करते रहे होंगे या मज़दूरी करते होंगे या करते रहे होंगे। नौकरियां जा रही है...या जाने वाली होंगी।...मज़दूरी का काम तब मिलेगा जब कहीं कुछ होगा।  आप इन चीज़ों के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे तो पुलिस दौड़ाकर पीटेगी... अगर आपने उस देश के अस्पतालों की हालत पर प्रदर्शन करना चाहा तो भी पीटे जाओगे। गोया आपके प्रदर्शन का हथियार भी छिन चुका है।  हरामखोरी के प्रतीक मिडिल क्लास के लिए फिर से हिन्दू मुसलमान का नैरेटिव तैयार है। वह इसी में उलझ जाएगा। बहुत होगा तो आपके लिए कैंडल लाइट लेकर खड़ा होगा। इसी मिडिल क्लास के बच्चों को फर्जी राष्ट्रवाद पढ़ा दिया गया है। (Nation First) देश पहले है - के बाद जिनकी चेतना औसत दर्जे से भी घटिया यूट्यूबर कैरी मिनाती  (CarryMinati) के “यलगार” (Yalgaar) जैसी धुनों पर ही जागती है। उसे कामगारों, मज़दूरों की भूख, उनकी तड़प, बीमारी से मतलब नहीं

आज का शुभ विचार...

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विनोद दुआ पर केस...सोशल मीडिया की ताक़त तो देखिए

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पत्रकार विनोद दुआ पर एफआईआर सोशल मीडिया का टर्निंग पॉइंट क्यों है  जाने-माने पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दिल्ली पुलिस में केस दर्ज किया जाना सोशल मीडिया के इतिहास में टर्निंग पॉइंट बन गया है। इस एफआईआर से साबित हो गया है कि मोदी सरकार सोशल मीडिया से किस कदर भयभीत है। भाजपा नेताओं की शिकायत पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पत्रकार विनोद दुआ पर फर्जी न्यूज फैलाने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की है। केंद्र में दोबारा सत्ता पाने के बाद मोदी सरकार ने पूरा फोकस मीडिया कंट्रोल पर कर दिया। इसका नतीजा यह निकला कि देश के सारे बड़े-बड़े चैनल और कुछ बड़े अखबार प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के सामने रेंगते नजर आए। मोदी सरकार ने किसी मीडिया हाउस को समझाकर काबू किया तो किसी को विज्ञापन और सत्ता का डर दिखाकर काबू किया।  अर्नब गोस्वामी, तिहाड़ी सुधीर चौधरी और अंजना ओम कश्यप जैसों की औक़ात ही क्या?   सोशल मीडिया का बड़ा काम प्रधानमंत्री की तीखी आलोचना की वजह से कई पत्रकार नौकरी से हाथ धो बैठे। मीडिया हाउसों ने सरकार के इशारे पर ऐसे पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इ

हमारे बाद अंधेरा नहीं, उजाला होगा...

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- ज़ुलेखा जबीन आजका दौर भारतीय नारीवाद के गुज़रे स्वर्णिम इतिहास पे चिंतन-मनन किए जाने का है... यक़ीनन ये वक़्त ठहर कर ये सवाल पूछने का भी है कि भारत के नारीवादी आंदोलन का वर्ग चरित्र हक़ीक़त में क्या और कैसा रहा है....! हालांकि इन बेहद ज़रूरी सवालों को कई तरह के "प्रतिप्रश्नों" के ज़रिए "उड़ा" दिए जाने की भरसक कोशिशें की जाएंगी लेकिन फ़िर भी असहज कर दिए जाने वाले सवाल उठाना जम्हूरियत की असली ख़ूबसूरती तो है ही, लोकतंत्र में जी रहे तमाम आम नागरिकों के नागरिक होने का इम्तिहान भी है।... पिछले कुछ दिनों से जामिया यूनिवर्सिटी की स्कालर और ग़ैर संवैधानिक #CAA, #NRC #NPR  पर एक नौजवान नागरिक #सफ़ूरा जरगर की गिरफ़्तारी, उस पर राजद्रोह से लेकर हत्या करने, हथियार रखने, दंगे भड़काने जैसी गतिविधियों सहित 18 धाराएं लगाई गई हैं।  इसके साथ ही जेल में की गई मेडिकल जांच में उसके प्रेग्नेंट होने की ख़बर सामने आने के बाद भारत के बहुसंख्यक समाज के लुंपन एलिमेंट्स की तरफ़ से सोशल मीडिया में जो शाब्दिक बवाल मचाया गया वो तो अपेक्षित था। जो अनापेक्षित रहा वो इ

एक माँ की क़ब्र पर ....

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यह एक माँ की क़ब्र है... मेरी सगी माँ नहीं लेकिन ऐसी माँ जो किसी की भी माँ हो सकती है।...दरअसल, ये एक दिहाड़ी पर काम करने वाले बेटे की माँ थी। इस मदर्स डे पर इनकी कहानी बताना ज़रूरी है। इनका नाम रहती बेगम था, 26 अप्रैल 2018 में इंतक़ाल हुआ था। 1990 में इनकी दुनिया बदल गई। इनके मज़दूर बेटे मोहम्मद रमज़ान शेख़ का श्रीनगर (कश्मीर) से ख़ाकी वर्दी पहने कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया। रहती बेगम ने हर कोना छान मारा, तलाशने की हर कोशिश की।  वह हर ज़ाहिर जगह और घाटी में बदनाम गुमनाम सेंटरों तक गईं जहाँ युवक बंद हैं। जहाँ से उनके कराहने की आवाज़ फ़िज़ाओं में गूँजतीं हैं। बादामी बाग़ कैंट इलाक़े से लेकर कार्गो सेंटर, पापा 2 के अलावा जहाँ- जहां ऐसे सेंटर बने हुए हैं, वो पहुँचीं। देखते देखते बेटे की तलाश में रहती बेगम ने 28 साल गुज़ार दिए।  2018 में इंतक़ाल के आख़िरी लम्हों तक उनकी आँखें दरवाज़े की तरफ रहीं जैसे बेटा अभी चलकर आ जाएगा।... नजीब और रोहित वेमुला की मां के आंसू आज भी नहीं सूखे हैं। कश्मीर ही नहीं देश में ऐसी न जाने कितनी रहती बेगम होंग

वे वहां गए ही क्यों थे

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जितनी मुंह उतनी बातें वे वहां सोए ही क्यों थे क्या वे सामूहिक आत्महत्या करने गए थे वे वहां गए ही क्यों थे क्या वे वहां रेलगाड़ियां ही रोकने गए थे आखिर उन मजदूरो का इरादा क्या था इसमें सरकार का क्या आखिर वे उसी शहर में रुक क्यों नहीं गए शहर दर शहर 24 मार्च से ही लौट रहे हैं वे लोग सबसे पहले दिल्ली-यूपी सीमा पर दिखी थी भीड़ तब भी हुआ था कुछ बसों का इंतजाम अब भी हुआ है कुछ बसों का इंतजाम लेकिन वे तो 8 मई तक भी चले ही जा रहे हैं क्यों नहीं खत्म हो रही उनकी अनवरत यात्रा जहां वो हैं वहां वो आम ट्रेन भी नहीं है जहां वो नहीं है वहां विशेष ट्रेन खड़ी है शोक संदेश आ गया है, व्यवस्था को कह दिया है वीडियो कॉन्फ्रेंस हो गई है, जांच को बोल दिया है तानाशाह के चमचे कान में फुसफुसाते हैं रेल लाइन पर पड़ी रोटियां न दिखाएं प्लीज वे वहां सोए ही क्यों वाला नैरेटिव बेहतर है वे वहां गए ही क्यों तो उससे बेहतर हेडिंग है प्राइम टाइम जोरदार है, विपक्ष से सवाल लगातार है घ

शिकार की तलाश में सरकार

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शिकार की तलाश में सरकार सरकार कोरोना वायरस में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए शिकार तलाश रही है... जब हम लोग घरों में बैठे हैं कश्मीर से कन्या कुमारी तक सरकार अपने एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है... ये भूल जाइए कि अरब के चंद लोगों से मिली घुड़की के बाद फासिस्ट सरकार दलितों, किसानों, आदिवासियों, मुसलमानों को लेकर अपना एजेंडा बदल लेगी। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और जामिया, एएमयू के छात्र नेताओं के खिलाफ फिर से केस दर्ज किए गए हैं। यह नए शिकार तलाशने के ही सिलसिले की कड़ी है। इस शिकार को तलाशने में पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है।  कश्मीर में प्रमुख पत्रकार पीरज़ादा आशिक, गौहर जीलानी और फोटो जर्नलिस्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। कश्मीर में अन्य पत्रकारों को भी धमकी दी गई है। यह भी फासिस्ट सरकार के एजेंडे का हिस्सा है। रमज़ान शुरू होने वाला है और सरकार ने अपने एजेंडे को तेज़ी से लागू करने का फैसला कर लिया है। ....क्या आपको लगता है कि अरब से कोई शेख़ आपको यहाँ बचाने आएगा? हमें अपने संघर्ष की मशाल खुद जलानी होगी। कोई न कोई रास्ता निकलेगा...