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आज सत्य जीता है....प्रशांत भूषण जीते हैं...

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हे सुप्रीम कोर्ट इसे इंसाफ का ड्रामा न कहें तो क्या कहें...प्रशांत भूषण पर एक रूपये का जुर्माना लगाकर आप क्या संकेत देना चाहते हैं??? प्रशांत भूषण आपकी यह क़ुर्बानी देश याद रखेगा। आपने सत्य की रक्षा की है। ...जब संविधान को रौंदा जा रहा हो तो यह क़ुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी। मशहूर वक़ील प्रशांत भूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने एक रूपये का जुर्माना लगाया। 15 सितम्बर 2020 तक इसे न भरने पर तीन महीने जेल में बिताने होंगे और तीन साल तक प्रेक्टिस पर रोक रहेगी। बहुत साफ़ है कि अदालत ने यह फैसला देकर प्रशांत भूषण के उस सांकेतिक प्रतिरोध को काउंटर करने की कोशिश की जिसमें प्रशांत भूषण ने अदालत पर कई संगीन आरोप लगाए थे। अब यहाँ कई सवाल खड़े हो गए हैं- 1. क्या #प्रशांतभूषण एक रूपये जैसी मामूली रक़म जमा करायेंगे या जेल जायेंगे?  2. अगर वो जेल जाते हैं तो प्रशांत विरोधी कहेंगे कि प्रशांत भूषण प्रचार के लिए ड्रामा कर रहे हैं। 3. लेकिन यह पूरी लड़ाई ही प्रशांत भूषण ने प्रतीकात्मक छेड़ी है। यानी मेरी राय में उन्हें जेल जाना चाहिए।  4. #अदालत की आलोचना कोई अवमानना नहीं है। जज के फ़ैसले की आलोचना क्यों नहीं हो सकत

यौमे आशूराः ऐ मुसलमां तू हुसैन बन, यज़ीदियत न रही है न रहेगी

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-जुलैखा जबीं ज़ुल्म और ज़ालिम से समझौता न करते हुए जान तक चली जाने के अंदेशे के बावजूद आवाज़े हक़ बुलंद करने का नाम ही कर्बला है... शहादते हुसैन के 1442 बरस बाद ये बिचारने का वक़्त है कि  मुसलमान आज किस ख़ेमे के बाहर खड़े हैं? किसकी ड्योढ़ी के पहरेदार हैं? यज़ीद की...? या मक्कार, फ़रेबी कूफ़ियों की...? जवाब चाहे जो आए लेकिन,  हुसैन के ताबेदार तो नहीं ही बन पाए हैं..!   अलबत्ता कूफ़ियों की मक्कारियों में सराबोर, आज के ज़्यादातर (भारतीय) मुसलमान "मर्द" (तथाकथित मज़हबी) आज के यज़ीदी हाकीम की गोद में जा बैठे हैं, ज़ाहिर है उनकी औरतें शौहर या कुनबापरस्ती से बाहर कैसे रह सकती हैं...? क़ुरआन में अल्लाह का फ़रमान है- "हम तुम्हें हर हालत में आजमाएंगे - ख़ौफ़ से,  फ़क़्रो-फ़ाक़े (भूख-प्यास) से। हम तुम्हें जानी और माली नुकसान के ज़रिए भी आज़माएंगे और ऐ नबी बशारत दे दीजिए सब्र करने वालों को - जब कोई मुसीबत नाज़िल (पड़ जाए) हो जाए उन पर तो कहें, इन्नालिल्लाहे व इन्ना इलैही राजेऊन - हम अल्लाह ही के हैं और अल्लाह ही की तरफ़ हमें लौट जाना है... ये हैं वो लोग जिनकोे उनके रब

क्या भारतीय मीडिया पर बुलडोजर चलाने की जरूरत है... If Indian Media Should be Buldoz

 मुंबई के पत्रकार मित्र उमा शंकर सिंह ने लिखा है कि नोएडा में जितने भी न्यूज़ चैनल हैं, उनकी बिल्डिंगों पर बुलडोज़र चला दिए जाएँ। ताकि इन चैनलों को हमेशा के लिए नेस्तोनाबूद कर दिया जाए। उमा भाई की यह टिप्पणी यूँ ही नहीं आई, बल्कि इसके पीछे उनकी जो टीस छिपी हुई है, उसे समझना और उस पर बात करना बेहद ज़रूरी है। दरअसल, सबसे तेज़ चैनल और एक चावल व्यापारी के चैनल ने सिविल सर्विस के फ़ाइनल नतीजे आने के बाद ख़बरें चलाईं कि मुस्लिम युवक युवतियों को सिविल सर्विस के जरिए भारत सरकार की नौकरियों में घुसाया जा रहा है। उसमें यह भी बताया गया कि साल दर साल सिविल सेवा में परीक्षा देने वाले मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है। यह चिंता की बात है। इस संबंध में सबसे पहले इंडियन पुलिस फ़ाउंडेशन ने ट्वीट करके ऐतराज़ जताया। फ़ाउंडेशन ने कहा कि यह बहुत शर्म की बात है कि मीडिया इस तरह नफ़रत फैलाकर देश में अस्थिरता पैदा करना चाहता है। फ़ाउंडेशन मे न्यूज़ चैनलों की संस्था ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड से इस संबंध में कार्रवाई को कहा। पत्रकार उमा शंकर सिंह और हमारे जैसे लोगों ने भी लश्कर

सॉफ़्ट हिन्दुत्व की बिसात पर मुस्लिम राजनीति

अयोध्या में 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर के लिए हुए भूमि पूजन के फौरन बाद जिस शख्स की प्रतिक्रिया  सबसे ज्यादा वायरल हुई , वह हैदराबाद के सांसद असद्दीन ओवैसी थे। उन्होंने  भूमि पूजन के ठीक पहले  कहा  था   –   ‘ बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी, इंशाल्लाह ’ । हालांकि ओवैसी ने भूमि पूजन  के दौरान मोदी के भाषण को  लेकर कई  और  बयान  भी  दि ए लेकिन उनके  सबसे पहले वाले  बयान  को  मुसलमानों के छोटे से लेकर बड़े संगठनों और मौलानाओं ने  अपनी प्रतिक्रिया में  अनुसरण किया। बाबरी मस्जिद पर  ओवैसी के बयान पर  मुसलमानों  का ऐसा रुझान कभी नहीं देखा गया ।  ओवैसी ने 5 अगस्त की सुबह फज्र की नमाज पढ़ने के फौरन बाद इस बयान को ट्वीट किया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसी बयान पर अपना स्टैंड साफ कर दिया। यह वही बोर्ड है, जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार किया था।    9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने जब मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था तो उस समय मुसलमानों की ऐसी प्रतिक्रिया नहीं आई थी। अगर भाजपा-आरएसएस  5 अगस्त को  भूमि पूजन या मंदिर निर्माण को ज्यादा हाई प्रोफाइल इवेंट नही

हिन्दुत्व के नए एजेंडे का आग़ाज़ है मोदी का नया नैरेटिव

मेरा यह लेख जनचौक डॉट कॉम पर प्रकाशित हो चुका है। इसे यहाँ हिन्दीवाणी के नियमित पाठकों के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है। मोदी ने कल अयोध्या में अपने भाषण में स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) की तुलना राम मंदिर आंदोलन  (RJB Movement) से कर दी।  मुझे लगा कि जरूर तमाम देशभक्तों का ख़ून खौलेगा और इस पर वो मोदी को आड़े हाथों लेंगे। लेकिन देशभक्तों ने मोदी के इस नैरेटिव (विचार) को स्वीकार कर लिया है।  मोदी नया नैरेटिव गढ़ने में माहिर है।  सब जानते हैं कि देश की आजादी की लड़ाई में शहीदेआजम भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अशफाकउल्लाह खान से लेकर गांधी जी तक किसका क्या योगदान था। लोग धर्म, जाति, क्षेत्र की परवाह किए बिना इसमें शामिल थे। लेकिन मोदी का नैरेटिव कहता है कि आरजेबी मूवमेंट आजादी की लड़ाई से भी बड़ा आंदोलन था।  आजादी के जिस आंदोलन ने देश को एकता के धागे में पिरोया, आज वह एक धर्म विशेष के चंद लोगों के आंदोलन के सामने बौना हो गया। मोदी ने अपना नया नैरेटिव पेश करने के दौरान गांधी जी का नाम लिया। लेकिन उसी मुँह से गांधी के हत्यारे और हिन्दू महासभा के सदस्य नाथूराम गोडस

हागिया सोफिया और बाबरी मस्जिद ः एक जैसे हालात...बस किरदारों का है फर्क

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मेरा यह लेख द प्रिंट वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुका है। हिन्दीवाणी के पाठकों तक पहुंचाने के लिए उस लेख को यहां भी पेश किया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां वह लेख असंपादित है। - यूसुफ किरमानी तुर्की में हागिया सोफिया म्यूजियम को फिर से मस्जिद बनाने का फैसला होने पर भारत में सेकुलरवादी दो धड़ो में बंट गए। बड़ा अटपटा है, कहां तुर्की और कहां भारत – हजारों किलोमीटर का फासला। लेकिन भारत में इस पर तीखी बहस शुरू हो गई। अब जबकि तुर्की के सुप्रीम कोर्ट ने इस म्यूजियम को मस्जिद बनाने के पक्ष में फैसला दे दिया है तो भारत में बाबरी मस्जिद बनाम राम मंदिर का मुद्दा फिर से बहस के केंद्र में आ गया है। इतना ही नहीं भारत में दक्षिणपंथी गिरोह के लोग अचानक म्यूजियम के बचाव में आ गए हैं और वे आधुनिक तुर्की के इतिहास का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि वहां के सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत है। अगर उस म्यूजियम को मस्जिद में बदला गया तो अनर्थ हो जाएगा। बहस दिलचस्प होती जा रही है।  भारत में सेकुलरवादियों का एक धड़ा कह रहा है – जैसे भारत में मस्जिद की जगह मंदिर बनाने के सुप्रीम कोर्ट के

मार्क जुकरबर्ग...हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी

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बड़ी कंपनियों के विज्ञापन बहिष्कार के फैसले ने फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग (#MarkZukerberg) को घुटनों पर खड़ा कर दिया है। सोमवार को अपने वीडियो संदेश में जुकरबर्ग ने कहा कि अब से फेसबुक उन राजनीतिक दलों के नेताओं के पोस्ट या कंटेंट पर फ्लैग लगाकर चेतावनी देगा, जो नफरत या साम्प्रदायिकता, झूठ फैलाएंगे। उनका इशारा अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के विवादास्पद बयानों और ट्वीट को लेकर बनने वाली खबरों या कंटेंट की तरफ था। इस समय अमेरिका में ट्रंप के फर्जी, नफरत फैलाने और छल कपट वाले बयानों को लेकर जनता में बहुत गुस्सा है। इसे देखते हुए अमेरिका की तमाम बड़ी कंपनियों ने फेसबुक पर अपने विज्ञापन दिखाने पर रोक लगा दी है।  क्या भारत की किसी कंपनी की इतनी औकात है कि वह किसी अखबार, किसी चैनल या फेसबुक समेत तमाम सोशल मीडिया साइटों से कह सके कि तुम लोग नफरत को फैलाते हो, एक राजनीतिक दल की विचारधारा को पालपोस रहे हो, जाओ हम तुम्हें विज्ञापन नहीं देते। एक भी कंपनी ऐसा नहीं कर पाएगी। यहां तक कि जिन कंपनियों का नियंत्रण तमाम सेकुलर लोगों के पास है, वे भी ऐसा नहीं कर पाएंगे। लेकिन अमेरिका में क