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‘मुस्लिम साहित्य’ से धर्मांतरण सरकार का नया शिगूफ़ा

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मेरे घर में गीता है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है?  मेरे पास घर में बाल्मीकि रामायण है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है?  मेरे पास सत्यार्थ प्रकाश भी है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है? क्या इनसे मेरा धर्मांतरण कराया जा सकता है? मुझे हिन्दू बनाया जा सकता है। इन किताबों में कहीं नहीं लिखा है कि इसके पढ़ने से किसी का धर्मांतरण हो जाएगा या उसका धर्मांतरण कराया जा सकता है। धार्मिक पुस्तकों के आधार पर  हिन्दू साहित्य और मुस्लिम साहित्य की नई परिभाषा यूपी की पुलिस गढ़ रही है। यूपी पुलिस ने दिल्ली के जामिया नगर से धर्मांतरण कराने के आरोप में जिन दो लोगों को पकड़ा है, उनके पास मुस्लिम साहित्य बरामद होने की बात कही गई है। ये खबर पुलिस ने अख़बारों में छपवाई है और ताज्जुब है कि मीडिया ने बिना सवाल किये उसे ज्यों का त्यों प्रकाशित कर दिया है। क्या किसी मुस्लिम का अपने घर में क़ुरान, हदीस और दुआओं की किताब रखना अब इस देश में अपराध माना जाएगा? क्या क़ुरान, हदीस और दुआ की किताबें मुस्लिम साहित्य हैं?  यह सरकार अफ़ग़ानिस्तान में खुद को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए दोहा कतर में तालिबानी लड़ाकों से बात कर रही है

बस, दो बच्चे...मुल्लों को टाइट करने का शानदार इंतजाम

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  जनसंख्या नियंत्रण के लिए असम और यूपी सरकार की दो बच्चों की नीति को हमारा पूरा समर्थन... यहां हमारा से मतलब मेरा नहीं पढ़ें। हमारा से मतलब समस्त मुसलमान, जिनकी ठेकेदारी मेरे पास है, उनकी ओर से मैं इस नीति का समर्थन देने का वचन देता हूं। यह बहुत अच्छी नीति है, जितनी जल्दी हो सके इसे लागू किया जाना चाहिए। इस नीति से तो मुल्ले एकदम टाइट होकर जमीन पर आ गिरेंगे। मुसलमानों की चूड़ी कसने के लिए दो बच्चों की नीति से अच्छा कदम और नहीं हो सकता। वैसे मुल्ले चाहें तो आपदा में अवसर समझकर इस योजना को लपककर आत्मसात कर लें और भारत की मुख्य़धारा में न रहने का अपना कथित दाग धो लें। हालांकि सरकार को यह नीति सिर्फ मुल्लों के लिए लाना चाहिए क्योंकि जल्द ही गैर मुसलमानों के कई समुदाय और राज्य इसका विरोध करेंगे। ऐसे में सरकार को दिक्कत आ सकती है। अभी भी समय है, दो बच्चों की पॉलिसी सिर्फ मुसलमानों के लिए बने। ...जो तथाकथित बुद्धिजीवी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के 7 भाई-बहन, प्रधानसेवक मोदी के 6 भाई-बहन, अमित शाह 7 बहन-भाई, मायावती के 8 भाई-बहन, लालू यादव के 12 बच्चों का उदाहरण दे रहे हैं, वे देशद्रोही हैं। अरे

ईरान में आ रहे हैं रईसी, परेशान हैं पूँजीवादी मुल्क और उनके पिट्ठू

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मुस्लिम राष्ट्रों में पाकिस्तान के बाद ईरान के चुनाव पर पूरी दुनिया की नज़र रहती है। ...तो वहाँ के नतीजे आ रहे हैं और तस्वीर साफ़ हो चुकी है। ईरान के बाद सबसे ज़्यादा शिया मुसलमान भारत और पाकिस्तान में हैं। इसलिए इन दोनों देशों के मुसलमानों की नज़र भी ईरान के आम चुनाव पर है।  ईरान में हुए राष्ट्रपति चुनाव में इब्राहीम रईसी को सबसे ज़्यादा वोट मिले हैं और उनका राष्ट्रपति बनना लगभग तय है। वो सरकार के आलोचक रहे हैं और उन्हें सिद्धांतवादी माना जाता है। यानी एक शिया हुकूमत में लोकतंत्र कैसे चलाया जाना चाहिए, उन्हें सिद्धांतवादी या उसूली माना जाता है।ईरान में जिस तरह अल्पसंख्यकों (यहूदियों, सुन्नियों, सिखों) को अधिकार प्राप्त हैं, उसके वो प्रबल समर्थक हैं। वह करप्शन के सख़्त ख़िलाफ़ हैं। पाकिस्तान में बीच बीच में सैन्य शासन भी आ जाता है लेकिन ईरान में 1978-79 की इस्लामिक क्रांति के दौरान शाह रज़ा पहलवी को उखाड़ फेंकने के बावजूद वहाँ कभी सेना ने सत्ता पर क़ब्ज़ा नहीं किया। ईरान में उस समय भी चुनाव हुए और आज भी जारी है। कौन हैं इब्राहीम रईसी ———————— इब्राहीम रईसी ईरान की सुप्रीम कोर्ट के चीफ़

मुसलमानों के नाम खुला पत्र

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बिरादरान-ए-मिल्लत अस्सलामअलैकुम, यह ख़त ज़रूरी वजह से लिखना पड़ रहा है।  अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर जो चंदा जमा हुआ, उसमें बड़े घोटाले का आरोप मंदिर के ट्रस्टी चंपत राय एंड कंपनी पर लगा है। दो करोड़ की ज़मीन बीस करोड़ में ख़रीदना दिखाया गया है।  मेरा मुस्लिम दोस्तों से निवेदन है कि वे इस मुद्दे पर टीका टिप्पणी से बचें। ये देश का नहीं असली और नक़ली सनातियों के बीच का मामला है। देखना है कि सनातन धर्म के झंडाबरदार राम के नाम पर बनने वाले मंदिर के घोटाले पर क्या कदम उठाते हैं। आप लोग तमाशा देखिए।  हो सकता है कि #आरएसएस इस मामले को पलट दे और घोटाले का आरोप लगाने वालों को ही फँसाकर ग़ैर हिन्दू करार दे दे। हमें चांस विवाद में पार्टी नहीं बनना है।  दरअसल, यह सब #यूपी_विधानसभा_चुनाव_की_तैयारी का हिस्सा है। क्या पता कोई नूरा कुश्ती हो? क्या पता योगी ने ही काग़ज़ लीक करा दिए हों या आइडिया दिया हो। क्योंकि चंपत राय सीधे मोदी का आदमी है। चंपत और #संघ का सीधा संवाद होता है, उसमें कोई योगी नहीं आता। भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, आप...ये सब कुल मिलाकर हिन्दूवादी पार्टियाँ हैं। इन सभी दलों के नेताओं

रज़िया सुल्ताना के बहाने चंद बातें

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इस बेटी का नाम है रज़िया सुल्ताना। ये बिहार की पहली मुस्लिम महिला डीएसपी बनी हैं। रज़िया बिहार के हथुआ गोपालगंज के रहने वाले असलम साहब की बेटी है।  बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) में अच्छी रैंक लाने वाली इस बेटी को आप मुबारकबाद दे सकते हैं। बिहार के कई और मुस्लिम बच्चे भी बीपीएससी में टॉप रैंक लाएं हैं। मैं #बिहार का रहने वाला नहीं हूँ।  मैं यूपी का रहने वाला हूँ। दिल्ली एनसीआर में रहता हूँ। ऐसी खबरों का साझा करने का मक़सद ये बताना है कि जिस अब्दुल पंक्चर वाले की तस्वीर अब तक पेश की जाती रही हैं, ये बेटियाँ उन्हीं की हैं।  देश की 35-40 करोड़ #मुस्लिम_आबादी में हालाँकि रज़िया सुस्ताना जैसी बेटियों का अनुपात अभी बहुत कम है। लेकिन इंशाअल्लाह जब हमारा मुआशरा इस तरफ़ सोचने लगा है तो बदलाव ज़रूर आएगा।  राजनीति या किसी सरकार किसी सरकार के भरोसे हमारा मुआशरा नहीं बदलेगा। #राजनीति जब बदलाव के लिए कारगर बनती थी, तब बनती थी। अब वो हमारे लिए अछूत हो जानी चाहिए।  मैं तो यह तक कह रहा हूँ कि अपनी बिरादरी के किसी भी नेता के वादे पर यक़ीन नहीं कीजिए। वह ख़ास मक़सद के लिए राजनीति में आए हैं। वो आप

भारतीय सिख या गोल्डन इंसान कहें उन्हें

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सिखों के गोल्ड दान की बहुत तारीफ़ हो रही है... वो लोग हमेशा तारीफ़ के क़ाबिल काम करते हैं।...इसमें रत्ती भर शक नहीं है। लेकिन मुझे ग़ुस्सा उस आक्रमणकारी महमूद गजनवी और उन चंद मुगल हमलावरों पर आ रहा है जो हमारे देश के मंदिरों का सोना लूटकर ले गए। इन लोगों को क्या गाली दूँ?  वो गोल्ड बचा रहता तो आज हमारे बहुसंख्यक सनातनी भाई भी मंदिरों के गोल्ड से स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी और अस्पताल बनवा रहे होते।  लेकिन अभी भी सनातनियों का सामर्थ्य मरा नहीं है। वे बहुत बड़े दानवीर हैं।  जोश में आ जाएँ तो सनातनी भाई सिखों से भी बड़ा चमत्कार कर सकते हैं।  #अयोध्या में भव्य #राम_मंदिर के लिए जो कौम कई अरब रूपये चंदा दे सकती है। उसके लिए सैकड़ों यूनिवर्सिटी खड़ी कर देना मामूली बात है। अस्पताल, कॉलेजों के लिए भी सनातनी चंदा क्यों नहीं  देंगे ? सनातनी जाग उठा है। वह अब मंदिर से आगे जाकर सोच रहा है। मुबारक। इस शिकायत में कोई दम नहीं है कि सनातनी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार आदि के बजाय मंदिर को ज़्यादा महत्व दे रहे हैं। एक बार मंदिर बन जाये तो वे ज़रूर इन ज़रूरतों पर भी ध्यान देंगे। बहरहाल, बात हम सिखों पर कर

महिला दिवस की बधाई देने वालों के किरदार तो देखें

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  आज महिला दिवस की बधाई वे लोग भी दे रहे हैं जिनकी अवधारणा में - वीर भोग्या वसुंधरा - शामिल है। इस अवधारणा के तमाम क्रूरतम इंटरपेटेशन (मीमांसा) आप लोगों ने पढ़े होंगे। चलिए, हम वीर भोग्या वसुंधऱा की अवधारणा पर बहस नहीं करते। हम महिलाओं की आजादी पर बात करते हैं। वीर भोग्या वसुंधरा वाले वे लोग हैं जिन्होंने गढ़ी गई छवियों वाली महिलाओं के अपने सनातनी कुनबे से बाहर निकल कर कभी उन महिलाओं की जीवनगाथा का अध्ययन नहीं किया, जिन्होंने वास्तविक क्रांतियां कीं या समाज को नई दिशा दी। भाजपा-आरएसएस ने जो नैरेटिव सेट कर दिया, बस उन्हीं महिलाओं के गुणगान से सनातनी पीढ़ी निहालोनिहाल है। इन सनातनियों के मुंह से कभी सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख का नाम नहीं निकलता। इनका इतिहास लेखन इन दो महिलाओं पर मौन है। इनके अनुषांगिक (फ्रंटल) संगठनों के नाम पौराणिक महिलाओं के नाम पर हैं, इतिहास में जीवित किरदारों से एक भी संगठन नाम नहीं है। सुंदर लाल बहुगुणा न बताते तो हम लोग जान ही नहीं पाते कि उत्तराखंड में महिलाओं ने पेड़ों को बचाने के लिए क्या कुर्बानियां दीं। इन्हें ग्रे