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सुधा भारद्वाज के मामले में एनआईए ऐसे हुई पस्त...

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 7 दिसंबर को आदिवासियों के अधिकार के लिए लड़ने वाली वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की रिहाई का रास्ता साफ़ कर दिया। सुप्रीम अदालत ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एनआईए की अपील को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि वकील और कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज भीमा कोरेगांव मामले में "डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने के हकदार थे"। #एनआईए ( राष्ट्रीय जांच एजेंसी ) की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने तर्क दिया कि बॉम्बे उच्च न्यायालय यह गलत समझ रहा है कि #सुधा_भारद्वाज डिफ़ॉल्ट जमानत की हकदार थीं, और उन्होंने 2020 से सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का विरोध किया, जिसके कारण यह निष्कर्ष निकला था। हालांकि, जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और बेला भाटिया की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एनआईए की दलीलों में कोई दम नहीं पाया और अपील को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि उन्हें #बॉम्बे_हाई_कोर्ट के आदेश में दखल देने का कोई कारण नहीं दिखता। बहरहाल, सुधा भारद्वाज को अब बुधवार, 8 दिसंबर को मुंबई में विशेष एनआईए अदालत के समक्ष पेश किया, जैसा कि बॉम्बे ह

सरकारी बैंकों के प्राइवेट होने में जानिए अपना नफा-नुकसान

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  केंद्र सरकार अगले तीन दो-चार दिनों में सरकारी बैंकों के निजीकण का बिल संसद में पेश करने जा रही है। इस प्रस्तावित विधेयक को लेकर सरकारी बैंक कर्मचारियों में खलबली मची हुई हैं। बैंक यूनियनों ने दो दिन (16-17 दिसम्बर) की राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा कर दी है। बतौर नागरिक आपको जानना चाहिए कि मोदी सरकार सरकारी बैंकों के निजीकरण ( Bank Privatization ) की तरफ जो कदम बढ़ा रही है, वो सही है या गलत। उससे आप कहां तक प्रभावित होंगे। अभी प्राइवेट बैंकों की जो स्थिति है, क्या आप उससे संतुष्ट हैं। सबसे पहले यह तथ्य जान लीजिए कि अगर सरकारी बैंकों को प्राइवेट करने का बिल संसद में पास हो गया तो सरकारी बैंकों में अभी सरकार की हिस्सेदारी जो 51 फीसदी है, वह घटकर 26 फीसदी हो जाएगी। ऐसे में अगर वो बैंक डूबता है तो आपके पैसों की जिम्मेदारी सरकार की नहीं के बराबर होगी।    सरकार सिर्फ दो बैंकों सेंट्रल बैंक आफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज को प्राइवेट करने का विधेयक संसद में 6 दिसम्बर को लाने जा रही है। दरअसल, नीति आय़ोग ने निजीकरण के लिए विनिवेश पर सरकारी सचिवों के कोर ग्रुप की बैठक में कहा था कि दो सरकारी बैं

सिख फिर टारगेट पर

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धर्म के नाम पर या धार्मिक पुस्तक के नाम पर किसी की हत्या हमेशा निन्दनीय ही होती है।  ऐसी हत्याओं को जायज़ ठहराना ठीक उसी तरह है जिस तरह गांधी की हत्या के लिए आज गोडसे और सावरकर को उसके मानस पुत्र जायज़ ठहरा रहे हैं।  गांधी की हत्या का आधार भी धर्म था। हत्यारे ने इसे स्वीकार भी किया है। हत्यारे के अनुयायी आज भी इस बात को खुलेआम कहते घूम रहे हैं। वे हत्यारे गोडसे की प्रतिमाएँ स्थापित कर रहे हैं। लिंचिंग में भी हत्याएं भी धर्म के आधार पर हुईं।  भारत में लिंचिंग के ज़िम्मेदार हत्यारों को नैशनल हीरो तक बनाया गया। तमाम धार्मिक दंगों के आयोजकों को सत्ता के नज़दीक पहुँचाया गया। अदालतों और आयोगों ने ऐसे दागी लोगों को क्लीन चिट तक दे दी। लेकिन क्लीन चिट मिलने के बावजूद क्या वे उन नज़रों में बेदाग़ साबित हो पाए?  जब लिंचिंग हो और लोगों के मुँह सिले रहें, तब कैसा लगता है? तब आपका धर्म, आपका फ़्रॉड दागी राष्ट्रवाद और आपकी आकाशवाणी आड़े नहीं आती है।  धर्म निजी और आस्था का मामला होने के बावजूद कुछ धर्मों को राष्ट्र धर्म के रूप में पेश किया जा रहा है।  भारत में धर्म संवैधानिक संस्थाओं से ऊपर हो गए हैं

बंदर है मुद्दा

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मथुरा-वृंदावन में बंदरों की बहुत समस्या है।  वो माँस नहीं खाने वाले मथुरा की अध्यात्मिक जनता को बहुत परेशान करते हैं।  योगी मथुरा आए। उन्हें यह समस्या बताई गई। उन्होंने कहा कि हनुमान चालीसा पढ़िए बंदर परेशान नहीं करेंगे। लेकिन मथुरा का मेयर मुकेश आर्यबंधु कह रहा है कि बंदर बहुत ज़ालिम कौम होती है। उसने कुछ बंदर पकड़वाए लेकिन योगी के बयान के बाद अभियान बंद कर दिया। अब पूरा मथुरा हनुमान चालीसा पढ़ रहा है लेकिन बंदर अपनी हरकत से बाज नहीं आ रहे हैं। वो मथुरा में महिलाओं की साड़ी तक खींच ले रहे हैं।  यानी मथुरा वृंदावन में बंदर नए गुंडे बन गए हैं। कुछ साधू महात्मा कह रहे हैं कि बंदरों की सक्रियता रामराज्य आने का संकेत है। तो कृपया जो लोग बंदर विरोधी सोच रखते हैं वे उसका परित्याग कर दें।  लेकिन मुद्दे पर आते हैं। मथुरा का मेयर बंदर की जाति बता रहा है। देश ओबीसी जनगणना की माँग कर रहा है और मेयर बंदर की जाति बता रहा है। उन्हें ज़ालिम कौम कह रहा है। तो क्यों न योगी/मोदी/मोहन भागवत भारत में सारे पक्षियों, पशुओं की जाति की जनगणना भी करा दें।  उदाहरण के लिए राष्ट्र माता गाय को ब्राह्मण घोषित किया

हमारा डीएनए एक कैसे हो सकता है

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 भला हमारा डीएनए एक कैसे हो सकता है? उनके डीएनए में माफीवीर है और हमारे डीएनए में वीर अब्दुल हमीद है। आज ‘वीर अब्दुल हमीद’ का शहादत दिवस है। उन्हें 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध का  योद्धा भी कहा जाता है। लेकिन उनके ही नाम के साथ ‘वीर’ शब्द ज़्यादा खिलता और जँचता है। हालाँकि भारत में अंग्रेजों से माफी मांगने वाले को भी ‘वीर’ कहा जाता है, लेकिन परमवीर चक्र से सम्मानित वीर अब्दुल हमीद ने 1965 के भारत-पाक युद्ध में अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए वीर का दर्जा हासिल किया था। लेकिन हद तो यह है कि चंद फ़र्ज़ी वीरों के चित्र तो अब भारतीय संसद में भी शोभा बढ़ा रहे है। लेकिन इन माफ़ी वीरों की वजह से भगत सिंह और वीर अब्दुल हमीद जैसों का क़द कम नहीं हो जाता।  भारत सरकार चाहती तो आज ‘वीर अब्दुल हमीद’ की जयंती बड़े पैमाने पर मनाकर खुद को देशभक्त साबित कर सकती थी। क्या किसी संगठन, एनजीओ, राजनीतिक दल ने यह सवाल कभी उठाया कि ‘वीर अब्दुल हमीद का शहादत दिवस’ सरकारी तौर पर क्यों नहीं मनाया जाता?  यह इस देश का मुक़द्दर है कि फ़र्ज़ी राष्ट्रवादियों के गिरोह ने अपना डीएनए हर जगह फैला दिया है। या ये कहिए

‘मुस्लिम साहित्य’ से धर्मांतरण सरकार का नया शिगूफ़ा

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मेरे घर में गीता है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है?  मेरे पास घर में बाल्मीकि रामायण है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है?  मेरे पास सत्यार्थ प्रकाश भी है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है? क्या इनसे मेरा धर्मांतरण कराया जा सकता है? मुझे हिन्दू बनाया जा सकता है। इन किताबों में कहीं नहीं लिखा है कि इसके पढ़ने से किसी का धर्मांतरण हो जाएगा या उसका धर्मांतरण कराया जा सकता है। धार्मिक पुस्तकों के आधार पर  हिन्दू साहित्य और मुस्लिम साहित्य की नई परिभाषा यूपी की पुलिस गढ़ रही है। यूपी पुलिस ने दिल्ली के जामिया नगर से धर्मांतरण कराने के आरोप में जिन दो लोगों को पकड़ा है, उनके पास मुस्लिम साहित्य बरामद होने की बात कही गई है। ये खबर पुलिस ने अख़बारों में छपवाई है और ताज्जुब है कि मीडिया ने बिना सवाल किये उसे ज्यों का त्यों प्रकाशित कर दिया है। क्या किसी मुस्लिम का अपने घर में क़ुरान, हदीस और दुआओं की किताब रखना अब इस देश में अपराध माना जाएगा? क्या क़ुरान, हदीस और दुआ की किताबें मुस्लिम साहित्य हैं?  यह सरकार अफ़ग़ानिस्तान में खुद को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए दोहा कतर में तालिबानी लड़ाकों से बात कर रही है

बस, दो बच्चे...मुल्लों को टाइट करने का शानदार इंतजाम

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  जनसंख्या नियंत्रण के लिए असम और यूपी सरकार की दो बच्चों की नीति को हमारा पूरा समर्थन... यहां हमारा से मतलब मेरा नहीं पढ़ें। हमारा से मतलब समस्त मुसलमान, जिनकी ठेकेदारी मेरे पास है, उनकी ओर से मैं इस नीति का समर्थन देने का वचन देता हूं। यह बहुत अच्छी नीति है, जितनी जल्दी हो सके इसे लागू किया जाना चाहिए। इस नीति से तो मुल्ले एकदम टाइट होकर जमीन पर आ गिरेंगे। मुसलमानों की चूड़ी कसने के लिए दो बच्चों की नीति से अच्छा कदम और नहीं हो सकता। वैसे मुल्ले चाहें तो आपदा में अवसर समझकर इस योजना को लपककर आत्मसात कर लें और भारत की मुख्य़धारा में न रहने का अपना कथित दाग धो लें। हालांकि सरकार को यह नीति सिर्फ मुल्लों के लिए लाना चाहिए क्योंकि जल्द ही गैर मुसलमानों के कई समुदाय और राज्य इसका विरोध करेंगे। ऐसे में सरकार को दिक्कत आ सकती है। अभी भी समय है, दो बच्चों की पॉलिसी सिर्फ मुसलमानों के लिए बने। ...जो तथाकथित बुद्धिजीवी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के 7 भाई-बहन, प्रधानसेवक मोदी के 6 भाई-बहन, अमित शाह 7 बहन-भाई, मायावती के 8 भाई-बहन, लालू यादव के 12 बच्चों का उदाहरण दे रहे हैं, वे देशद्रोही हैं। अरे