संदेश

भारतीय लोकतंत्र पर जॉर्ज सोरोस की टिप्पणी को समझिए

चित्र
Decoding George Soros comment on Indian Democracy  - यूसुफ किरमानी  अडानी मुद्दे के बहाने भारत में लोकतंत्र पुनर्जीवित हो सकता है यह बात एक विदेशी पूँजीपति सोचता है। उनका नाम है जॉर्ज सोरोस (George Soros)।  जबकि हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा कि अडानी समूह भारत को व्यवस्थित ढंग से लूट रहा है। एक मुद्दा, दो विदेशी विचार। पूँजीपति जॉर्ज सोरोस का बयान आने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इसे भारत पर हमला बताया। हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह ने भी यही कहा था कि उनके ख़िलाफ़ रिपोर्ट आने का मतलब भारत पर हमला है। तो, इस बात पर अडानी समूह (Adani Group) और केंद्र की मोदी सरकार सहमत हैं कि भारत पर विदेशी लोग हमला कर रहे हैं। लेकिन हमले के केंद्र में अडानी समूह है। कौन किसका बचाव कर रहा है। इस पर माथापच्ची न करते हुए आगे जॉर्ज सोरोस पर बात करते हैं। जॉर्ज सोरोस पर कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने पार्टी की ओर से यह कहने की कोशिश की है कि यह हमारा अपना मामला है, आप क्यों बीच में कूद पड़े। लेकिन जयराम रमेश या उनकी कांग्रेस पार्टी वास्तविकता से मुँह मोड़ रहे हैं।  जॉर्ज सोरोस खुद पूँज

बात नफरत की दूर देश तक जा पहुंची है

चित्र
India's hate environment is being discussed abroad भारत में बने नफ़रत (hate) के माहौल को लेकर भले ही कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी को चिन्ता हो, लेकिन दुनिया में कई और जगहों पर भी इस पर चिन्ता जताई जा रही है। अगर कोई नहीं समझने को तैयार है, तो वो हैं - भाजपा और आरएसएस (BJP, RSS)। जिस देश में महंगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी, अशिक्षा, दम तोड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था मुद्दा ही नहीं हैं। राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर बहस अफ़्रीका से चीता लाए जाने और उन्हें छोड़ने पर हो रही हो।   दो दिन पहले जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के बर्कले सेंटर फॉर रिलिजन, पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स के एक वरिष्ठ फेलो जॉक्लीने केसरी ने द कन्वर्सेशन यूएस की एक पत्रकार और संपादक कल्पना जैन के साथ भारत में मुस्लिम विरोधी अभद्र भाषा और हिंसा (hate violence) के उदय पर चर्चा की। विद्वानों और पत्रकारिता के दृष्टिकोण को मिलाकर, दोनों ने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने देश के हिंदू बहुसंख्यकों के बीच मुसलमानों के प्रति साम्प्रदायिक नज़रिया और माहौल का निर्माण किया है।       2014 में मोदी के सत्ता मे

देश में शॉर्टकट पॉलिटिक्स कौन कर रहा है

चित्र
Shortcut Politics in India: Leaders and their Character   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को विपक्षी दलों पर शॉर्टकट पॉलिटिक्स करने का आरोप लगाते हुए उन्हें चेतावनी दी। शॉर्टकट पॉलिटिक्स का मतलब है राजनीति में जल्द सफलता हासिल करने के नुस्खे। पीएम मोदी का यह जुमला सोमवार को देश के कुछ अखबारों की सुर्खियां बन गया। लेकिन इन सुर्खियों में वो बात कहीं नहीं लिखी गई कि दरअसल, कौन सा राजनीतिक दल शॉर्टकट पॉलिटिक्स में विश्वास नहीं रखता है। बल्कि अगर सलीके से इस बात को कहा जाए, तो आधुनिक भारतीय राजनीतिक इतिहास में मोदी जी शॉर्टकट पॉलिटिक्स के मसीहा बन गए हैं। उनके जुमलों पर नजर डालते जाइए और शॉर्टकट पॉलिटिक्स को समझते जाइए।     क्यों कही पीएम मोदी ने यह बात   उससे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर पीएम मोदी ने किस वजह से बीजेपी को छोड़कर बाकी राजनीतिक दलों को शॉर्टकट पॉलिटिक्स न करने की चेतावनी दी। दरअसल, हाल ही में गुजरात, हिमाचल, एमसीडी के अलावा कुछ उपचुनावों के नतीजे आए हैं। गुजरात को छोड़कर बीजेपी बाकी जगह हार गई है। आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली, पानी के वादे के साथ दिल्ली से लेकर पंजाब और अ

गुजरात, हिमाचल, दिल्ली के चुनाव नतीजे क्या बताते हैं- मोदीत्व कितना चलेगा

चित्र
Election results of Gujarat, Himachal, Delhi : how long Moditva will last गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 दिसंबर को आए। इससे पहले 7 दिसंबर को दिल्ली में एमसीडी चुनाव के नतीजे आए थे। लेकिन मीडिया गुजरात की चर्चा कुछ ज्यादा ही कर रहा है। 8 दिसंबर को गुजरात में बीजेपी को जीत दिलाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendar Modi) ने अपने संबोधन में भी गुजरात का जिक्र ज्यादा किया, हिमाचल और एमसीडी में बीजेपी की हार की चर्चा नहीं के बराबर की।  गुजरात में बीजेपी को भारी जीत मिली है। इसमें कोई शक नहीं है। 182 विधानसभा सीटों में से 157 सीटें जीतना मामूली बात नहीं है। दिल्ली एमसीडी चुनावों में भी भगवा पार्टी (Saffron Party ) ने अप्रत्याशित रूप से दमदार प्रदर्शन किया, लेकिन आम आदमी पार्टी से एक मामूली अंतर से हार गई। गुजरात में बीजेपी की जीत काबिले तारीफ है। तथ्य यह है कि उसे 52% से अधिक वोट शेयर मिला है। यही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबदबे को बताने के लिए काफी है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच विपक्षी वोटों के बंटवारे के साथ ही गुजराती मतदाताओं से मोदी के  भावनात्मक जुड़ा

कोरोना वैक्सीन के बाद अचानक हो रही मौतों की वजह क्या है

चित्र
  देश के तमाम हिस्सों खासकर उत्तर भारत से ऐसे युवा लोगों की मौत की खबरें आ रही हैं, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज लगवाए थे। ऐसे लोगों को काम के दौरान अचानक दिल का दौरा आता है और वहीं पर उनकी मौत हो जाती है।  इस लेख का मकसद किसी को डराना नहीं है, बल्कि इस समस्या पर मची हलचल पर बात  करना है और इसका विश्लेषण करना है। नवभारत टाइम्स के पत्रकार नरेंद्र नाथ मिश्रा ऐसी मौतों पर बराबर नजर रख रहे हैं और जहां कहीं से भी उन्हें सूचना मिलती है, वे फौरन ट्वीट कर देते हैं। लोग उन ट्वीट को पढ़ते हैं और सहम जाते हैं।  इस तरह कोविड वैक्सीन का हृदय पर संभावित प्रभाव एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। भले ही कोविड टीकों को सुरक्षित और प्रभावी के रूप में बताया गया हो, डॉक्टर हृदय स्वास्थ्य पर टीके के हल्के प्रभाव से पूरी तरह से इनकार नहीं करते हैं। हालांकि, वे इस बात को भी कहते हैं कि वैक्सीन का लाभ लोगों में होने वाले दुष्प्रभावों, यदि कोई हो, से कहीं अधिक है। दिल का दौरा पड़ने के कुछ मामलों के सामने आने के बाद कुछ दिन पहले ट्विटर पर #हार्टअटैक ट्रेंड करने लगा - वरमाला समारोह के दौरान दिल का दौरा

चुप्पियों के दिन

चित्र
   लिखता हूँ, फिर जल्दी से मिटा देता हूँ  डर है, उनकी भावनाएँ आहत होने का। देखते हैं चुप्पियों के दिन कैसे कटते हैं? लेकिन चुप्पियों की पीड़ा असह्य है।  निन्दक निकट रखने के पुराने दिन गए चापलूस निन्दकों की जयजयकार है। बहुसंख्यक आहत भावनाओं के राष्ट्र में  अल्पसंख्यक चाहतों को स्थान कहाँ है? -यूसुफ किरमानी  दरअसल मेरी ये चंद लाइनें केदारनाथ सिंह की उन लाइनों को समर्पित हैं। 👆👆👆

आज़म खान के भरोसे मुसलमान !!!

चित्र
आज़म खान आज (20 मई 2022) जेल से छूट गए हैं। मुसलमान ख़ुशियाँ मना रहा है, यह जाने बिना की #आज़म_खान का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा? देश नफरत की आग में जल रहा है। मुसलमान तय नहीं कर पा रहा है कि उसे क्या करना चाहिए। ऐसे में किसी आज़म खान में उम्मीद तलाशना खुद को धोखा देना है। हालाँकि आज़म खान से पूरी हमदर्दी है। किसी पर 89 केस बना दिए जाएँ तो उसके महत्व को समझा जा सकता है।  बाबरी मस्जिद आंदोलन के दौरान सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की हरकतों, बयानों को भुलाया नहीं जा सकता। आज़म खान उस वक्त मुलायम के साथ थे। उस वक्त आज़म का क्या फ़र्ज़ बनता था? इसका इतिहास लिखा जाएगा। अयोध्या आंदोलन को चरम पर ले जाने के दाग से ये दोनों भी बच नहीं पाएंगे। जेल से बाहर आने के बाद अब ज़रा आज़म के बयानों पर नज़र रखने की ज़रूरत है। मुद्दा ये है कि हर नेता की दुकान है। वो धर्म, जाति, नफ़रत के कारोबार से मुसलमान हिन्दू दोनों को बेवकूफ बना रहा है। जिस देश में महंगाई, बेरोज़गारी चरम पर हो, इस देश के राजनीतिक दलों के लिए बड़ा जन आंदोलन खड़ा करने की तमन्ना ही न हो तो उस देश की जनता को किसी नेता विशेष से कोई उम्मीद नह