संदेश

जून, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिंदी के मोहपाश में फंसी एक अमेरिकी लेखिका

चित्र
आजकल अनेक अमेरिकी लोग भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर उसके प्रचार-प्रसार में लग गए हैं। ब्रिटनी जॉनसन उनमें से एक हैं। अपनी किताब 'कलर फॉर किड्स' से चर्चा में आईं ब्रिटनी आजकल भारतीय बिंदी को अमेरिका में लोकप्रिय बनाने के लिए अपने ढंग से सक्रिय हैं। ब्रिटनी ने यूसुफ किरमानी को दिए ई-मेल इंटरव्यू में भारतीय संस्कृति और अपने बिंदी आंदोलन पर खुलकर बात की... ब्रिटनी का यह इंटरव्यू शनिवार (26 जून 2010) को नवभारत टाइम्स में संपादकीय पेज पर प्रकाशित किया गया है। इसे वहीं से साभार लिया जा रहा है। अमेरिका में आजकल योग और भारतीय जीवन पद्धति की काफी चर्चा है। इसकी कोई खास वजह? मैं भारतीय संस्कृति और योग की कहां तक तारीफ करूं। यह बहुत ही शानदार, उत्सुकता पैदा करने वाली और आपको व्यस्त रखने वाली चीजें हैं। आप जानकर हैरान होंगे कि न्यू यॉर्क शहर में योग इतना पॉपुलर है कि जब किसी संस्था को योग टीचर की जरूरत होती है तो दो सौ लोग उसके ऑडिशन में पहुंचते हैं। कीर्तन म्यूजिक के तो कहने ही क्या। मेरे जैसे बहुत सारे अमेरिकी ड्राइव करते हुए कार में कीर्तन सुनते हैं और गुनगुनाते हैं। योग क्लास रोजा...

क्या हो मीडिया की भाषा

चित्र
अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के सेंट लुई कैंपस में भाषा विज्ञान के प्रफेसर डॉ. एम. जे. वारसी मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं। अब तक भाषा विज्ञान से जुड़े उनके 25 शोधपत्र और अनेक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। यूनिवर्सिटी आफ बर्कले ने उन्हें हाल ही में सम्मानित किया है। उसके बाद अमेरिका में भाषा विज्ञान के मामले में भारत की कद बढ़ी है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवसिर्टी (एएमयू) के छात्र रह चुके डॉ. वारसी से यूसुफ किरमानी की बातचीत। यह इंटरव्यू शनिवार 12 जून 2010 को नवभारत टाइम्स में संपादकीय पेज पर छपा है। वहां से इसे साभार लिया जा रहा है। आपकी किताब लैंग्वेज एंड कम्युनिकेशन की काफी चर्चा हो रही है। आप मीडिया के लिए किस तरह की भाषा का सुझाव देना चाहते हैं? मैंने इसी विषय से जुड़ा पेपर वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के लिए तैयार किया था। बाद में इस पर किताब लिखने का प्रस्ताव मिला। इस किताब में मैंने इस बात को उठाया है कि मीडिया की भाषा कैसी होनी चाहिए और चूंकि मीडिया सीधे आम आदमी से जुड़ा है तो इसके इस्तेमाल की क्या तकनीक होनी चाहिए। मैंने एक बात खासतौर पर रेखांकित की है कि मीडिया की भाषा साहित्यिक नह...