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राष्ट्रभक्ति क्या है...क्या सारा ठेका सिर्फ सिर्फ एक पार्टी के पास है ?

देशभक्ति के नाम पर देश में अराजकता का माहौल बनाया जा रहा है...जेएनयू जल रहा है...वहां के स्टूडेंट्स को देशद्रोही बताया जा रहा है...यहां तक कि कुछ पत्रकारों ने इस प्रचार युद्ध को संभाल लिया है कि जो देश की सत्तारुढ़ पार्टी के खिलाफ है, वह देशद्रोही है। प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू होने से पहले बीजेपी के नेता पूछते हैं कि आप भारत माता के साथ हो या जेएनयू वालों के साथ...कितनी शर्मनाक स्थिति है। दरअसल राष्ट्रभक्ति क्या है...इस पर मैं कई दिनों से विचार कर रहा था। बार-बार दिमाग में कन्हैया कुमार का चेहरा घूमता रहा, जिसे देशद्रोह के नाम पर जेल में बंद कर दिया गया। देश के बहुत बड़े कानूनविद और पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी जो अटल बिहारी वाजपेयी के समय एजी थे, उन्होंने आज कहा कि जिस देशद्रोह के आरोप कन्हैया कुमार को बंद कर दिया है, वह कोई आरोप नहीं है। सोराबजी अपने स्पष्ट विचारों के लिए उस वक्त भी जाना जाता था। उनका बयान आप आज के इंडियन एक्सप्रेस में पढ़ सकते हैं। इसके बाद मुझे सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार की फेसबुक वॉल पर जाने का मौका मिला तो वहां उन्होंने एक कहानी के जरिए राष्ट्रभक्ति...

अम्मा तेरा मुंडा बिगड़ा जाए

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देश को कुनबा परस्तों की राजनीति से कब छुटकारा मिलेगा, यह तो नहीं मालूम लेकिन राजनीति में आई नई पौध से उनसे एक पीढ़ी पीछे मुझ जैसों को ही नहीं देश को भी उम्मीदें थीं लेकिन अब तो सभी लोगों का मोहभंग हो रहा है। कल तक हम लोग इस बात का रोना रोते थे कि भारत को नेहरू-गांधी (इंदिरा गांधी) परिवार के राज से कब मुक्ति मिलेगी। लेकिन इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी...राहुल गांधी के नाम लेकर दिन रात कोसने वालों ने जब देखा कि यही हाल बीजेपी में है और यही हाल समाजवादी पार्टी से लेकर शिव सेना, शरद पवार की राष्ट्रवादी पार्टी में है तो लोगों ने मुंह बंद कर लिए। एक तरह से लोगों ने धीरे-धीरे कुनबापरस्ती की राजनीति को स्वीकार करना शुरू कर दिया। लेकिन तमाम बड़े नेताओं के लाडलों ने राजनीति में अब तक कोई बहुत अच्छी मिसाल कायम करने की कोशिश नहीं की। गांधी खानदान के दो लाडलों -राहुल गांधी और वरूण गांधी को लेकर पीआर-गीरी करने वाले पत्रकारों ने तरह-तरह से प्रोजेक्ट करने की कोशिश की। राहुल को कभी यूथ ऑइकन बताया गया, कभी बताया गया कि वह ग्रामीण भारत के लिए कुछ करना चाहते हैं और इसी सिलसिले में पिछले दिनों उनक...

कुछ तो शर्म करो

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अब वह दिन दूर नहीं जब आप किसी राजनीतिक पार्टी से अगर उसकी सभा या रैली में सवाल करेंगे तो उस पार्टी के वफादार कार्यकर्ता आपको पीटने से परहेज करेंगे। आपकी जुर्रत को राजनीतिक दल अब बर्दाश्त नहीं करेंगे। वह राजनीतिक पार्टी (Political parties)जो खुद को सत्ता के बिल्कुल नजदीक समझ रही है और जिसने अपना पीएम इन वेटिंग भी बहुत पहले घोषित कर दिया है, यह उसी पार्टी का हाल है जो अपने खिलाफ होने वाले प्रतिकूल सवालों को बर्दाश्त करने का माद्दा खो चुकी है। आप सही समझे यहां बात बीजेपी की ही हो रही है। राजधानी में इधर दो घटनाएं हुईं जो अखबारों में बहुत मामूली जगह ही पा सकीं लेकिन दोनों घटनाएं अपने आप में बहुत गंभीर हैं। दिल्ली के पुष्प विहार इलाके में शनिवार शाम को बीजेपी की एक सभा हुई। इस इलाके से बीजेपी प्रत्याशी सुरेश पहलवान चुनाव लड़ रहे हैं। उस सभा को पुष्प विहार इलाके के लोग बड़े ही चाव से सुन रहे थे। तब तक सब गनीमत रहा, जब तक बीजेपी नेता स्थानीय मुद्दों बीआरटी कॉरिडोर, भ्रष्टाचार, महंगाई, बढ़ते अपराध को लेकर शीला दीक्षित सरकार को कोसते रहे। लेकिन इसके बाद इन लोगों ने सभा में मुसलमानों को देश वि...