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लघु कथा: क्वारंटाइन

मोबाइल लॉक करते ही स्क्रीन पर अंधेरा छा गया। डिजिटल दुनिया क़ैद हो चुकी थी। उसकी आँखों के सामने स्क्रीन पर बाहर दुनिया की परछाईं किसी फ़िल्म सीन जैसी लगी। वह लेटी लेटी अपने बिस्तर से उठी, विंडो से बाहर देखा। बाहर के आज़ाद नज़ारों को देखकर उसकी नज़रें ललचा रही थीं। फिर यूँ ही उसके मन में ख़्याल आया कि चीज़ों की कीमत उनके खो जाने के बाद क्यों पता चलती है?  -मुस्तजाब किरमानी 

लघु कथा: लॉकडाउन

टीवी पर वो न्यूज देख रहा था। 21 दिन के लॉकडाउन ने उस पर ख़ासा असर नहीं किया। आँखों में कोई अचंभा  नहीं। दिल की धड़कनों में कोई बदलाव नहीं। दूर दूर तक कोई हड़बड़ी भी नहीं। बस, वो हल्का सा हिला, सोफ़े पर खुद को एडजस्ट करने के लिए... देश के उस हिस्से में रह रहे लोगों के लिए लॉकडाउन एक आदत बन चुकी थी। -मुस्तजाब किरमानी

शंभू – रसूल संवाद-ए-राजस्थान

कल मुझे जब नींद आई बदलते ही करवट पर देखा तब ख्वाब मैंने शंभू रोते हैं खड़े पर्वत पर हिमालय की ऊंची चोटी पर तंग पड़ी फिर बारिश ऐसी बोले शंभू, क्या बतलाऊं एक जाहिल ने रची है साजिश ऐसी कि गुस्सा है मुझे, मेरे मन में आग उठती है ऐसा जुल्म हुआ है कि कराहट की आह उठती है गुजर उसी दम हुआ वहीं से रसूले खुदा का देखा महादेव को तो किया सलाम दो जहां का बोले शंभू, आवाज भारी किए, नमन हो ऐ रसूल हक में आपके मेरा आदर हो कुबूल परेशान देख हाल उनका, फिर मोहम्मद ने फरमाया ऐ देवों के देव, क्यूं है तुम्हारी आवाज में गम समाया बोले शंभू, ऐ रहबर-ए-हक, हक से बयां करो पाक दहन से अपने सच को रवां करो देखा तुमने, क्या किया धरती पर उस जालिम ने आज कत्ल किया, जलाया, एक नातवां-ओ-बेकस को आज दुख है मुझे की मेरा नाम लिये वो जालिम बैठा है उम्मत का तुम्हारी निशां मिटा देगा, ऐसा वो कहता है बोले रसूल, ऐ शंभू जमीन की तो रोज यही कहानी है इंसान ने कत्ल ओ जुल्म करने की जो ठानी है आज नाम तुम्हारा है तो कल फिर मेरा होगा अंधेरा ही अंधेरा है, देखो कब सवेरा होगा खैर, दुआ करो कि बची