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भारतीय संस्कृति के ठेकेदार

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कल मैं अविनाश के मोहल्ले (http://mohalla.blogspot.com)में गया था। वहां पर एक बढ़िया पोस्ट के साथ अविनाश हाजिर थे। उनके लेख का सार यह था कि किस तरह उनके मुस्लिम सहकर्मियों ने दीवाली की छुट्टी के दौरान काम करके अपने हिंदू सहकर्मियों को दीवाली मनाने का मौका दिया। यानी त्योहार पर हर कोई छुट्टी लेकर अपने घर चला जाता है तो ऐसे में अगर उस संस्थान में मुस्लिम कर्मचारी हैं तो वे अपना फर्ज निभाते हैं। यह पूरे भारत में होता है और अविनाश ने बहुत बारीकी से उसे पेश किया है। लेकिन मुझे जो दुखद लगा वह यह कि कुछ लोगों ने अविनाश के इतने अच्छे लेख पर पर भी अपनी जली-कटी प्रतिक्रिया दी। उनमें से एक महानुभाव तो कुछ ऐसा आभास दे रहे हैं कि हिंदू महासभा जैसे साम्प्रदायिक संगठन से बढ़कर उनकी जिम्मेदारी है और भारतीय मुसलमानों को पानी पी-पीकर गाली देना उनकी ड्यूटी है। यह सज्जन कई बार मेरे ब्लॉग पर भी आ चुके हैं और तमाम उलूल-जुलूल प्रतिक्रिया दे चुके हैं। इन जैसे तमाम लोगों का कहना है कि मुसलमानों ने कभी भारतीय संस्कृति को नहीं अपनाया और न यहां के होकर रहे। मैं नहीं जानता कि यह सजज्न कौन हैं और कहां रहते हैं। लेकि...