संदेश

अमेरिका ईरान संघर्ष लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ईरान में आ रहे हैं रईसी, परेशान हैं पूँजीवादी मुल्क और उनके पिट्ठू

चित्र
मुस्लिम राष्ट्रों में पाकिस्तान के बाद ईरान के चुनाव पर पूरी दुनिया की नज़र रहती है। ...तो वहाँ के नतीजे आ रहे हैं और तस्वीर साफ़ हो चुकी है। ईरान के बाद सबसे ज़्यादा शिया मुसलमान भारत और पाकिस्तान में हैं। इसलिए इन दोनों देशों के मुसलमानों की नज़र भी ईरान के आम चुनाव पर है।  ईरान में हुए राष्ट्रपति चुनाव में इब्राहीम रईसी को सबसे ज़्यादा वोट मिले हैं और उनका राष्ट्रपति बनना लगभग तय है। वो सरकार के आलोचक रहे हैं और उन्हें सिद्धांतवादी माना जाता है। यानी एक शिया हुकूमत में लोकतंत्र कैसे चलाया जाना चाहिए, उन्हें सिद्धांतवादी या उसूली माना जाता है।ईरान में जिस तरह अल्पसंख्यकों (यहूदियों, सुन्नियों, सिखों) को अधिकार प्राप्त हैं, उसके वो प्रबल समर्थक हैं। वह करप्शन के सख़्त ख़िलाफ़ हैं। पाकिस्तान में बीच बीच में सैन्य शासन भी आ जाता है लेकिन ईरान में 1978-79 की इस्लामिक क्रांति के दौरान शाह रज़ा पहलवी को उखाड़ फेंकने के बावजूद वहाँ कभी सेना ने सत्ता पर क़ब्ज़ा नहीं किया। ईरान में उस समय भी चुनाव हुए और आज भी जारी है। कौन हैं इब्राहीम रईसी ———————— इब्राहीम रईसी ईरान की सुप्रीम कोर्ट के ...

कौन हैं क़ासिम सुलेमानी...एक किसान के बेटे का सैन्य सफ़र

चित्र
क़ासिम सुलेमानी अमेरिका और इस्राइल के मोस्ट वॉन्टेड की सूची में शामिल थे। ईरान इस जांबाज की शहादत को कभी भुला नहीं सकेगा। ईरान की मुख्य आर्मी ईरानी रिवोल्यू़नरी गार्ड्स (आईआरजीसी) का चीफ़ होने के बावजूद वह ईरान के सबसे प्रभावशाली शख़्स थे। ईरान में हाल ही में कराए गए एक सर्वे में वह वहाँ के राष्ट्रपति से भी आगे थे। उन्हें ईरान के अगले राष्ट्रपति के रूप में लाने का फैसला भी हो गया था। ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खामनेई  की रणनीतिक बैठकों में लिए गए फ़ैसले के  ज़्यादातर आदेश उन्हीं के ज़रिए जारी होते थे। सुलेमानी पूर्वी ईरान के किरमान राज्य के कायमात-ए-मालिक गाँव में पैदा हुए थे। उन्हें 13 साल की उम्र में अपने किसान पिता के एग्रीकल्चर लोन को तत्कालीन शाह रजा पहलवी की सरकार को चुकाने के लिए मज़दूरी करनी पड़ी थी। 1979 में जब अमेरिका समर्थित शाह की हुकूमत का पतन हुआ और इस्लामिक क्रांति हुई तो वह इस क्रांति के जनक आयतुल्लाह खुमैनी के आंदोलन में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने किरमान के युवकों को जमाकर एक लड़ाकू यूनिट बनाई और यह यूनिट खुमैनी के लिए काम करने लगी। ...