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अलीबाबा के जैक मा की बातें और अपना देश भारत...

यहां मैं आप लोगों के लिए एक विडियो पोस्ट कर रहा हूं जो पूरा देखने के बाद आपको सोचने को मजबूर कर देगा। हालांकि उसमें कही बातों को मैं अपनी बात के साथ आप लोगों के पढ़ने के लिए यहां दे रहा हूं। लेकिन हो सकता है कि अनुवाद में कुछ कमियां हों, इसलिए अगर आप पूरा विडियो देखेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। दुनिया की बड़ी कंपनियों में गिनी जाने वाली अलीबाबा (Alibaba) के मालिक जैक मा (Jack Ma) को हाल ही में हॉगकॉग यूनिवर्सिटी ने पीएचडी से नवाजा है। इस मौके पर जैक मा ने जो बातें कहीं हैं, उसका संबंध भारत से या किसी भी देश से जुड़ता है।... जैक मा कहते हैं... तमाम नाकामियों की वजह से मैं यही सोचता था कि कभी मुझे पीएचडी की डिग्री किसी यूनिवर्सिटी से मिलेगी। यह मेरा सपना था। लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारा। एक दिन ऐसा भी आता है जब कोई यूनिवर्सिटी आपको पीएचडी की डिग्री देने को बेताब होती है... एक अच्छा बिजनेसमैन सिर्फ पैसा कमाना ही नहीं जानता, बल्कि उस पैसे को अच्छी तरह खर्च करना भी जानता है। लेकिन हम सिर्फ पैसा कमाने के लिए जिंदा नहीं रहते।...अगर आपके पास 10 लाख डॉलर हैं, वो आपक

तेरा जाना

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रुपया-पैसा, बड़ा कारोबार होने के बावजूद वह मौत से हार गए। मौत को वह चुनौती नहीं दे सके। हालांकि उन्होंने समय-समय पर न जाने कितनों को चुनौती दी और हर लड़ाई को जीतते रहे लेकिन मौत से हुई इस लड़ाई में उन्हें पराजित होना पड़ा। 3 जनवरी की दोपहर जब मैं जीटी रोड पर ड्राइव कर रहा था और मेरा मोबाइल एसएमएस झेलते-झेलते शायद गुस्से में गरम हो चुका था, तभी एक जानी-पहचानी आवाज ने ध्यान सड़क से कहीं और भटका दिया। उन्हीं की मौत की खबर थी। हतप्रभ...कहां पुष्टि हो, क्या किया जाए। एक मित्र को रिंग किया तो उन्होंने पुष्टि की। तमाम यादें,मुलाकातें एक-एक कर याद आने लगीं। उनका सिगरेट के हर कश के साथ कुछ कहने का बेलौस अंदाज, फिर फैसला लेने का ऐलान होंठ काटकर ऐसे बयान करना मानों इसे बदल पाना मुश्किल होगा।...कुछ गलत फैसले, कुछ सही फैसले... पता नहीं उनकी नेतृत्व करने की क्षमता से मैं इस कदर क्यों प्रभावित था कि मित्र लोग इसे चाटुकारिता तक मानते रहे। हालांकि उनसे मुझे निजी लाभ या अन्य किसी तरह का लाभ कभी नहीं मिला। लेकिन जिस तरह कंपनी की बैठकों में वह मेरी ईमानदारी का प्रचार करते तो मुझे लगता कि इतना बड़ा पूंजीपत

बोलो, अंकल सैम, पूंजीवाद जिंदाबाद या मुर्दाबाद

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एक कम्युनिस्ट देश (communist countries) के रूप में जब रूस टूट रहा था तो उस वक्त अति उत्साही लोगों ने लहगभग घोषणा कर दी थी कि पूंजीवादी देश (capitalist countries) ही लोगों को तरक्की के रास्ते पर ले जा सकते हैं। अमेरिका को इस पूंजीवादी व्यवस्था (capitalism) का सबसे बड़ा रोल मॉडल बताया गया। रूस से टूटकर जो देश अलग हुए और उन्होंने कम्युनिज्म मॉडल को नहीं अपनाया, उन देशों ने कितनी तरक्की की या आगे बढ़े, इस पर कोई चर्चा नहीं की जाती। लेकिन अब अमेरिकी पूंजीवाद के खिलाफ अमेरिका में ही आवाज उठने लगी है। वहां के प्रमुख अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में इस सिलसिले में कई लेख प्रकाशित हुए जिसमें मौजूदा आर्थिक मंदी, वहां के बैंको के डूबने की वजह, इराक में जबरन दादागीरी के मद्देनजर पूंजीवादी व्यवस्था को जमकर कोसा गया है। इसके लिए जॉर्ज डबल्यू बुश की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। इतना ही नहीं उसमें कहा गया है कि कहां तो हम रोल मॉडल बनने चले थे और कहां अब हमारा अपना तानाबाना ही बिखर रहा है। हमारी नीतियों की वजह से कुछ अन्य देश भी मंदी (recession) का शिकार हो रहे हैं। कल तक जो देश हमारे लिए एक आकर्षक बाजा