उठ मेरी जान...
उज्मा रिजवी ने यह लेख खासतौर पर महिला दिवस पर एक अखबार के लिए लिखा था। उन्होंने दरअसल इसे मेरे पास पढ़ने के लिए भेजा था लेकिन मैं इसे अपने ब्लॉग पर बाकी पाठकों और मित्रों के लिए देने का लोभ संवरण न कर सका। उज्मा रिजवी अंग्रेजी-हिंदी में प्रकाशित एजुकेशन वर्ल्ड मैगजीन में असिस्टेंट एडिटर हैं। तमाम समसामयिक विषयों पर उनकी कलम चलती रही है। उनका वादा है कि हिंदी वाणी के लिए वह कुछ और भी लिखेंगी। उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे क़द्र अब तक तेरी तारीख ने जानी ही नहीं तुझ में शोले भी हैं बस अश्क पिफशानी ही नहीं तू हक़ीकत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं तेरी हस्ती भी है एक चीज जवानी ही नहीं अपनी तारीख का उन्वान बदलना है तुझे उठ मेरी जान............ मशहूर शायर कैफी आजमी की औरत को पुकारती औरत उन्वान की यह खास गज़ल तुझे अपने अंदर इतनी गहराई से उतार लेनी है ताकि इन अल्फाजों का कर्ज़ अदा हो जाए। क्योंकि तू इतनी खुशकिसमत नहीं कि ऐसी इंकलाबी पुकार तुझे बार-बार नसीब हो। हकीकत यही है खुदा भी उनकी मदद नहीं करता जो अपनी मदद खुद नहीं करता.... हां! तुझे अपना उन्वान, अपनी तकदीर खुद बदलनी है, और ऐसी तदबीर करनी...