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राहत इंदौरी और जावेद अख्तरः दो रंग (ताजा शेर)

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मौजूदा दौर में उर्दू के दो मशहूर शायरों की कलम अलग-अलग बातों और रुझानों को लेकर चलती रहती है। यह दोनों बॉलिवुड की फिल्मों के लिए गीत भी लिखते हैं। लेकिन इनका असली रंग झलकता है इनकी शायरी में। मुझे दोनों शायरों की गजल के कुछ ताजा शेर मिले हैं, जो आप लोगों के लिए भी पेश कर रहा हूं। हो सकता है कि बाद में यह शेर आपको सुधरे हुए या किसी बदलाव के साथ पढ़ने को मिले। फिलहाल तो दोनों शायरों ने जो बयान किया है, वह हाजिर है... वह शख्स जालसाज लगता है सफर की हद है वहां तक, की कुछ निशां रहे चले चलो कि जहां तक ये आसमां रहे/ यह क्या, उठे कदम और आ गई मंजिल मजा तो जब है कि पैरों में कुछ थकन रहे/ वह शख्स मुझको कोई जालसाज लगता है तुम उसको दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे/ - राहत इंदौरी (शनिवार, 25 सितंबर 2010) तन्हा...तन्हा...तन्हा इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में ढूढ़ता फिरा उसको वो नगर नगर तन्हा तुम फूजूल बातों का दिल पे बोझ मत लेना हम तो खैर कर लेंगे जिंदगी बसर तन्हा जिंदगी की मंडी में क्या खरीद पाएगी इक गरीब गूंगी सी प्यार की नजर तन्हा - जावेद अख्तर (24 सितंबर 2010)