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बच्चे और दम तोड़ती संवेदनहीनता

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बच्चों को लेकर समाज संवेदनहीन (Emotionless)होता जा रहा है। बच्चे घर से निकलते हैं स्कूल जाने के लिए और बुरी संगत में पडक़र या तो नशा (Drug Addict) करने लगते हैं या फिर अपराधी गिरोहों के हत्थे चढ़ जाते हैं। शहरों में मां-बाप पैसा कमाने के चक्कर में बच्चों पर नजर नहीं रख पाते जबकि वे ऐसा कर सकते हैं लेकिन समय नहीं है। दफ्तर से घर और घर से दफ्तर, बीच में कुछ देर के लिए टीवी पर थर्ड क्लास खबरों और प्रोग्राम से समय काटना, बस यही रोजमर्रा की जिंदगी हो गई है। पत्नी अगर वर्किंग नहीं है तो घर के तमाम काम के अलावा बच्चों को संभालना सिर्फ उसके अकेले की जिम्मेदारी है। पिछले दिनों इस तरह की कुछ समस्याओं पर एक समाजशास्त्री (Sociologist) से बात होने लगी। उसका कहना था कि अगर आपकी लाइफ में आटा-दाल-चावल और नौकरी सबसे बड़ी प्राथमिकता है तो भूल जाइए कि आप अपने बच्चे को किसी मुकाम तक पहुंचा सकेंगे। परिवार नामक संस्था को जिंदा रखना है तो बच्चे का ध्यान रखा जाना सभी की पहली प्राथमिकता होना चाहिए। बच्चा स्कूल जाता है, वहां कभी उसके चेहरे को लेकर तो कभी उसके बाल को लेकर, कभी धर्म और भाषा को लेकर दूसरे बच्चे भद्...