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'छबीला रंगबाज का शहर' का मंचन

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' छबीला रंगबाज का शहर ' केवल आरा या बिहार की कहानी नहीं है अपितु इसमें हमारे समय की जीती जागती तस्वीरें हैं   जिनमें हम यथार्थ को नजदीक से पहचान सकते हैं। राज्यसभा सांसद और समाजविज्ञानी मनोज झा ने हिन्दू कालेज में छबीला रंगबाज का शहर के   मंचन में कहा कि   पढ़ाई के साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भी   हिन्दू कालेज की गतिविधियां प्रेरणास्पद रही हैं। झा यहाँ हिंदी नाट्य संस्था   अभिरंग के सहयोग से ' आहंग ' द्वारा मंचित नाटक में बोल रहे थे।   युवा लेखक प्रवीण कुमार द्वारा लिखित इस कहानी को रंगकर्मी - अभिनेता   हिरण्य हिमकर ने निर्देशित किया है। कैसे हुए निर्देशन और चुस्त अभिनय के कारण   लगभग दो घंटे लम्बे इस नाटक को यहां दर्शकों ने मंत्रमुग्ध होकर देखा। कहानी का बड़ा हिस्सा इस   शहर   के अनूठे अंदाज को बताने में लगता है। तभी घटनाएं होती हैं और एक दिन तनाव के मध्य अरूप अपने किसी रिश्तेदार किशोर को ऋषभ क...

दिल्ली को पेरिस बनाएंगे

इस वक्त दिल्ली का जो हाल है, वह यहां के बाशिंदों से पूछिए। कॉमनवेल्थ गेम्स की वजह से दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने की जो तैयारियां की जा रही हैं, उसने इस शहर की शक्ल बिगाड़ दी है। सरकार को पहले यह याद नहीं आय़ा कि एनसीआर के किसी शहर से दिल्ली में प्रवेश करने के लिए कम से कम सीमा पर जो व्यवस्थाएं होनी चाहिए, वह नहीं थीं और उसे वक्त रहते मुहैया कराने की कोशिश की जाती। अब जब ध्यान आया है तो पूरे बॉर्डर को ही तहस-नहस कर दिया गया है, चाहे आप गाजियाबाद से आ रहे हैं या फिर फरीदाबाद या गुड़गांव से...सोनीपत से...नोएडा से...यही आलम है... नवभारत टाइम्स में कार्यरत जयकांत शर्मा ने अपनी व्यथा पर कलम चलाई है...उनकी कविता पढ़े। कृपया इस कविता में साहित्य न तलाशें, यह उनके अपने विचार हैं। दिल्ली को पेरिस बनाएंगे, वहां सौ-सौ मजिल की इमारते हैं, यहां पांच मजिला को भी गिराएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां टावर या मकान सील नहीं होते, यहां सब कुछ सील करवाएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां छोटी-मोटी बातों पर झगड़े नहीं होते, यहां बिना बात के झगड़े करवाएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां हर काम तरतीब से होता ह...