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प्यार की संवेदनाओं से खड़ा होता है मजहब

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सुप्रसिद्ध लेखिका सादिया देहलवी की सूफीज्म पर हाल ही में एक किताब छपकर आई है। यह इंटरव्यू मैंने उसी संदर्भ में उनसे लिया है। इसे आज के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित भी किया जा चुका है। इसे वहां से साभार सहित लिया जा रहा है। इस्लाम और सूफी सिलसिला एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस्लाम के बारे में कहा जाता है कि यह एक मजहब है जिसमें कड़े नियम कानून हैं लेकिन दरअसल सूफीज्म इस्लाम की जान है। मेरी किताब सूफीज्म (प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स) इसी पर रोशनी डालती है। सूफी सिलसिले में शानदार शायरी, डांस, आर्ट और सबसे ज्यादा उस प्यार को पाने की परिकल्पना है जिसे पूरी दुनिया अपने-अपने नजरिए से देखती है। बहुत सारे मुसलमानों और ज्यादातर गैर मुस्लिमों के लिए यह स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है कि इस्लाम में सूफी नामक कोई अध्यात्मिक धारा भी बहती है। सूफी संत इसे अहले दिल कहते हैं यानी दिल वाले। उनकी नजर में धर्म का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक कि उसमें प्यार की संवेदनाएं न हों। इसीलिए सूफीज्म को इस्लाम का दिल कहा जाता है। पर, नई पीढ़ी के लिए इसका मतलब बदलता जा रहा है। बहरहाल, इस्लाम और सूफीज्म को अलग नहीं किया जा सक...

जामिया...आइए कुतर्क करें

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जामिया यूनिवर्सिटी पर वाले नीचे के लेख पर यहां-वहां की गई टिप्पणियां आप लोगों ने देख ली होंगी। टिप्पणी करने वालों ने आपस में भी बहस कर डाली। खैर, कुछ लोगों ने सामने न आने की कसम खा रखी है और वे अब ईमेल के जरिए अपनी बात लिखकर भेज रहे हैं। इनमें कुतर्क करने वालों की तादाद ज्यादा है और संजीदा बात करने वालों की बात कम है। कुतर्क करने वालों का कहना है कि इस यूनिवर्सिटी को आतंकवाद फैलाने के लिए ही बनाया गया है। इसके पक्ष में सिर्फ और सिर्फ उनके पास बटला हाऊस एनकाउंटर जैसी घटना बताने के लिए है। इन लोगों का कहना है कि पुलिस कभी भी आतंकवादी के नाम पर झूठा एनकाउंटर नहीं करती। इसलिए दिल्ली पुलिस अपनी जगह सही है। बहरहाल, इन बातों को आप अपनी कसौटी पर रखकर देखें। मुझे इस मामले में सिर्फ इतना कहना है कि जामिया यूनिवर्सिटी सभी की है और इसका मूल स्वरूप धर्म निरपेक्ष रहा है और अब भी है। मौजूदा वीसी मुशिरूल हसन के यहां आने के बाद इस यूनिवर्सिटी ने अपनी अच्छी ही इमेज बनाई है। अगर कांग्रेस या बीजेपी या इनसे जुड़े लोगों को इस वीसी की बात पसंद नहीं है तो उसमें उस वीसी का क्या कसूर? कम से कम वह तो इन राजनीति...

दर्द-ए-जामिया

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नोट – आज मैं आप लोगों से मुखातिब नहीं हूं। जामिया यूनिवर्सिटी की जो छवि देश-विदेश में बनाई जा रही है, उससे संबंधित और सरोकार रखने वाले सभी आहत हैं। वरिष्ठ पत्रकार सौरभ भारद्वाज जामिया के पूर्व छात्र हैं और इन दिनों नवभारत टाइम्स को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। मेरे ब्लॉग पर नीचे वाला लेख पढ़ने के बाद उन्होंने यह प्रतिक्रिया भेजी जो मैं इस ब्लॉग पर लेख के रूप में पेश कर रहा हूं। हाजिर हैं बकलम खुद सौरभ भारद्वाज - - सौरभ भारद्वाज जामिया इन दिनों सुर्खियों में है और जामिया से जुड़ी मेरी यादें एकदम तरोताजा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जहां की तहजीब में शुमार है, जहां तालीम हासिल करना किसी मुस्लिम के लिए ही नहीं बल्कि किसी हिंदू के लिए भी गर्व की बात है, ऐसे जामिया को बेशक एक-दो साल ही सही लेकिन मैंने बेहद नजदीक से देखा है। उसकी धडक़न को महसूस किया है। गालिब के बुत के अगल-बगल बिताए गए घंटों और अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि पिछले लगभग 5-6 हफ्तों में इस यूनिवर्सिटी की जो राष्ट्र विरोधी इमेज गढ़ दी गई है, यह यूनिवर्सिटी वैसी नहीं है। सात-आठ साल ही बीते हैं जब मैं जामिया के हिंदी विभाग मे...

मुशीरुल हसन की आवाज सुनो

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दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में 30 अक्टूबर को दीक्षांत समारोह था। प्रो. अनंतमूर्ति मुख्य अतिथि थे और दीक्षांत भाषण भी उन्ही का था। लेकिन जिस भाषण पर सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है वह है वहां के वीसी मुशीरुल हसन का। मुशीरुल हसन के भाषण में जामिया का दर्द बाहर निकल आया है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जामिया के छात्रों के लिए नौकरियां खत्म की जा रही हैं। उन्हें बाहर यह कहकर नौकरी देने से मना कर दिया जाता है कि जामिया यूनिवर्सिटी में तो आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है, इसलिए वहां के पढ़े छात्रों के लिए कोई नौकरी नहीं है। यहां पर प्राइवेट कंपनियों की कैब लाने से ड्राइवर यह कहकर मना कर देते हैं कि वहां तो आतंकवादी रहते हैं, इसलिए वे वहां नहीं जाएंगे। सचमुच, यह बहुत भयावह हालात हैं। किसी देश की मशहूर यूनिवर्सिटी का वीसी अगर यह बात पूरे होशहवास में कह रहा है तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब इसी जामिया नगर इलाके के बटला हाउस में एक विवादित एनकाउंटर हुआ, जिसमें दो युवक और एक पुलिस वाला मारे गए। इसके बाद वहां राजनीतिक पार्टियां अपने ढ...