जामिया...आइए कुतर्क करें
जामिया यूनिवर्सिटी पर वाले नीचे के लेख पर यहां-वहां की गई टिप्पणियां आप लोगों ने देख ली होंगी। टिप्पणी करने वालों ने आपस में भी बहस कर डाली। खैर, कुछ लोगों ने सामने न आने की कसम खा रखी है और वे अब ईमेल के जरिए अपनी बात लिखकर भेज रहे हैं। इनमें कुतर्क करने वालों की तादाद ज्यादा है और संजीदा बात करने वालों की बात कम है।
कुतर्क करने वालों का कहना है कि इस यूनिवर्सिटी को आतंकवाद फैलाने के लिए ही बनाया गया है। इसके पक्ष में सिर्फ और सिर्फ उनके पास बटला हाऊस एनकाउंटर जैसी घटना बताने के लिए है। इन लोगों का कहना है कि पुलिस कभी भी आतंकवादी के नाम पर झूठा एनकाउंटर नहीं करती। इसलिए दिल्ली पुलिस अपनी जगह सही है।
बहरहाल, इन बातों को आप अपनी कसौटी पर रखकर देखें। मुझे इस मामले में सिर्फ इतना कहना है कि जामिया यूनिवर्सिटी सभी की है और इसका मूल स्वरूप धर्म निरपेक्ष रहा है और अब भी है। मौजूदा वीसी मुशिरूल हसन के यहां आने के बाद इस यूनिवर्सिटी ने अपनी अच्छी ही इमेज बनाई है। अगर कांग्रेस या बीजेपी या इनसे जुड़े लोगों को इस वीसी की बात पसंद नहीं है तो उसमें उस वीसी का क्या कसूर? कम से कम वह तो इन राजनीतिक दलों की सुविधा के हिसाब से नहीं चल सकते। आप लोगों में से जो लोग रौशन जी के ब्लॉग पर गए होंगे, वहां 28 अक्टूबर को की गई उनकी पोस्ट जरूर पढ़ी होगी, जिन्होंने नहीं पढ़ी, उन्हें पढ़ना चाहिए। रौशन ने मुद्दा उठाया कि जिस तरह बिहार का एक युवक हाथ में पिस्तौल लेकर एक बस में लोगों को डराता फिरा और राज ठाकरे को गोली मारने की बात कही, उसे सरेआम मार दिए जाने के बाद राजनीतिक लोग जिस तरह सक्रिय हुए और प्रधानमंत्री को पत्र तक लिखा गया। क्या वही युवक गुजरात में जाकर वहां नरेंद्र मोदी के लिए यही बात कहता और मारा जाता तो इतना हो हल्ला मचता?
कहने का मतलब यही है कि राजनीतिक दल अपनी सुविधा के हिसाब से एजेंडा तय करते हैं कि उन्हें क्या भुनाना है और क्या नहीं?
कई साल पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के एक लेक्चरर और एक पत्रकार को भी आतंकवादी गतिविधियों के आरोप में दिल्ली पुलिस ने घसीटा था लेकिन अदालत में मामला जाने पर पुलिस को मुंह की खानी पड़ी। पत्रकार तो खैर बेदाग होकर छूटे और उस लेक्चरर के खिलाफ भी पुलिस ठोस सबूत नहीं जुटा पाई। लेकिन उस वजह से दिल्ली यूनिवर्सिटी तो आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनी। जिस पत्रकार को पुलिस ने गिरफ्तार किया था उस पर आरोप था कि उसके लैपटॉप से देशविरोधी लेख और सूचनाएं मिली हैं। अदालत ने मामला खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि पत्रकार अपनी प्रोफेशनल ड्यूटी के लिए ऐसी जानकारियां रखते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वे आतंकवादी हैं। इसलिए जो लोग आतंकवाद को किसी धर्म विशेष या समुदाय विशेष से जोड़ रहे हैं, उनकी सोच निहायत घटिया है। जामिया यूनिवर्सिटी का नाम मुस्लिम भर होने से वह आतंकवाद का अड्डा नहीं बन सकती। सिमी जैसे विवादास्पद संगठन के जो लोग पकड़े गए हैं अगर उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) या किसी ईसाई स्कूल से पढ़ाई की है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वे जगहें आतंकवाद का सेंटर हैं। जामिया की तरह एएमयू को भी ऐसे विवाद में घसीटने की नापाक कोशिश हो चुकी है लेकिन वह सिरे नहीं चढ़ सकी क्योंकि आज एएमयू का कैरेक्टर भी वही है जो जामिया या दिल्ली विश्वविद्यालय का है। जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) में तमाम छात्र नेता या कतिपय संगठन माओवादियों के हमदर्द या नक्सल आंदोलन के समर्थक रहे हैं या हैं, तो क्या इस आधार पर हम लोग जेएनयू जैसे प्रख्यात शिक्षा केंद्र को नक्सलियों का अड्डा मान लें। जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में नक्सलवाद और आतंकवाद पर जितनी खुली बहस होती है, उतनी शायद ही कहीं और होती हो।
जामिया पर इस बहस को मैं अब बीच में ही खत्म कर रहा हूं। क्योंकि इस बीच कई महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा ही नहीं हो सकी। अगर जामिया पर आप लोग फिर भी टिप्पणी करना चाहते हैं तो भेज सकते हैं, बीच में किसी दिन उसे फिर से पेश किया जाएगा। अगर कोई सौरभ भारद्वाज की तरह लेख भेजना चाहे तो उसका भी स्वागत है। यकीन मानिए संपादन के बिना यहां पोस्ट किया जाएगा, हां अगर ईमेल की तरह उसमें गाली-गलौच की भाषा का इस्तेमाल होगा तो उसे पोस्ट कर पाना मुमकिन नहीं होगा। ईश्वर गुमराह लोगों को सदबुद्धि दे।
टिप्पणियाँ
वैसे मुसलमान और सेकूलर- जुमला जमा नहीं.
असहिष्णुता का पूरा इतिहास है, दूसरे को समझने की जिसने भी मिसाल बनानी चाही,उसे इस्लाम की मुख्य धारा से ही बाहर कर दिया गया. रहीम,रसखान, अशफ़ाकुल्ला खाँ,और बशीर अहमद मयुख जैसे लोगों को हिन्दू ही कह दिया गया.(गाली दी).सोचिये.
ऐसे लोगों में से एक मुशीरुल हक़ साहब ही हैं कभी गौर किया है?
और भी बहुत हैं आपके पढने के लिए एक साक्षात्कार यहाँ है
http://www.indianexpress.com/news/you-want-us-to-stand-on-a-terrace-and-announce-we-are-liberal-loyal-muslims-this-is-an-expectation-we-cant-fulfill/369561/0