मुंबई हमले के लिए अमेरिका जिम्मेदार ?
सुनने में यह जुमला थोड़ा अटपटा लगेगा लेकिन यह जुमला मेरा नहीं है बल्कि अमेरिका में सबसे लोकप्रिय और भारतीय मूल के अध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा का है। दीपक चोपड़ा ने कल सीएनएन न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में यह बात कही है। उस इंटरव्यू का विडियो मैं इस ब्लॉग के पाठकों के लिए पेश कर रहा हूं। निवेदन यही है कि पूरा इंटरव्यू कृपया ध्यान से सुनें।
अंग्रेजी में इस इंटरव्यू का मुख्य सार यह है कि जब से अमेरिका ने इराक सहित तमाम मुस्लिम देशों के खिलाफ आतंकवाद के नाम पर हमला बोला है तबसे इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं। अमेरिका आतंकवाद को दो तरह से फलने फूलने दे रहा है – एक तो वह अप्रत्यक्ष रूप से तमाम आतंकवादी संगठनों की फंडिंग करता है। यह पैसा अमेरिकी डॉलर से पेट्रो डॉलर बनता है और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, इराक, फिलिस्तीन समेत कई देशों में पहुंचता है। दूसरे वह आतंकवाद फैलने से रोकने की आड़ में तमाम मुस्लिम देशों को जिस तरह युद्ध में धकेल दे रहा है, उससे भी आतंकवादियों की फसल तैयार हो रही है। दीपक चोपड़ा का कहना है कि पूरी दुनिया में मुसलमान कुल आबादी का 25 फीसदी हैं, जिस तरह अमेरिका के नेतृत्व में उनको अलग-थलग करने की कार्रवाई चल रही है, उससे आतंकवाद और बढ़ेगा, कम नहीं होगा। दीपक चोपड़ा पाकिस्तान और कश्मीर पर भी बोले हैं, वह आप खुद ही सुनकर जान लें तो बेहतर है। मैं उसे यहां लिखना नहीं चाहता।
दीपक चोपड़ा की इन बातों से आप सहमत हों या न हों लेकिन मैं इतना बता दूं कि अमेरिकी मानस में यह सोच घर करती जा रही है। हाल ही में जब बाराक ओबामा जब अपने प्रचार में जुटे थे तो उन्हें कई कड़वी सच्चाइयों का सामना करना पड़ा था। जिसमें सबसे खास यह था कि अमेरिकी चाहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का जो हौवा अमेरिका यानी जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने खड़ा किया है और जिसकी वजह से आज पूरी दक्षिण पूर्व एशिया में अशांति फैली है, वह नीति वापस ली जानी चाहिए। मुस्लिम देशों के खिलाफ जो घृणा का माहौल फैलाया जा रहा है, वह फौरन बंद किया जाना चाहिए।
अमेरिका की एक प्रतिष्ठा पत्रिका काउंटर पंच में जाने-माने लेखक और राजनीतिक विश्लेषक तारिक अली का एक लेख मुंबई में किए गए हमले पर प्रकाशित हुआ है। उस लेख को मैं यहां आप लोगों के लिए अंग्रेजी में पेश कर रहा हूं। इस लेख में कही गई बातें भी अध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा से मिलती हैं। तारिक अली ने यह भी लिखा है कि गुजरात में मोदी की सरकार ने जो कुछ भी किया, उससे भी आतंकवाद की फसल पैदा हो रही है। तमाम दंगों में जो मुस्लिम परिवार प्रभावित हुए हैं, उनके घरों के बच्चे भी आतंकवाद के रास्ते पर कदम रख चुके हैं। तारिक अली की हाल ही में आई पुस्तक द ड्यूल पाकिस्तान काफी चर्चित हो रही है। जिसमें कहा गया है कि अमेरिका का अंधा समर्थन कर पाकिस्तान को क्या कीमत चुकानी पड़ रही है। वहां आतंकवाद की जड़े भारत के मुकाबले कई गुना गहरी हैं और एक दिन वह पाकिस्तान नामक देश को खत्म कर देंगी।
तारिक अली का मुंबई के संदर्भ वाला पूरा लेख तो आप नीचे की पोस्ट में खैर अंग्रेजी में पढ़ ही लेंगे लेकिन यहां मुझे इस्राइल और फिलिस्तीन में चल रहे संघर्ष की याद आती है। फिलिस्तीन में आज हर बच्चा इस्राइल के खिलाफ बंदूक उठाने को तैयार रहता है। यही वजह है कि वहां के चर्चित आतंकवादी संगठन हमास जो कई देशों में प्रतिबंधित है, की सरकार बन गई। यानी वहां के लोगों ने उन्हें चुना। कुल मिलाकर आतंकवाद के कई पहलू हैं और इस समस्या को समग्र रूप से और बहुत संजीदा तरीके से देखना होगा।
पेश है दीपक चोपड़ा का विडियो और तारिक अली का अंग्रेजी में लेख ठीक नीचे वाली पोस्ट में -
अंग्रेजी में इस इंटरव्यू का मुख्य सार यह है कि जब से अमेरिका ने इराक सहित तमाम मुस्लिम देशों के खिलाफ आतंकवाद के नाम पर हमला बोला है तबसे इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं। अमेरिका आतंकवाद को दो तरह से फलने फूलने दे रहा है – एक तो वह अप्रत्यक्ष रूप से तमाम आतंकवादी संगठनों की फंडिंग करता है। यह पैसा अमेरिकी डॉलर से पेट्रो डॉलर बनता है और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, इराक, फिलिस्तीन समेत कई देशों में पहुंचता है। दूसरे वह आतंकवाद फैलने से रोकने की आड़ में तमाम मुस्लिम देशों को जिस तरह युद्ध में धकेल दे रहा है, उससे भी आतंकवादियों की फसल तैयार हो रही है। दीपक चोपड़ा का कहना है कि पूरी दुनिया में मुसलमान कुल आबादी का 25 फीसदी हैं, जिस तरह अमेरिका के नेतृत्व में उनको अलग-थलग करने की कार्रवाई चल रही है, उससे आतंकवाद और बढ़ेगा, कम नहीं होगा। दीपक चोपड़ा पाकिस्तान और कश्मीर पर भी बोले हैं, वह आप खुद ही सुनकर जान लें तो बेहतर है। मैं उसे यहां लिखना नहीं चाहता।
दीपक चोपड़ा की इन बातों से आप सहमत हों या न हों लेकिन मैं इतना बता दूं कि अमेरिकी मानस में यह सोच घर करती जा रही है। हाल ही में जब बाराक ओबामा जब अपने प्रचार में जुटे थे तो उन्हें कई कड़वी सच्चाइयों का सामना करना पड़ा था। जिसमें सबसे खास यह था कि अमेरिकी चाहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का जो हौवा अमेरिका यानी जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने खड़ा किया है और जिसकी वजह से आज पूरी दक्षिण पूर्व एशिया में अशांति फैली है, वह नीति वापस ली जानी चाहिए। मुस्लिम देशों के खिलाफ जो घृणा का माहौल फैलाया जा रहा है, वह फौरन बंद किया जाना चाहिए।
अमेरिका की एक प्रतिष्ठा पत्रिका काउंटर पंच में जाने-माने लेखक और राजनीतिक विश्लेषक तारिक अली का एक लेख मुंबई में किए गए हमले पर प्रकाशित हुआ है। उस लेख को मैं यहां आप लोगों के लिए अंग्रेजी में पेश कर रहा हूं। इस लेख में कही गई बातें भी अध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा से मिलती हैं। तारिक अली ने यह भी लिखा है कि गुजरात में मोदी की सरकार ने जो कुछ भी किया, उससे भी आतंकवाद की फसल पैदा हो रही है। तमाम दंगों में जो मुस्लिम परिवार प्रभावित हुए हैं, उनके घरों के बच्चे भी आतंकवाद के रास्ते पर कदम रख चुके हैं। तारिक अली की हाल ही में आई पुस्तक द ड्यूल पाकिस्तान काफी चर्चित हो रही है। जिसमें कहा गया है कि अमेरिका का अंधा समर्थन कर पाकिस्तान को क्या कीमत चुकानी पड़ रही है। वहां आतंकवाद की जड़े भारत के मुकाबले कई गुना गहरी हैं और एक दिन वह पाकिस्तान नामक देश को खत्म कर देंगी।
तारिक अली का मुंबई के संदर्भ वाला पूरा लेख तो आप नीचे की पोस्ट में खैर अंग्रेजी में पढ़ ही लेंगे लेकिन यहां मुझे इस्राइल और फिलिस्तीन में चल रहे संघर्ष की याद आती है। फिलिस्तीन में आज हर बच्चा इस्राइल के खिलाफ बंदूक उठाने को तैयार रहता है। यही वजह है कि वहां के चर्चित आतंकवादी संगठन हमास जो कई देशों में प्रतिबंधित है, की सरकार बन गई। यानी वहां के लोगों ने उन्हें चुना। कुल मिलाकर आतंकवाद के कई पहलू हैं और इस समस्या को समग्र रूप से और बहुत संजीदा तरीके से देखना होगा।
पेश है दीपक चोपड़ा का विडियो और तारिक अली का अंग्रेजी में लेख ठीक नीचे वाली पोस्ट में -
टिप्पणियाँ
यदि आप उसने वो किया इसलिये इसने हथियार उठाये की थ्योरी लगाते हैं तो इतनी सारी आतंकवादी घटनाओं के बाद हिन्दुओं को अपने हाथों में हथियार उठा लेने चाहिये थे.
आप गलत है श्री यूसुफ किरमानी,
और आप अमेरिका को अफगानिस्तान पर हमले का दोषी बताते हैं तो बताईये कि अमेरिका ने हमला क्यों बोला? क्या वह 9/11 का वार सहकर चुपचाप बैठ जाता और बार बार हमले सहता रहता?
माफ कीजिये वहां भारतीय राष्ट्रीय(?) कांग्रेस जैसी पार्टी और मनमोहन, सोनिया, पाटिल जैसे गैर जिम्मेदार व्यक्ति सत्ता में नहीं है.
इन दीपक चौपड़ाओं को जाने दीजिये, इनकी दुकानदारी लच्छेदार बातों से चलती ही रहती है, आप खुद बताईये कि आपको कैसा लग रहा है अपने देश पर हमले का यह घाव सहने के बाद?
भून दिया होता कन्धार में तो मुम्बई न आ पाते जालिम ।
हमने ही छोड़े थे ये खुंख्वार उस दिन, आज मुम्बई में कहर ढाने के लिये ।।
इतिहास में दो शर्मनाक घटनायें हैं, पहली पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुफ्ती मोहमद सईद के मंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी बेटी डॉं रूबिया सईद की रिहाई के लिये आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर खतरनाक आतंकवादीयों को रिहा करना, जिसके बाद एच.एम.टी. के जनरल मैनेजर खेड़ा की हत्या कर दी गयी । और दूसरी कन्धार विमान अपहरण काण्ड में आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर रिरियाना और अति खुख्वार आतंकवादीयों को रिहा कर देना । उसी का अंजाम सामने है । तमाशा यह कि जिन्होंने इतिहास में शर्मनाक कृत्य किये वे ही आज बहादुरी का दावा कर रहे हैं, अफसोस ऐसे शर्मसार इतिहास रचने वाले नेताओं की राजनीति पर । थू है उनके कुल और खानदान पर ।
अगर तारिक अली की और आपकी बात मान ली जाए तो फ़िर गुजरात में मोदी की सरकार से पहले न तो बामियान के बुद्ध को उडाया गया, न ९/११ में ढाई हज़ार निहत्थे नागरिक मरे और न ही 1947 में पाक इस्लाम के नाम पर भारत के लाखों नागरिकों को गाज़र-मूली की तरह काटा और बेघर किया गया, न ही कश्मीर के पंडितों को उन्हीं के घरों में ज़िंदा जलाया गया और न ही गुरु तेग बहादुर के बन्दों को आरी से काटा गया .
सच दिख नहीं पा रहा हो इतने नासमझ तो आप भी नहीं हैं और न ही हम हैं फ़िर भी, "...दिल के खुश रखने को गालिब ये ख़याल अच्छा है" अलबत्ता सनद रहे कि अफवाहें फैलाने वाले लोग देश के बहुत बड़े दुश्मन हैं.
मुझे लगता था कि आप जैसे पढ़े लिखे व्यक्ति का दृष्टिकोण तो तालेबानी धर्म-भक्तों से भिन्न होगा मगर मैं भूल गया था कि पाकिस्तान बनाने वाले सभी लोग मदरसों में नहीं वरन विलायत में पढ़े हुए थे.
पंगेबाज जी, आप अच्छे ब्लॉगर हैं। ब्लॉग पर शालीनता से पेश आने में कुछ भी नहीं जाएगा। अगर आप किसी से सहमत नहीं हैं तो भी क्या उसे गालियां देने लगेंगे। कृपया ऐसे शब्दों का प्रयोग न करें। आपके हिसाब से तो मुझे ऐसी तमाम टिप्पणियों को यहां से हटा देना चाहिए जिनसे मैं सहमत नहीं हूं या मैं उनको गरियाने लगूं।
अमरीका में रहते हुए उन्होंने अमरीका की फ़ेल्ड पॉलिसीज़ पर तंज़ किया है. क्या कश्मीर की स्वतंत्रता के नाम पर भारत का एक और टुकडा कर देने के मंसूबों को स्वीकार नहीं किया जा सकता.
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