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क्या भारत में एक और गदर (1857) मुमकिन है

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महमूद फारुकी तब चर्चा में आए थे जब विलियम डेल रेम्पेल की किताब द लास्ट मुगल आई थी। लेकिन इस वक्त यह शख्स दो खास वजहों से चर्चा में है, एक तो उनकी फिल्म फिल्म पीपली लाइव आने वाली है दूसरा उनकी किताब बीसीज्ड वायसेज फ्रॉम दिल्ली 1857 पेंग्विन से छपकर बाजार में आ चुकी है। 1857 की क्रांति में दिल्ली के बाशिंदों की भूमिका और उनकी तकलीफों को बयान करने वाली यह किताब कई मायने में अद्भभुद है। महमूद फारूकी ने मुझसे इस किताब को लेकर बातचीत की है...यह इंटरव्यू नवभारत टाइम्स में 7 अगस्त 2010 को प्रकाशित हो चुका है। इसे वहां से साभार सहित लिया जा रहा है... इसे महज इतिहास की किताब कहें या दस्तावेज इसे दस्तावेज कहना ही ठीक होगा। यह ऐसा दस्तावेज है जो लोगों की अपनी जबान में था। मैंने उसे एक जगह कलमबंद करके पेश कर दिया है। लेकिन अगर उसे जिल्द के अंदर इतिहास की एक किताब मानते हैं तो हमें कोई ऐतराज नहीं है। आपने इसमें क्या बताया है यह 1857 में दिल्ली के आम लोगों की दास्तान है। अंग्रेजों ने शहर का जब घेराब कर लिया तो उस वक्त दिल्ली के बाशिंदों पर क्या गुजरी। यह किताब दरअसल यही बताती है। इतिहास में 1857 की क...