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दिल्ली को पेरिस बनाएंगे

इस वक्त दिल्ली का जो हाल है, वह यहां के बाशिंदों से पूछिए। कॉमनवेल्थ गेम्स की वजह से दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने की जो तैयारियां की जा रही हैं, उसने इस शहर की शक्ल बिगाड़ दी है। सरकार को पहले यह याद नहीं आय़ा कि एनसीआर के किसी शहर से दिल्ली में प्रवेश करने के लिए कम से कम सीमा पर जो व्यवस्थाएं होनी चाहिए, वह नहीं थीं और उसे वक्त रहते मुहैया कराने की कोशिश की जाती। अब जब ध्यान आया है तो पूरे बॉर्डर को ही तहस-नहस कर दिया गया है, चाहे आप गाजियाबाद से आ रहे हैं या फिर फरीदाबाद या गुड़गांव से...सोनीपत से...नोएडा से...यही आलम है... नवभारत टाइम्स में कार्यरत जयकांत शर्मा ने अपनी व्यथा पर कलम चलाई है...उनकी कविता पढ़े। कृपया इस कविता में साहित्य न तलाशें, यह उनके अपने विचार हैं। दिल्ली को पेरिस बनाएंगे, वहां सौ-सौ मजिल की इमारते हैं, यहां पांच मजिला को भी गिराएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां टावर या मकान सील नहीं होते, यहां सब कुछ सील करवाएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां छोटी-मोटी बातों पर झगड़े नहीं होते, यहां बिना बात के झगड़े करवाएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां हर काम तरतीब से होता ह...