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युद्ध में कविः जब मार्कर ही हथियार बन जाए

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 दुनिया में अलग-अलग तरह के युद्ध या संघर्ष हो रहे हैं। गाजा से लेकर भारत तक परिस्थितियां बस अलग-अलग हैं। अगर कहीं संवैधानिक संस्थाएं नष्ट हो रही हैं तो उन्हें बचाने का संघर्ष अलग होगा। लेकिन फिलहाल गाजा के संघर्ष पर बात हो रही है। अभी तक वहां 18,200 फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं, जिनमें आठ हजार से ज्यादा तो बच्चे और महिलाएं हैं। यहां तक कि वहां कवि, लेखक, पत्रकार चुन-चुन कर मारे जा रहे हैं। यूसुफ किरमानी का यह लेख एक ऐसे ही कवि पर केंद्रित है। जिसके बारे में दुनिया को जानना जरूरी है। - यूसुफ किरमानी इजराइल-हमास युद्ध ( Israel-Hamas War) में गाजा का हाल आप पढ़ रहे होंगे। क्या आपकी नजर से रिफत अलारेर  (Refaat Alareer) नाम गुज़रा है ? रिफत अलारेर   लोकप्रिय   फिलिस्तीनी कवि थे जो इजराइल-हमास युद्ध में गाजा में गुरुवार 6 दिसंबर 2023 को मारे गए। मैं यह लेख आपके लिए उस घटना के कई दिनों बाद लिख पा रहा हूं। गाजा में अब हर दिन मौतें हो रही हैं और शेष दुनिया के लिए वो सामान्य मौतें हो गई हैं। दुनिया के शेष हिस्से के लिए जैसे गाजा की मौतों का कोई अर्थ ही न हो।   रिफत के एक शब्द की वजह से

मैं चलती ट्रेन में आतंक बेचता हूं...

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मैं उन्माद हूं, मैं जल्लाद हूं मैं हिटलर की औलाद हूं मैं धार्मिक व्यभिचार हूं मैं एक चतुर परिवार हूं मैं चलती ट्रेन में आतंक बेचता हूं मैं ट्रकों में पहलू खान खोजता हूं मैं घरों में सभी का फ्रिज देखता हूं मैं हर बिरयानी में बीफ सोचता हूं मैं एक खतरनाक अवतार हूं मैं नफरतों का अंबार हूं मैं दोधारी तलवार हूं मैं दंगों का पैरोकार हूं मैं आवारा पूंजीवाद का सरदार हूं मैं राजनीति का बदनुमा किरदार हूं मैं तमाम जुमलों का झंडाबरदार हूं मैं गरीब किसान नहीं, साहूकार हूं मुझसे यह हो न पाएगा, मुझसे वह न हो पाएगा और जो हो पाएगा, वह नागपुरी संतरे खा जाएगा फिर बदले में वह आम की गुठली दे जाएगा  मेरे मन को जो सुन पाएगा, वह "यूसुफ" कहलाएगा  ........कवि का बयान डिसक्लेमर के रूप में........ यह एक कविता है। लेकिन मैं कोई स्थापित कवि नहीं हूं। इस कविता का संबंध किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति विशेष से नहीं है। हालांकि कविता राजनीतिक है। हम लोगों की जिंदगी अराजनीतिक हो भी कैसे सकती है। आखिर हम लोग मतदाता भी हैं। हम आधार कार्ड वाले लोगों के आस