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दर्द-ए-जामिया

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नोट – आज मैं आप लोगों से मुखातिब नहीं हूं। जामिया यूनिवर्सिटी की जो छवि देश-विदेश में बनाई जा रही है, उससे संबंधित और सरोकार रखने वाले सभी आहत हैं। वरिष्ठ पत्रकार सौरभ भारद्वाज जामिया के पूर्व छात्र हैं और इन दिनों नवभारत टाइम्स को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। मेरे ब्लॉग पर नीचे वाला लेख पढ़ने के बाद उन्होंने यह प्रतिक्रिया भेजी जो मैं इस ब्लॉग पर लेख के रूप में पेश कर रहा हूं। हाजिर हैं बकलम खुद सौरभ भारद्वाज - - सौरभ भारद्वाज जामिया इन दिनों सुर्खियों में है और जामिया से जुड़ी मेरी यादें एकदम तरोताजा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जहां की तहजीब में शुमार है, जहां तालीम हासिल करना किसी मुस्लिम के लिए ही नहीं बल्कि किसी हिंदू के लिए भी गर्व की बात है, ऐसे जामिया को बेशक एक-दो साल ही सही लेकिन मैंने बेहद नजदीक से देखा है। उसकी धडक़न को महसूस किया है। गालिब के बुत के अगल-बगल बिताए गए घंटों और अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि पिछले लगभग 5-6 हफ्तों में इस यूनिवर्सिटी की जो राष्ट्र विरोधी इमेज गढ़ दी गई है, यह यूनिवर्सिटी वैसी नहीं है। सात-आठ साल ही बीते हैं जब मैं जामिया के हिंदी विभाग मे...