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ऐसे आंदोलनों का दबना अब मुश्किल

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भारत जब अपनी आजादी की जब 63वीं वर्षगांठ मना रहा था और लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह किसानों के लिए लंबी-चौड़ी बातें कर रहे थे तो ठीक उसी वक्त अलीगढ़-मथुरा मार्ग पर पुलिस ही पुलिस थी। यह सडक ठहर गई थी। सड़क के दोनों तरफ बसे गांवों के किसानों और उनके परिवार के लोगों को बाहर निकलने की मनाही थी। जो निकला, उसे पीटा गया और गिरफ्तार कर लिया गया। यह सब किसी अंग्रेजी पुलिस ने नहीं बल्कि देश की पुलिस फोर्स ने किया। यहां के किसानों ने गलती यह की थी कि इन्होंने सरकार से उनकी जमीन का ज्यादा मुआवजा मांगने की गलती कर दी थी। आंदोलन कोई नया नहीं था और महीनों से चल रहा था लेकिन पुलिस वालों की नासमझी से 14 अगस्त की शाम को हालात बिगड़े और जिसने इस पूरी बेल्ट को झुलसा दिया। यह सब बातें आप अखबारों में पढ़ चुके होंगे और टीवी पर देख चुके होंगे। अपनी जमीन के लिए मुआवजे की ज्यादा मांग का आंदोलन कोई नया नहीं है। इस आंदोलन को कभी लालगढ़ में वहां के खेतिहर लोग वामपंथियों के खिलाफ लड़ते हैं तो कभी बिहार के भूमिहीन लोग सामंतों के खिलाफ लड़ते हैं तो हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपेक्षाकृत संपन्...