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मुस्लिम वोट बैंक किसे डराने के लिए खड़ा किया गया ?

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मेरा यह लेख आज (16 मार्च 2017)  नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है। अखबार में आपको इस लेख का संपादित अंश मिलेगा, लेकिन सिर्फ हिंदीवाणी पाठकों के लिए उस लेख का असंपादित अंश यहां पेश किया जा रहा है...वही लेख नवभारत टाइम्स की अॉनलाइन साइट एनबीटी डॉट इन पर भी उपलब्ध है। कृपया तीनों जगह में से कहीं भी पढ़ें और मुमकिन हो तो अन्य लोगों को भी पढ़ाएं... यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों ने जिस तरह मुस्लिम राजनीति को हाशिए पर खड़ा कर दिया है, उसने कई सवालों को जन्म दिया है। इन सवालों पर गंभीरता से विचार के बाद संबंधित स्टेकहोल्डर्स को तुरंत एक्टिव मोड में आना होगा, अन्यथा अगर इलाज न किया गया तो उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए मुस्लिम राजनीति पर चंद बातें करना जरूरी हो गया है। एक लंबे वक्त से लोकसभा, राज्यसभा और तमाम राज्यों की विधानसभाओं में मुस्लिम प्रतिनिधित्व लगातार गिरता जा रहा है। तमाम राष्ट्रीय और रीजनल पार्टियों में फैले बहुसंख्यक नेतृत्वकर्ताओं ने आजम खान, शाहनवाज खान तो पैदा किए और ओवैसी जैसों को पैदा कराया लेकिन एक साजिश के तहत कानून बनाने वाली संस्थाओं में मुस्लिम प्रति...

मैडम किरन बेदी, बुखारी के फतवे के पीछे कौन था

किरन बेदी को बीजेपी वाले समझा क्यों नहीं रहे...वह अपनी हार से उबरने का नाम नहीं ले रही हैं। अपनी हार के लिए बीजेपी और इसके नेताओं को जिम्मेदार ठहराने के बाद उन्होंने अपनी हार में एक और फैक्टर मुस्लिम वोटों का न मिलना भी जोड़ दिया है और कहा है कि जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के फतवे की वजह से अंतिम समय में दिल्ली के कृष्णानगर इलाके में रहने वाले मुसलमानों का वोट उन्हें नहीं मिला, जिस वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव से पहले किरन का शुमार देश के तेज-तर्रार पुलिस अधिकारियों में था। जैसे ही बीजेपी ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने वाला न्यौता दिया, उनकी छवि पर सबसे पहला हमला यहीं से हुआ। आईपीएस विकास नारायण राय ने जनसत्ता में एक लेख लिखा जिसमें बहुत बारीकी से किरन का विश्लेषण किया गया। राय को मैं काफी दिनों से जानता हूं और वह भारतीय पुलिस सेवा में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उन्होंने लिखा था कि किरन बेदी भारतीय लोगों के बीच में एक जीवित मिसाल बन गई थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें अपने लिए इस्तेमाल कर उनकी छवि पर बट्टा लगा दिया है। किरन के बाद भारतीय...

छह मुल्ले मोदी के साथ क्यों....

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                                                 ये मैं नहीं फेसबुक पर लोग कह रहे हैं Note : This article also available on NBT ONLINE. Most of the readers are commenting there. You can visit there and read comments. Link - http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/yusufkirmani/entry/bjp-trying-to-woo-muslims नोटः .ये लेख नवभारत टाइम्स की अॉनलाइन साइट पर भी उपलब्ध है। वहां पाठकों की भारी प्रतिक्रिया आ रही है। उन प्रतिक्रियाओं को पढ़ने और सारे मुद्दे को समझने के लिए आप भी वहां जाकर टिप्पणियों को पढ़ सकते हैं। इस लिंक पर जाएं - http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/yusufkirmani/entry/bjp-trying-to-woo-muslims चुनाव का मौसम है...फेसबुक का साथ है...वल्लाह क्या बात है। कायदे से इस तरह से मेरे लेख की शुरुआत नहीं होनी चाहिए थी लेकिन अब हो गई तो आइए बात करते हैं। हुआ यह कि अभी नरेंद्र मोदी का एक फोटो कुछ मौलाना लोगों के साथ अखबारों और फेसबुक पर प्रकट ह...

गुंडे कैसे बन जाते हैं राजा

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मेरे मोबाइल पर यूपी से कॉल आमतौर पर दोस्तों या रिश्तेदारों की ही आती है लेकिन इधर दो दिनों से  कुंडा (प्रतापगढ़) में डीएसपी जिया-उल-हक की हत्या के बाद ऐसे लोगों की कॉल आई जो या तो सियासी लोग हैं या ऐसे मुसलमान जिनका किसी संगठन या पॉलिटिक्स (Politics) से कोई मतलब नहीं है। ये लोग यूपी के सीएम अखिलेश यादव, उनके पिता मुलायम सिंह यादव को जी भरकर गालियां दे रहे थे। मैं हैरान था कि ये वे लोग हैं जो समाजवादी पार्टी को भारी बहुमत से जिताकर लाए थे और अखिलेश के चुनावी वादे लैपटॉप-टैबलेट (Laptop-Tablate) और बेरोजगारी भत्ते के हसीन सपनों में खोए हुए थे। मैं जब पिछली बार फैजाबाद में था तो इनमें से कुछ लोग मोहल्ले और पड़ोस की लिस्ट बनाने में जुटे थे और हिसाब लगा रहे थे कि किसको नेताजी से लैपटॉप दिलवाना है और किसको मुफ्त का भत्ता दिलाना है। ...लेकिन भत्ता तो नहीं लेकिन अखिलेश और उनके प्रशासन ने यूपी के मुसलमानों को ऐसी टैबलेट दी है कि जिसे वे न तो निगल पा रहे हैं और न उगल पा रहे हैं। कुंडा में डीएसपी की हत्या के बाद टांडा में हिंदू-मुस्लिम दंगे के बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा। ...

आप मानते रहिए मुसलमानों को वोट बैंक

नवभारत टाइम्स में मेरा यह लेख आज (13 मार्च 2012) को प्रकाशित हो चुका है। इस ब्लॉग के नियमित पाठकों के लिए उसे यहां भी पेश किया जा रहा है। लेकिन यहां मैं एक विडियो दे रहा हूं जो मुस्लिम वोटरों से बातचीत के बाद विशेष रिपोर्ट के तौर पर आईबीएन लाइव पर करीब एक महीने पहले दी गई थी। अगर कांग्रेस पार्टी के पॉलिसीमेकर्स ने इसे देखा होता तो शायद वे खुद को सुधार सकते थे.... पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आ चुके हैं। इनमें से यूपी के चुनाव नतीजों पर सबसे ज्यादा बहस हो रही है और उसके केंद्र में हैं मुस्लिम वोटर (Muslim Voter)। मुसलमानों के वोटिंग पैटर्न को देखते हुए चुनाव अभियान से बहुत पहले और प्रचार के दौरान सभी पार्टियों का फोकस मुस्लिम वोटर ही था।  मुस्लिम वोटों को बांटने के लिए रातोंरात कई मुस्लिम पार्टियां खड़ी कर दी गईं। माहौल ऐसा बनाया गया अगर मुसलमान कांग्रेस, बीएसपी, समाजवादी पार्टी (एसपी) को वोट न देना चाहें तो उसके पास मुस्लिम पार्टियों का विकल्प मौजूद है। हर पार्टी का एक ही अजेंडा था कि या तो मुस्लिम वोट उसकी पार्टी को मिले या फिर वह इतना बंट जाए कि किसी को उसका फायदा...

क्या हो आज के मुसलमान की दिशा

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भारतीय मुसलमानों की दशा और दिशा क्या हो, इसे लेकर तमाम बहसें चलती रहती हैं। भारतीय मुसलमानों के नए-नए स्वयंभू नेता भी रोजाना पैदा होते हैं और खुद को चमकाने के बाद वे परिदृश्य से गायब हो जाते हैं। देश के जाने-माने पत्रकार एम.जे. अकबर ने रविवार को पटना में एक व्याख्यानमाला के तहत दिए गए लेक्चर में मुसलमानों को लेकर कुछ बातें रखी हैं। मैं समझता हूं कि अकबर साहब ने जितनी सटीक और व्यावहारिक बातें कहीं हैं, वे मौजूदा पीढ़ी के मुसलमानों को भी जाननी चाहिए। हालांकि अकबर साहब ने आतंकवाद जैसे मुद्दे पर कुछ नहीं बोला लेकिन जो बोला है, वह व्यावहारिक है। आइए जानते हैं कि दरअसल उन्होंने कहा क्या है... प्रख्यात पत्रकार और लेखक एम. जे. अकबर ने कहा कि देश के मुसलामानों को सुरक्षा का भय दिखाने वालों को नहीं बल्कि उनके विकस की बात करने वालों के पक्ष में अपना मत देना चाहिए। पटना में बिहार इंडस्ट्रीज एसोसियशन हॉल में आयोजित शाह मुश्ताक अहमद स्मृति व्याख्यान माला आर्थिक विकास एवं वंचित वर्ग पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अकबर ने कहा कि देश के मुसलामानों को सुरक्षा का भय दिखाने वाले को नहीं बल्कि उनके विकास क...

बिछने लगी है मुस्लिम वोटों के लिए बिसात

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मेरा यह लेख नवभारत टाइम्स में 25 फरवरी 2009 को संपादकीय पेज पर प्रथम लेख के रूप में प्रकाशित है। सामयिक होने के कारण इस ब्लॉग के पाठकों के लिए भी प्रस्तुत कर रहा हूं। इस पर आई टिप्पणियों को आप नवभारत टाइम्स की आनलाइन साइट के इस लिंक पर पढ़ सकते हैं - http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4184206.cms पार्टियां मुसलमानों से मुख्यधारा की पार्टियों को वोट देने की मांग तो करती हैं, लेकिन खुद उतनी तादाद में उन्हें टिकट नहीं देतीं, जितना उन्हें देना चाहिए लोकसभा चुनावों के नजदीक आते ही सियासत के खिलाड़ी अपने-अपने मोहरे लेकर तैयार हो गए हैं। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में वोटों के लिए बिसात बिछाई जा रही है। इसमें भी सबसे ज्यादा जोर मुस्लिम वोटों के लिए है। कहीं कोई पार्टी उलेमाओं का सम्मेलन बुला रही है तो कहीं से कोई उलेमा एक्सप्रेस को दिल्ली तक पहुंचाकर अपना मकसद हासिल कर रहा है। यूपी में 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जो लोकसभा की 35 और विधानसभा की 115 सीटों को प्रभावित करते हैं। यह एक विडंबना है कि सभी पार्टियां समय-समय पर मुसलमानों से मुख्यधारा की पार्टियों को वोट देने की मांग त...