मैडम किरन बेदी, बुखारी के फतवे के पीछे कौन था

किरन बेदी को बीजेपी वाले समझा क्यों नहीं रहे...वह अपनी हार से उबरने का नाम नहीं ले रही हैं। अपनी हार के लिए बीजेपी और इसके नेताओं को जिम्मेदार ठहराने के बाद उन्होंने अपनी हार में एक और फैक्टर मुस्लिम वोटों का न मिलना भी जोड़ दिया है और कहा है कि जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के फतवे की वजह से अंतिम समय में दिल्ली के कृष्णानगर इलाके में रहने वाले मुसलमानों का वोट उन्हें नहीं मिला, जिस वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।




चुनाव से पहले किरन का शुमार देश के तेज-तर्रार पुलिस अधिकारियों में था। जैसे ही बीजेपी ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने वाला न्यौता दिया, उनकी छवि पर सबसे पहला हमला यहीं से हुआ। आईपीएस विकास नारायण राय ने जनसत्ता में एक लेख लिखा जिसमें बहुत बारीकी से किरन का विश्लेषण किया गया। राय को मैं काफी दिनों से जानता हूं और वह भारतीय पुलिस सेवा में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उन्होंने लिखा था कि किरन बेदी भारतीय लोगों के बीच में एक जीवित मिसाल बन गई थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें अपने लिए इस्तेमाल कर उनकी छवि पर बट्टा लगा दिया है। किरन के बाद भारतीय पुलिस सेवा में आईं तमाम महिलाएं उन्हें अपना आदर्श मानती रही हैं लेकिन अब उन्हें भी धक्का लगा है।...खैर, चुनाव का प्रचार शुरू हो गया। किरन ने जो बयानबाजी की और बीजेपी जिस ऊहापोह की हालत में रही, उस पर काफी कुछ लिखा जा चुका है। यहां मैं किरन के ताजा बयान को लेकर बात करना चाहता हूं।
बुखारी के कथित फतवे या निर्देश को आम आदमी पार्टी ने तो उसी दिन खारिज कर दिया था लेकिन किरन ने कभी इसकी गहराई में जाने की कोशिश की कि बुखारी से वह बयान किसने दिलवाया था। 





यह जांच का विषय रहेगा कि आखिर मतदान की पूर्व संध्या पर बुखारी ने वह बयान क्यों दिया...मुस्लिम राजनीति और बुखारी के तमाम कदम पर मेरी नजर रहती है। जहां तक मुझे समझ में आया है, वह बीजेपी के तरकश का आखिरी तीर था जो बुखारी के जरिए आजमाया गया यानी बीजेपी के कतिपय लोगों ने बुखारी से संपर्क कर उनसे वह कथित फतवा या निर्देश देने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने बिना वक्त गंवाए या सोचे समझे जारी कर दिया।...अब देखिए उसके बाद जो घटनाक्रम हुआ, उस पर नजर डालिए। उधर, जैसे ही बुखारी का बयान जारी हुआ कि मुसलमान आम आदमी पार्टी को वोट दें तो तुरंत ही बीजेपी के रणनीतिकार अरुण जेटली का बयान आ गया कि अब दिल्ली के लोग बीजेपी को वोट डालकर बुखारी को उसका जवाब दें...यानी यह सोची-समझी वोटों के ध्रुवीकरण की साजिश थी जिसे उतनी ही तेजी से आम आदमी पार्टी ने नेस्तोनाबूद कर दिया। इन्हीं बुखारी साहब ने लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस के लिए तथाकथित फतवा जारी किया था जिसे उप पार्टी ने बहुत बेशर्मी से कबूल भी किया था लेकिन नतीजे क्या रहे। लोकसभा चुनाव का विश्लेषण बताता है कि उस वक्त लोगों ने कांग्रेस के खिलाफ मन बना लिया था, बुखारी के फतवे की वजह से वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हुआ था कि सारे हिंदू वोट उसी कारण बीजेपी को पड़े। लेकिन विश्लेषकों ने कभी तो बीजेपी की प्रचंड जीत का श्रेय आरएसएस को दिया तो कभी बुखारी के फतवे को।




तरस आता है...बीजेपी की रणनीति औऱ बुखारी की चालाकी पर...बुखारी साहब को कई मौकों पर मुस्लिम वोटर यह बता चुके हैं कि हम आपके फतवे या निर्देश के हिसाब से वोट नहीं डाल करते, हालात को समझते हुए वोट डाला करते हैं। हालांकि कई समाजशास्त्रियों औऱ राजनीतिक दलों को यह मुगालता है कि मुस्लिम वोट बैंक का इस्तेमाल होता है। आप लोग इसे इस रूप में क्यों नहीं लेते कि भारतीय मुसलमान अन्य मजहब वालों की ही तरह जागरूक और सजग हैं और अपने वोट का इस्तेमाल किसी एक पार्टी या नेता के लिए ही करते हैं। वह जानते हैं कि तात्कालिक परिस्थितियों में क्या बेहतर है...दिल्ली के चुनाव ने यह फिर से साबित किया है कि राजनीति का ककहरा उन्हें भी आता है। जिस दिन मतदान हो रहा था, मैं दिल्ली के कई मुस्लिम बहुत इलाकों में उनका वोटिंग पैटर्न समझने के लिए घूमा था और यह पूछकर, जानकर और देखकर हैरान था कि कहीं-कहीं 90 फीसदी मुस्लिम वोट आम आदमी पार्टी को जा रहे थे। ये सारे के सारे वोट कांग्रेस के परंपरागत वोट थे। अगले दिन इसकी औऱ विस्तृत जानकारी के लिए मैंने मौलाना अतहर हुसैन देहलवी साहब से बात की, जिनका संपर्क मुसलमानों के बीच काफी बड़ा है, उनका कहना था कि मुसलमान भी बाकी दिल्ली वालों की तरह ही वोट कर रहा है, इसमें हैरान होने की कोई बात ही नहीं है।...





मुझे उम्मीद थी कि दिल्ली के चुनाव नतीजों के बाद मुसलमानों को वोट बैंक या किसी इमाम के निर्देशों पर चलने वाले मतदाता का भ्रम लोगों के दिलो दिमाग से दूर हो गया होगा लेकिन किरन बेदी के बयान से जाहिर हो रहा है कि मुसलमानों को लेकर उन्होंने भी एक मुगालता पाला हुआ है। उम्मीद है कि दिल्ली चुनाव से सबक लेते हुए सारे राजनीतिक दल मुसलमानों के वोटों को इस नजरिए से देखने की कोशिश छोड़ देंगे और तमाम मौलवी और इमाम खुद को इस कौम का ठेकेदार बताकर बर्ताव करना छोड़े देंगे।  






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