ग़ज़लः हर मसजिद के नीचे तहख़ाना...
हर मसजिद के नीचे तहख़ाना
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-यूसुफ किरमानी
हर मसजिद के नीचे खोदो, मिल जाएगा तहख़ाना
मालूम है, नफ़रत के ढेर पर है तुम्हारा तोपख़ाना।
रोज़ाना आता है वो, नया हंगामा ओ दहशत लेकर
मुल्क के एंकर बनाते हैं, स्टूडियो में नया बुतखाना।
सियासत का हर दांव मुल्क की मिल्लत पर भारी है
नहीं आती कोई आवाज़, ख़ामोश है नक्कारखाना।
ये ज़हरीली फिज़ा महज़ मौसमी नहीं है जनाबे आला
अहले सियासत ही चला रहे हैं, हर घर में कारख़ाना।
मत करो इंसाफ की ढोंगी बातें, उसकी बातों का क्या
मालूम है कहाँ से चलता है सरमायेदार का छापाखाना।
टीवी चैनल कर नहीं सकते अपने मुल्क की सच बातें
बताते हैं पाकिस्तान को शरीफ़ों ने बनाया कबाड़ख़ाना।
यूसुफ ए किरमानी हिला दो राजा का सिंहासन
जनता भूखी है, जला दो अब उसका नेमतखाना।
- यूसुफ किरमानी
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