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2009 मैं तुम्हारा स्वागत क्यों करूं?

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एक रस्म हो गई है जब बीते हुए साल को लोग विदा करते हैं और नए साल का स्वागत करते हैं। इसके नाम पर पूरी दुनिया में कई अरब रूपये बहा दिए जाते हैं। आज जो हालात हैं, पूरी दुनिया में बेचैनी है। कुछ देश अपनी दादागीरी दिखा रहे हैं। यह सारा आडंबर और बाजारवाद भी उन्हीं की देन है। इसलिए मैं तो नए साल का स्वागत क्यों करूं? अगर पहले से कुछ मालूम हो कि इस साल कोई बेगुनाह नहीं मारा जाएगा, कोई देश रौंदा नहीं जाएगा, किसी देश पर आतंकवादी हमले नहीं होंगे, कहीं नौकरियों का संकट नहीं होगा, कहीं लोग भूख से नहीं मरेंगे, तब तो नववर्ष का स्वागत करने का कुछ मतलब भी है। हालांकि मैं जानता हूं कि यह परंपरा से हटकर है और लोग बुरा भी मानेंगे लेकिन मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता? इसलिए माफी समेत... अलविदा 2008, इस साल तुमने बहुत कष्ट दिए। तुम अब जबकि इतिहास का हिस्सा बनने जा रहे हो, बताओ तो सही, तुम इतने निष्ठुर हर इंसान के लिए क्यों साबित हुए। तुम्हें कम से कम मैं तो खुश होकर विदा नहीं करना चाहता। जाओ और दूर हो जाओ मेरी नजरों से। तुमने ऐसा कुछ भी नहीं किया कि तुम्हें उल्लासपूर्वक विदा करूं और तुम्हारे ही साथी २००९ का स्व...

नीलम तिवारी की खुदकुशी के बहाने

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यह पोस्ट जब मैं आज लिखने बैठा हूं तो माहौल बहुत गमगीन है। इसलिए नहीं कि मेरे साथ, मेरे परिवार, मेरे मित्रों या सहयोगियों के साथ कोई ऐसी-वैसी बात हुई है। दरअसल, कायदे से इसे तो मुझे कल ही लिखना चाहिए था लेकिन कल मैं इतने रंजो-गम (grief and sorrow)में था कि लिखने की ताकत न जुटा पाया। नीलम तिवारी, यही नाम था उसका। राजधानी दिल्ली के द्वारका इलाके में नीलम ने दो दिन पहले खुदकुशी (suicide)कर ली। अखबारों में खुदकुशी की खबरें कितनी जगह पाती हैं, यह आप लोगों को मालूम है। लेकिन यह खुदकुशी की खबर अलग थी और सिर्फ नवभारत टाइम्स में इसे पहले पेज पर जगह मिली थी। नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर पंकज त्यागी ने इस खबर को फाइल करते हुए लिखा था कि आर्थिक मंदी (recession) से जुड़ी राजधानी दिल्ली में खुदकुशी की यह पहली खबर है। पंकज की खबर में कहा गया था कि आईसीआईसीआई बैंक में काम करने वाली नीलम तिवारी लोन दिलाने का काम करती थीं लेकिन आर्थिक मंदी की वजह से उनका यह काम बंद हो चुका था। लोग लोन नहीं ले रहे थे। नीलम द्वारका के एक प्लैट में अपनी बूढ़ी मां और १३ साल की बेटी नेहा के साथ रह रही थीं। उनके पत...

बोलो, अंकल सैम, पूंजीवाद जिंदाबाद या मुर्दाबाद

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एक कम्युनिस्ट देश (communist countries) के रूप में जब रूस टूट रहा था तो उस वक्त अति उत्साही लोगों ने लहगभग घोषणा कर दी थी कि पूंजीवादी देश (capitalist countries) ही लोगों को तरक्की के रास्ते पर ले जा सकते हैं। अमेरिका को इस पूंजीवादी व्यवस्था (capitalism) का सबसे बड़ा रोल मॉडल बताया गया। रूस से टूटकर जो देश अलग हुए और उन्होंने कम्युनिज्म मॉडल को नहीं अपनाया, उन देशों ने कितनी तरक्की की या आगे बढ़े, इस पर कोई चर्चा नहीं की जाती। लेकिन अब अमेरिकी पूंजीवाद के खिलाफ अमेरिका में ही आवाज उठने लगी है। वहां के प्रमुख अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में इस सिलसिले में कई लेख प्रकाशित हुए जिसमें मौजूदा आर्थिक मंदी, वहां के बैंको के डूबने की वजह, इराक में जबरन दादागीरी के मद्देनजर पूंजीवादी व्यवस्था को जमकर कोसा गया है। इसके लिए जॉर्ज डबल्यू बुश की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। इतना ही नहीं उसमें कहा गया है कि कहां तो हम रोल मॉडल बनने चले थे और कहां अब हमारा अपना तानाबाना ही बिखर रहा है। हमारी नीतियों की वजह से कुछ अन्य देश भी मंदी (recession) का शिकार हो रहे हैं। कल तक जो देश हमारे लिए एक आकर्षक बाजा...