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क्या भारतीय मीडिया पर बुलडोजर चलाने की जरूरत है... If Indian Media Should be Buldoz

 मुंबई के पत्रकार मित्र उमा शंकर सिंह ने लिखा है कि नोएडा में जितने भी न्यूज़ चैनल हैं, उनकी बिल्डिंगों पर बुलडोज़र चला दिए जाएँ। ताकि इन चैनलों को हमेशा के लिए नेस्तोनाबूद कर दिया जाए। उमा भाई की यह टिप्पणी यूँ ही नहीं आई, बल्कि इसके पीछे उनकी जो टीस छिपी हुई है, उसे समझना और उस पर बात करना बेहद ज़रूरी है। दरअसल, सबसे तेज़ चैनल और एक चावल व्यापारी के चैनल ने सिविल सर्विस के फ़ाइनल नतीजे आने के बाद ख़बरें चलाईं कि मुस्लिम युवक युवतियों को सिविल सर्विस के जरिए भारत सरकार की नौकरियों में घुसाया जा रहा है। उसमें यह भी बताया गया कि साल दर साल सिविल सेवा में परीक्षा देने वाले मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है। यह चिंता की बात है। इस संबंध में सबसे पहले इंडियन पुलिस फ़ाउंडेशन ने ट्वीट करके ऐतराज़ जताया। फ़ाउंडेशन ने कहा कि यह बहुत शर्म की बात है कि मीडिया इस तरह नफ़रत फैलाकर देश में अस्थिरता पैदा करना चाहता है। फ़ाउंडेशन मे न्यूज़ चैनलों की संस्था ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड से इस संबंध में कार्रवाई को कहा। पत्रकार उमा शंकर सिंह और हमारे जैसे लोगों ने भी ल...

नफरतों का संगठित कारोबार...बल्लभगढ़ से श्रीनगर तक

Organized Hate Business from Ballabhgarh to Srinagar चिदंबरम ने बतौर होम मिनिस्टर कभी कहा था कि देश में भगवा आतंकवाद फैल रहा है।...मैंने उस वक्त उनके उस बयान की बड़ी निंदा की थी, क्योंकि वह सच नहीं था।...लेकिन अभी अपने देश में जिस तरह एक भीड़ किसी को घेर कर इसलिए मार देती है कि उसने दाढ़ी रखी है... सिर पर टोपी है...और वह लोग मीट खाते हैं...तो इस अपराध को आप किस श्रेणी में रखना चाहेंगे।... मेरे एक अभिन्न संघी मित्र घटना से आहत हैं और बार-बार लिख रहे हैं कि वह बल्लभगढ़ में ट्रेन में कुछ मुस्लिम युवकों पर हुए हमले और एक की हत्या से बहुत आहत हैं...लेकिन उनका आग्रह है कि इसे हिंदू आतंकवाद न कहा जाए....मैंने अपने मित्र से कहा कि न तो आपकी पोस्ट पर किसी ने ऐसा कमेंट किया और न ही मैंने आपसे ऐसा कहा...फिर आप परेशान क्यूं हैं....संघी मित्र का कहना है कि देर-सवेर यह मामला यही रूप लेगा और हिंदू आतंकवाद शब्द फिर से कहा जाने लगेगा। कम से कम उदार हिंदू जो हमारे काम से प्रभावित होकर हमारे साथ जुड़े हैं वे फिर छिटक जाएंगे... ....मैं नहीं जानता कि देश के बाकी मुसलमान बल्लभगढ़ की घटना को किस...

बिछने लगी है मुस्लिम वोटों के लिए बिसात

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मेरा यह लेख नवभारत टाइम्स में 25 फरवरी 2009 को संपादकीय पेज पर प्रथम लेख के रूप में प्रकाशित है। सामयिक होने के कारण इस ब्लॉग के पाठकों के लिए भी प्रस्तुत कर रहा हूं। इस पर आई टिप्पणियों को आप नवभारत टाइम्स की आनलाइन साइट के इस लिंक पर पढ़ सकते हैं - http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4184206.cms पार्टियां मुसलमानों से मुख्यधारा की पार्टियों को वोट देने की मांग तो करती हैं, लेकिन खुद उतनी तादाद में उन्हें टिकट नहीं देतीं, जितना उन्हें देना चाहिए लोकसभा चुनावों के नजदीक आते ही सियासत के खिलाड़ी अपने-अपने मोहरे लेकर तैयार हो गए हैं। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में वोटों के लिए बिसात बिछाई जा रही है। इसमें भी सबसे ज्यादा जोर मुस्लिम वोटों के लिए है। कहीं कोई पार्टी उलेमाओं का सम्मेलन बुला रही है तो कहीं से कोई उलेमा एक्सप्रेस को दिल्ली तक पहुंचाकर अपना मकसद हासिल कर रहा है। यूपी में 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जो लोकसभा की 35 और विधानसभा की 115 सीटों को प्रभावित करते हैं। यह एक विडंबना है कि सभी पार्टियां समय-समय पर मुसलमानों से मुख्यधारा की पार्टियों को वोट देने की मांग त...

पाकिस्तान पर हमले से कौन रोकता है ?

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मुंबई पर हुए सबसे बड़े हमले के बारे में ब्लॉग की दुनिया और मीडिया में बहुत कुछ इन 55 घंटों में लिखा गया। कुछ लोगों ने अखबारों में वह विज्ञापन भी देखा होगा जो मुंबई की इस घटना को भुनाने के लिए बीजेपी ने छपवाया है जिससे कुछ राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में उसका लाभ लिया जा सके। सांप्रदायिकता फैलाने वाले उस विज्ञापन की एनडीटीवी शुक्रवार को ही काफी लानत-मलामत कर चुका है। यहां हम उसकी चर्चा अब और नहीं करेंगे। मुंबई की घटना को लेकर लोगों का आक्रोश स्वाभाविक है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। देश के एक-एक आदमी की दुआएं सुरक्षा एजेंसियों के साथ थीं लेकिन सबसे दुखद यह रहा कि इसके बावजूद तमाम लोग अपना मानसिक संतुलन खो बैठे। कोई राजनीतिक दल या उसका नेता अगर मानसिक संतुलन ऐसे मुद्दों पर खोता है तो उसका इतना नोटिस नहीं लिया जाता लेकिन अगर पढ़ा-लिखा आम आदमी ब्लॉग्स पर उल्टी – सीधी टिप्पणी करेगा तो उसकी मानसिक स्थिति के बारे में सोचना तो पड़ेगा ही। मुंबई की घटना को लेकर इस ब्लॉग पर और अन्य ब्लॉगों पर की गई टिप्पणियां बताती हैं कि फिजा में कितना जहर घोला जा चुका है। इसी ब्लॉग पर नीचे वाली पोस्ट मे...

शुक्रिया मुंबई...और आप सभी के जज्बातों का

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मुंबई ने फिर साबित किया है कि वह जीवट का शहर है। उसे गिरकर संभलना आता है। उस पर जब-जब हमले हुए हैं, वह घायल हुई लेकिन फिर अपने पैरों पर खड़ी हो गई। 1993 में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के बाद मुंबई ने यह कर दिखाया और अब जब बुधवार देर रात को उस पर सबसे बड़ा हमला हुआ तब वह एक बार फिर पूरे हौसले के साथ खड़ी है। मुट्ठी भर आतंकवादी जिस नीयत से आए थे, उन्हें उसमें रत्तीभर कामयाबी नहीं मिली। उनका इरादा था कि बुधवार के इस हमले के बाद प्रतिक्रिया होगी और मुंबई में बड़े पैमाने पर खून खराबा शुरू हो जाएगा लेकिन उनके ख्वाब अधूरे रहे। मुंबई के लोग एकजुट नजर आए और उन्होंने पुलिस को अपना आपरेशन चलाने में पूरी मदद की। हालांकि मुंबई पुलिस ने इस कार्रवाई में अपने 14 अफसर खो दिए हैं लेकिन मुंबई को जिस तरह उन लोगों ने जान पर खेलकर बचाया है, वह काबिलेतारीफ है। इस घटना को महज एक आतंकवादी घटना बताकर भुला देना ठीक नहीं होगा। अब जरूरत आ पड़ी है कि सभी समुदायों के लोग इस पर गंभीरता से विचार करें और ऐसी साजिश रचने वालों को बेनकाब करें। ऐसे लोग किसी एक खास धर्म या जाति में नहीं हैं। इनकी जड़ें चारों तरफ फैली हुई हैं। मु...

स्सा..ले..नमक हराम...देशद्रोही...आतंकवादी

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दिन बुधवार, रात 10.35...क्रिकेट मैच खत्म हो चुका है...भारत फिर किसी देश को हरा चुका है...टीवी पर फ्लैश – मुंबई पर आतंकवादी हमला... ...लीजिए भारत फिर हार गया...अपने ही लोग हैं...अपनों को ही निशाना बना रहे हैं। एक जगह नहीं...कई – कई जगह गोलियां बरस रही हैं...ग्रेनेड फेंके जा रहे हैं...टीवी पर सब कुछ लाइव है...न्यूज चैनल वालों के लिए एक रिएलिटी शो से भी बड़ा आयोजन...ऐसा मौका फिर कब मिलेगा...पब्लिक से मदद मांगी जा रही है...आप हमें फोन पर हालात की जानकारी दीजिए...आप ही विडियो बना लें या फोटो खींच लें...हम आपके नाम से दिखाएंगे...पब्लिक में लाइव होने का क्रेज पैदा करने की कोशिश...सिटिजन जर्नलिस्ट के नाम पर ही सही...पब्लिक जितनी क्रेजी होती जाएगी...शो उतना ही कामयाब होगा और टीआरपी आसमान पर। अरे...अरे... ...विषय पर रहिए...भटक क्यों रहे हैं? चंदन को चिंता है...इस देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेला जा रहा है। इराक बनाने की साजिश। सुरेश को...पूरी इकनॉमी खतरे में नजर आ रही है। राकेश को यह सब मुसलमानों की साजिश लग रही है...स्साले पाकिस्तान से मिले हुए हैं...नमकहरामी कर रहे हैं...। अरविंद आहत है...नहीं बे....

मुशीरुल हसन की आवाज सुनो

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दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में 30 अक्टूबर को दीक्षांत समारोह था। प्रो. अनंतमूर्ति मुख्य अतिथि थे और दीक्षांत भाषण भी उन्ही का था। लेकिन जिस भाषण पर सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है वह है वहां के वीसी मुशीरुल हसन का। मुशीरुल हसन के भाषण में जामिया का दर्द बाहर निकल आया है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जामिया के छात्रों के लिए नौकरियां खत्म की जा रही हैं। उन्हें बाहर यह कहकर नौकरी देने से मना कर दिया जाता है कि जामिया यूनिवर्सिटी में तो आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है, इसलिए वहां के पढ़े छात्रों के लिए कोई नौकरी नहीं है। यहां पर प्राइवेट कंपनियों की कैब लाने से ड्राइवर यह कहकर मना कर देते हैं कि वहां तो आतंकवादी रहते हैं, इसलिए वे वहां नहीं जाएंगे। सचमुच, यह बहुत भयावह हालात हैं। किसी देश की मशहूर यूनिवर्सिटी का वीसी अगर यह बात पूरे होशहवास में कह रहा है तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब इसी जामिया नगर इलाके के बटला हाउस में एक विवादित एनकाउंटर हुआ, जिसमें दो युवक और एक पुलिस वाला मारे गए। इसके बाद वहां राजनीतिक पार्टियां अपने ढ...

Ek ziddi dhun: सड़ांध मार रहे हैं तालाब

मेरे ही साथी भाई, धीरेश सैनी ने अपने ब्लॉग पर एक गांधीवादी अनुपम मिश्र के सेक्युलरिज्म का भंडाफोड़ किया है। उस पर काफी तीखी प्रतिक्रियाएं भी उन्हें मिली हैं। क्यों न आप लोग भी उस लेख को पढ़ें। ब्लॉग का लिंक मैं यहां दे रहा हूं। Ek ziddi dhun: सड़ांध मार रहे हैं तालाब

कैसे कहें खुशियों वाली ईद

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इस बार की ईद (Eid) कुछ खास थी, इस मायने में नहीं कि इस बार किसी मुल्ला-मौलवी (Clergy) ने इसे खास ढंग से मनाने का कोई फतवा जारी किया था। खास बात जो तमाम लोगों ने महसूस की कि लोग ईद की मुबारकबाद देने के बाद यह पूछना नहीं भूलते थे कि खैरियत से गुजर गई न? पिछले साल की ईद में यह बात नहीं थी। इस बार मस्जिद में ईद की नमाज पढ़ने गए लोग इस जल्दी में थे कि किस तरह जल्द से जल्द घर पहुंच जाएं, दिल्ली की जामा मस्जिद (Jama Masjid) में पहले के मुकाबले ज्यादा भीड़ नहीं थी। जामा मस्जिद, चांदनी चौक, दरियागंज इलाके के व्यापारियों का कहना था कि ईद से तीन दिन पहले वे जो Business करते थे, वह इस बार नहीं हुआ। यानी बिजनेस के नजरिए से नुकसान सिर्फ मुसलमानों का ही नहीं बल्कि हिंदू व्यापारियों का भी हुआ है। साजिश रचने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि एसी घटनाएं किसी एक समुदाय की खुशी या नाखुशी का बायस नहीं बनतीं बल्कि उसकी मार चौतरफा होती है और उस आग में सभी को जलना पड़ता है। कुछ नतीजे जरा देर से आते हैं। बहरहाल, दोपहर होते-होते तमाम गैर मुस्लिम मित्र घर पर ईद की मुबारकबाद देने आए। ये तमाम मित्र जो विचारधारा से कांग...