नफरतों का संगठित कारोबार...बल्लभगढ़ से श्रीनगर तक

Organized Hate Business from Ballabhgarh to Srinagar

चिदंबरम ने बतौर होम मिनिस्टर कभी कहा था कि देश में भगवा आतंकवाद फैल रहा है।...मैंने उस वक्त उनके उस बयान की बड़ी निंदा की थी, क्योंकि वह सच नहीं था।...लेकिन अभी अपने देश में जिस तरह एक भीड़ किसी को घेर कर इसलिए मार देती है कि उसने दाढ़ी रखी है... सिर पर टोपी है...और वह लोग मीट खाते हैं...तो इस अपराध को आप किस श्रेणी में रखना चाहेंगे।...
मेरे एक अभिन्न संघी मित्र घटना से आहत हैं और बार-बार लिख रहे हैं कि वह बल्लभगढ़ में ट्रेन में कुछ मुस्लिम युवकों पर हुए हमले और एक की हत्या से बहुत आहत हैं...लेकिन उनका आग्रह है कि इसे हिंदू आतंकवाद न कहा जाए....मैंने अपने मित्र से कहा कि न तो आपकी पोस्ट पर किसी ने ऐसा कमेंट किया और न ही मैंने आपसे ऐसा कहा...फिर आप परेशान क्यूं हैं....संघी मित्र का कहना है कि देर-सवेर यह मामला यही रूप लेगा और हिंदू आतंकवाद शब्द फिर से कहा जाने लगेगा। कम से कम उदार हिंदू जो हमारे काम से प्रभावित होकर हमारे साथ जुड़े हैं वे फिर छिटक जाएंगे...
....मैं नहीं जानता कि देश के बाकी मुसलमान बल्लभगढ़ की घटना को किस रूप में लेंगे और उनकी प्रतिक्रिया किस रूप में सामने आएगी लेकिन इतना जरूर है कि इस घटना को लेकर अगर उदार हिंदू चुप रह गए तो इस देश में नफरत फैलाने वाली ताकतें अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगी।...यह साफ तौर पर सामने आ गया है कि केंद्र में एनडीए की सरकार आने के बाद ऐसे तत्वों के हौसले बुलंद हो गए हैं।...बल्लभगढ़ जैसी घटनाएं भारत नामक देश की बुनियाद को हिला देंगी।
बल्लभगढ़ की घटना हर उस मानवता प्रेमी शख्स को उद्वेलित कर देगी जो इंसाफ पसंद है।
आप ट्रेन में सफर करते होंगे। आप का आमना-सामना ऐसे लोगों से जरूर हुआ होगा, जिनकी भाषा, मज़हब, संस्कृति अलग-अलग होती है...क्या इस आधार पर कुछ लोगों का समूह मिलकर उनकी हत्या कर देगा।....क्या मुसलमानों का कोई समूह एक ऐसे शख्स की हत्या कर दे जिसने माथे पर चंदन लगा रखा हो और जेनेऊ पहन रखा हो...क्या ऐसे ही भारत की कल्पना हमारे पूर्वजों या स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी। ...दरअसल, दूसरे धर्म से नफरत, दूसरी संस्कृति से नफरत, दूसरी भाषा से नफरत का जो संगठित कारोबार इस देश में चलाया जा रहा है, वह अब खतरनाक मोड़ पर आ पहुंचा है। अगर एक गिरोह सरकारी संरक्षण में पलेगा, बढ़ेगा तो आप दूसरे गिरोहों को गलत दिशा में मुड़ने से कहां तक और कब तक रोक पाएंगे। ...याद रखिए कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक कोई भी राजनीतिक दल हो, धर्म से नफरत के संगठित कारोबार का फायदा उन्हें हुआ और कीमत जनता को चुकानी पड़ी। यानी अंधे होकर आज या कल हम जिन राजनीतिक नेता या संगठनों के पीछे खड़े हैं या खड़े थे...उसका फायदा किसे मिल रहा है...क्या यह आपको अगर नज़र नहीं आता...
जिस मुस्लिम लीग पार्टी के नेताओं ने या असददुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी मुसलमानों के नाम पर बनाई, वो खुद संसद में जा पहुंचे और मजे से माल-पानी उड़ा रहे हैं। आरएसएस ने अपना जो ताना-बाना बुना है, उसका भी अंति लक्ष्य सत्ता की प्राप्ति ही था, जिसके जरिए वो अपने मंसूबे अंजाम दे रहे हैं। संघ के चंद नेताओं को ही सत्ता सुख मिल रहा है, बाकी स्वयंसेवक बेचारे पहाड़ और रेगिस्तान की धूल फांककर हिंदू राष्ट्र के निर्माण में लगे हैं।...
ऐसे समय में जब दुनिया सिकुड़ रही है, तकनीक इंसान को एक दूसरे के करीब ला रही है तब मजहब के नाम पर राष्ट्र निर्माण कहां तक उचित है।...आप पुष्पक विमान उड़ाएं या हाथी के सूंड की सर्जरी की कल्पना करें या गाय के गोबर से बिजली पैदा करें...लेकिन सोचिए कि विश्व मानचित्र पर आप कहां खड़े हैं....इन नेताओं और बड़े-बड़े स्वयंसेवकों के बच्चे विदेशी की यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं और करीम व मातादीन के बच्चों को वहीं मदरसा या संस्कारी स्कूल में कट्टर राष्ट्रवाद का जहर भरा जा रहा है।
बल्लभगढ़ की घटना क्या थी...चार मुस्लिम लड़के दिल्ली से ईद के सामान की खरीदारी करके लोकल ईएमयू ट्रेन से घर वापस लौट रहे थे। डेली पैसेंजर ओखला रेलवे स्टेशन से चढ़े, उन्होंने पहले जबरन सीट मांगी। उन चारों ने एक बुजुर्ग को बैठा भी लिया। लेकिन कुछ देर बाद ही मुल्ले कहकर और बीफ खाने वाले कहकर उन चारों को छेड़ा जाने लगा। उन मुस्लिम युवकों ने टोपी पहन रखी थी और दाढ़ी भी थी, उनके मुसलमान होने में किसी को संदेह नहीं था। इतने में छेड़खानी करने वालों में से एक ने थप्पड़ मारा। उन्होंने विरोध किया। इसके बाद 15-20 लोगों का समूह उन पर टूट पड़ा। फिर पूरा डिब्बा उन पर टूट पड़ा...लोग चाकू मारते जा रहे थे और बीफ खाने वाले मुल्ले कह रहे थे।...उस भीड़ में एक भी ऐसा शख्स नहीं था जो बाकी को रोकने की कोशिश करता या समझाता।
...जरा सोचिए, उन निहत्थे मुसलमानों पर जो भीड़ टूटी, क्या उसे एक संगठित गिरोह द्वारा बहकाया नहीं गया था कि अपने मनमाफिक सरकार है, जो चाहे करो। ....राष्ट्रवाद में हिंसा को जायज ठहराने वाले संगठित गिरोह दरअसल ऐसे लोगों का इस्तेमाल अपने मकसद को पूरा करने के लिए कर रहे हैं। जिनका इस्तेमाल होगा, उसका प्रतिफल हिंसा करने वालों को नहीं मिलेगा, बल्कि उनमें से कुछ पर मुकदमा चलेगा और कुछ जेल भी जाएंगे।....वो तारीख भुगतेंगे और संगठित गिरोह के लोग मलाई काट रहे होंगे।
मीडिया की भूमिका.
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राष्ट्रवाद के लिए हिंसा को रोकने में देश का प्रिंट व इलेक्टट्रॉनिक मीडिया बड़ी भूमिका निभा सकता है। लेकिन अफसोस कि अंध राष्ट्रवादियों के गिरोह ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए सबसे पहला काम मीडिया पर कब्जा करने का किया। बल्लभगढ़ की घटना को हिंदी अखबारों ने या तो दबा दिया या तोड़ मरोड़कर छापा।...अंग्रेजी अखबारों ने थोड़ी हिम्मत दिखाई है लेकिन तोड़ मरोड़ वहां भी है।...टीवी पत्रकारिता उसी चीखने चिल्लाने की जगह खड़ी है और बल्लभगढ़ की घटना भी टीआरपी बढ़ाने का खेल बन गई है।...आपसे यह नहीं कहा जा रहा कि आप मिशनरी पत्रकारिता करो लेकिन यह उम्मीद की जाती है कि आप सच को बयान करेंगे या दिखाएंगे लेकिन पुलिस जो कह रही है, वही सच मान लिया गया है।
सरकार से क्या उम्मीद करें
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यह लेख लिखे जाने तक न तो हरियाणा सरकार ने और न ही केंद्र सरकार ने ट्रेन के अंदर हुए इस सांप्रदायिक मर्डर की निंदा की। यहां तक की कांग्रेस ने भी अपनी कोई जांच समिति बल्लभगढ़ नहीं भेजी। सीपीएम नेता वृंदा करात और सीपीएम के सांसद मोहम्मद सलीम जरूर बल्लभगढ़ पहुंचे। सीपीएम का जो काम है वह तो करेगी ही लेकिन बाकी राजनीतिक दलों को क्या हुआ...क्या बल्लभगढ़ की घटना निंदनीय भी नहीं है।....मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर क्या एक समुदाय विशेष के मुख्यमंत्री हैं...ये सवाल हैं जो मुख्य मीडिया में नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर पूछे जा रहे हैं, जवाब कोई नहीं देता...

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