एक घोर सांप्रदायिक शख्स का राष्ट्रपति बनना...
देश की सत्तारूढ़ पार्टी भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी अन्य दलों ने बिहार के गवर्नर रामनाथ #कोविंद को #राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में चुना है। भारतीय इतिहास में इतने बड़े पद पर कभी इतने ज्यादा विवादित व्यक्तित्व के मालिक को इस पद का प्रत्याशी नहीं बनाया गया। कोविंद अभी चुने नहीं गए हैं लेकिन उनके विवादित और भ्रष्ट आचरण को लेकर तमाम आरोप सामने आ रहे हैं। लेकिन हम यहां कुछ ठोस मुद्दे पर बात करेंगे।
यह जो रामनाथ कोविंद है न...यह घोर #सांप्रदायिक हैं....कैसे....
2010 में इस कोविंद ने कहा था कि ईसाई और मुसलमान इस देश के लिए एलियन हैं। "Islam and Christianity are alien to the nation." यानी मुसलमान और ईसाई भारत में आए हुए दूसरे ग्रह के प्राणी हैं।
इस शख्स ने यह बात क्यों कही थी...
2010 में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट आई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सरकारी नौकरियों में 15 फीसदी रिजर्वेशन दिया जाए। कोविंद तब बीजेपी के प्रवक्ता थे, उन्होंने मिश्रा आयोग की सिफारिशों का विरोध किया। उसी समय उन्होंने मुसलमानों और ईसाईयों के लिए यह बात कही थी।
मतलब कि भारत की आजादी की लड़ाई में जिस पार्टी का कभी कोई योगदान नहीं रहा, उस पार्टी के शख्स ने भारत की आजादी की लड़ाई में मुसलमानों और ईसाईयों की भूमिका को एक झटके में नकार दिया।...उसके आका जिस लालकिले की प्राचीर से हर 15 अगस्त को झंडा फहराते हैं, उस लालकिले को बनवाने वालों की भूमिका को भुला दिया...उसी लालकिले से जहां से बहादुर शाह जफर ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग का ऐलान किया था...
भारत में #प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दो पद ऐसे हैं जिन पर बैठे शख्स से उम्मीद रहती है कि वे धर्म, जाति, भाईभतीजावाद, भ्रष्टाचार से ऊपर उठकर देश की सेवा करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र #मोदी गुजरात की लंबी सेवा के बाद देश की सेवा कर रहे हैं और उनका अतीत और वर्तमान तमाम विवादों के दायरे में है। अब भाजपा या यूं कहें कि मोदी राष्ट्रपति पद पर भी ऐसे शख्स को बैठाने जा रहे हैं जिसकी घुट्टी में सांप्रदायिक सोच शामिल है।
जाहिर है कि भाजपा कोविंद को राष्ट्रपति भवन तक ले जाने में भी सफल रहेगी...लेकिन क्या ऐसे सांप्रदायिक व्यक्तित्व के मालिक का इस पद पर बैठना तर्कसंगत माना जाएगा।
यह भूल जाइए कि रामनाथ कोविंद के चयन का आधार दलित होना है। इनका चयन का आधार उन मासूम या नाजुक पलों के लिए किया गया है जहां किसी राष्ट्रपति की भूमिका निर्णायक होती है, जैसे प्रणब मुखर्जी करते रहे हैं...जैसा कभी जैल सिंह ने किया था...जैसा कभी के. आर. नारायणन (Kocheril Raman Narayanan) ने किया था। बता दें कि नारायणन भी दलित थे। सूची लंबी है, एपीजे अब्दुल कलाम, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. राधाकृष्णन की तो बात ही अलग थी।...बीजेपी ने रामनाथ का चयन करके राष्ट्रपति पद की गरिमा को बहुत बड़ा झटका दिया है। ...जिस तरह से बाकी संस्थान रसातल में जाते दिख रहे हैं...यह उसी की अगली कड़ी है। किसी भी पार्टी का अधिकार है कि वह इस पद के लिए अपना प्रत्याशी घोषित करे लेकिन कम से कम गरिमा का ख्याल तो किया ही जाना चाहिए।
भ्रष्ट बंगारू का समर्थन...
फर्स्ट पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक #बीजेपी के कभी #दलित चेहरा रहे बतौर पार्टी प्रेसीडेंट बंगारू को जब एक लाख की रिश्वत लेते पकड़ा गया तो अदालत में इन्हीं कोविंद महाराज ने हलफनामा दिया था कि बंगारू को वह 20-25 साल से जानते हैं और वह रिश्वतखोर नहीं हैं। आप लोगों को शायद याद होगा कि बंगारू रिश्वत लेते हुए कैमरे में कैद हुए थे, उनका स्टिंग किया गया था। बंगारू चूंकि दलित थे, इसलिए कोविंद ने दलित होने की वजह से बंगारू की मदद के लिए वह हलफनामा दिया था। लेकिन जब एक शख्स को कैमरे में रिश्वत लेते हुए कैद किया जा चुका हो, ऐसे में सिर्फ जाति के आधार पर किसी का समर्थन करना क्या नैतिकता के दायरे में आता है...
बहरहाल, देश की भाग्यविधाता अब भारत की जनता नहीं है....वह भाग्यविधाता अब प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और भारत के चीफ जस्टिस हैं।...जिनके फैसले जनता के सामने हैं।
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आजकल ईमानदारी का वीराना देश में !