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इन साजिशों को समझने का वक्त

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नीचे वाले मेरे लेख पर आप सभी लोगों की टिप्पणियों के लिए पहले तो धन्यवाद स्वीकार करें। देश में जो माहौल बन रहा है, उनके मद्देनजर आप सभी की टिप्पणियां सटीक हैं। मेरे इस लेख का मकसद कतई या नहीं है कि अगर पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत युद्ध छेड़ता है तो उसका विरोध किया जाए। महज विरोध के लिए विरोध करना सही नहीं है। सत्ता प्रमुख जो भी फैसला लेंगे, देश की जनता भला उससे अलग हटकर क्यों चलेगी। कुल मुद्दा यह है कि युद्ध से पहले जिस तरह की रणनीति किसी देश को अपनानी चाहिए, क्या मनमोहन सिंह की सरकार अपना रही है। मेरा अपना नजरिया यह है कि मौजूदा सरकार की रणनीति बिल्कुल सही है। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पर भारत पूरी तरह बेनकाब कर चुका है। करगिल युद्ध के समय भारत से यही गलती हुई थी कि वह पाकिस्तान के खिलाफ माहौल नहीं बना सका था। उस समय पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ सत्ता हथियाने की साजिश रच रहे थे और उन्होंने सत्ता हथियाने के लिए पहले करगिल की चोटियों पर घुसपैठिए भेजकर कब्जा कराया और फिर युद्ध छेड़ दिया। फिर अचानक पाकिस्तान की हुकूमत पर कब्जा कर लिया। उन दिनों को याद करें तो इस साजिश में ...

दो चेहरे - मनमोहन सिंह और बाल ठाकरे

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भारत के दो चेहरे इस समय दुनिया में देखे जा रहे हैं। एक तो चेहरा मनमोहन सिंह का है और दूसरा बाल ठाकरे का। मनमोहन सिंह भारत में आतंकवाद फैलाने वाले पाकिस्तान से युद्ध नहीं चाहते तो बाल ठाकरे का कहना है कि अब हिंदू समुदाय भी आतंकवादी पैदा करें। देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो चाहते हैं कि पाकिस्तान से भारत निर्णायक युद्ध करे। इन्हीं में से •कुछ लोग ऐसे भी हैं जो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कायर बताने तक • से नहीं चूक रहे। यानी अगर मनमोहन सिंह पाकिस्तान को ललकार कर युद्ध छेड़ दें तो वे सबसे बहादुर प्रधानमंत्री शब्द से नवाजे जाएंगे। यानी किसी प्रधानमंत्री की बहादुरी अब उसके युद्ध छेड़ने से आंकी जा रही है। उसने बेशक अर्थशास्त्र की मदद से भारत का चेहरा बदल दिया हो लेकिन अगर वह पाकिस्तान से युद्ध नहीं लड़ सकता तो सारी पढ़ाई-लिखाई बेकार। उस इंसान की शालीन भाषा उसे कहीं का नहीं छोड़ रही है। हालांकि हाल के दिनों में इस मुद्दे पर काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। लेकिन यह बहस खत्म नहीं हुई है। इसी बहाने राजनीतिक वाकयुद्ध भी शुरू हो गया है और तमाम पार्टियां ...