इन साजिशों को समझने का वक्त
नीचे वाले मेरे लेख पर आप सभी लोगों की टिप्पणियों के लिए पहले तो धन्यवाद स्वीकार करें। देश में जो माहौल बन रहा है, उनके मद्देनजर आप सभी की टिप्पणियां सटीक हैं। मेरे इस लेख का मकसद कतई या नहीं है कि अगर पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत युद्ध छेड़ता है तो उसका विरोध किया जाए। महज विरोध के लिए विरोध करना सही नहीं है। सत्ता प्रमुख जो भी फैसला लेंगे, देश की जनता भला उससे अलग हटकर क्यों चलेगी। कुल मुद्दा यह है कि युद्ध से पहले जिस तरह की रणनीति किसी देश को अपनानी चाहिए, क्या मनमोहन सिंह की सरकार अपना रही है। मेरा अपना नजरिया यह है कि मौजूदा सरकार की रणनीति बिल्कुल सही है। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पर भारत पूरी तरह बेनकाब कर चुका है।
करगिल युद्ध के समय भारत से यही गलती हुई थी कि वह पाकिस्तान के खिलाफ माहौल नहीं बना सका था। उस समय पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ सत्ता हथियाने की साजिश रच रहे थे और उन्होंने सत्ता हथियाने के लिए पहले करगिल की चोटियों पर घुसपैठिए भेजकर कब्जा कराया और फिर युद्ध छेड़ दिया। फिर अचानक पाकिस्तान की हुकूमत पर कब्जा कर लिया। उन दिनों को याद करें तो इस साजिश में अमेरिका भी अप्रत्यक्ष रूप से शामिल था। क्योंकि इस युद्ध से सिर्फ चंद दिन पहले मुशर्रफ ने वॉशिंगटन की यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान अमेरिका ने अपने हथियार बेचने का सबसे महंगा सौदा किया था। मुशर्रफ की ताजपोशी में भी अमेरिका ने किसी तरह का अड़ंगा नहीं लगाया था। उन दिनों नवाज शरीफ भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे थे। लेकिन उनके अपने देश में सेना का सबसे बड़ा अधिकारी किस करतूत में जुटा हुआ है, इससे बेखबर थे।
बहरहाल, अब पाकिस्तान की लानत-मलामत चारों तरफ से हो रही है। यही भारत की सही कूटनीति है। लेकिन ऐसे माहौल में बाल ठाकरे जैसों का बयान बहुत गैरजिम्मेदाराना है। मुंबई पर हमले के समय जो लोग घरों में दुम दबाकर बैठे रहे और अब भारतीय प्रधानमंत्री को कायर बताना किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उम्र के जिस पड़ाव पर ठाकरे हैं, उनके लिए इससे सख्त भाषा मेरे पास नहीं है। अभी वक्त है भारत सरकार के सभी सही कदमों का समर्थन करने का। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। ऐसे कई देश हैं जो युद्ध लड़लड़कर बूढ़े हो गए लेकिन समस्या को हल नहीं कर पाए। शांति युद्ध से बड़ी चीज है। अगर हम शांतिप्रिय हैं तो यह हमारे कायरता की निशानी नहीं है।
मुंबई हमला एक साजिश थी। लेकिन यह साजिश किसलिए की गई, इसका असल मकसद अब भी सामने नहीं आया है। हमारे जैसे पत्रकार तो बस यही अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस तरह पाकिस्तान के सीमांत प्रांत में पाकिस्तानी सेना और अमेरिकी फौजें तालिबानी आतंकवादियों पर हमले कर रही हैं, शायद वहां से पाकिस्तानी सेना का ध्यान हटाने के लिए यह हमला किया गया है। जिससे युद्ध के हालात बनें और पाकिस्तानी सेना वहां से हटकर भारतीय सीमा पर पहुंच जाए। ऐसे में वहां तालिबान और अल-कायदा का काम आसान हो जाएगा। अगर वाकई ऐसा है तो यह बहुत बड़ी साजिश है। भारतीय खुफिया ऐजेंसियां देर-सवेर इसकी तह तक पहुंचेंगी ही। वैसे आज शनिवार के अखबार (नवभारत टाइम्स दिल्ली) में इस आशय की खबर भी आई है कि तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। लेकिन यह बात कितनी सही है, इसका पता लगाना होगा। अगर युद्ध होता है तो घोर मंदी का शिकार अमेरिका फायदे में रहेगा क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों ही वहां की कंपनियों के हथियार खरीदेंगे और हम लोग वॉर टैक्स चुकाएंगे। तैयार रहिए, कुछ भी हो सकता है।
करगिल युद्ध के समय भारत से यही गलती हुई थी कि वह पाकिस्तान के खिलाफ माहौल नहीं बना सका था। उस समय पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ सत्ता हथियाने की साजिश रच रहे थे और उन्होंने सत्ता हथियाने के लिए पहले करगिल की चोटियों पर घुसपैठिए भेजकर कब्जा कराया और फिर युद्ध छेड़ दिया। फिर अचानक पाकिस्तान की हुकूमत पर कब्जा कर लिया। उन दिनों को याद करें तो इस साजिश में अमेरिका भी अप्रत्यक्ष रूप से शामिल था। क्योंकि इस युद्ध से सिर्फ चंद दिन पहले मुशर्रफ ने वॉशिंगटन की यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान अमेरिका ने अपने हथियार बेचने का सबसे महंगा सौदा किया था। मुशर्रफ की ताजपोशी में भी अमेरिका ने किसी तरह का अड़ंगा नहीं लगाया था। उन दिनों नवाज शरीफ भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे थे। लेकिन उनके अपने देश में सेना का सबसे बड़ा अधिकारी किस करतूत में जुटा हुआ है, इससे बेखबर थे।
बहरहाल, अब पाकिस्तान की लानत-मलामत चारों तरफ से हो रही है। यही भारत की सही कूटनीति है। लेकिन ऐसे माहौल में बाल ठाकरे जैसों का बयान बहुत गैरजिम्मेदाराना है। मुंबई पर हमले के समय जो लोग घरों में दुम दबाकर बैठे रहे और अब भारतीय प्रधानमंत्री को कायर बताना किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उम्र के जिस पड़ाव पर ठाकरे हैं, उनके लिए इससे सख्त भाषा मेरे पास नहीं है। अभी वक्त है भारत सरकार के सभी सही कदमों का समर्थन करने का। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। ऐसे कई देश हैं जो युद्ध लड़लड़कर बूढ़े हो गए लेकिन समस्या को हल नहीं कर पाए। शांति युद्ध से बड़ी चीज है। अगर हम शांतिप्रिय हैं तो यह हमारे कायरता की निशानी नहीं है।
मुंबई हमला एक साजिश थी। लेकिन यह साजिश किसलिए की गई, इसका असल मकसद अब भी सामने नहीं आया है। हमारे जैसे पत्रकार तो बस यही अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस तरह पाकिस्तान के सीमांत प्रांत में पाकिस्तानी सेना और अमेरिकी फौजें तालिबानी आतंकवादियों पर हमले कर रही हैं, शायद वहां से पाकिस्तानी सेना का ध्यान हटाने के लिए यह हमला किया गया है। जिससे युद्ध के हालात बनें और पाकिस्तानी सेना वहां से हटकर भारतीय सीमा पर पहुंच जाए। ऐसे में वहां तालिबान और अल-कायदा का काम आसान हो जाएगा। अगर वाकई ऐसा है तो यह बहुत बड़ी साजिश है। भारतीय खुफिया ऐजेंसियां देर-सवेर इसकी तह तक पहुंचेंगी ही। वैसे आज शनिवार के अखबार (नवभारत टाइम्स दिल्ली) में इस आशय की खबर भी आई है कि तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। लेकिन यह बात कितनी सही है, इसका पता लगाना होगा। अगर युद्ध होता है तो घोर मंदी का शिकार अमेरिका फायदे में रहेगा क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों ही वहां की कंपनियों के हथियार खरीदेंगे और हम लोग वॉर टैक्स चुकाएंगे। तैयार रहिए, कुछ भी हो सकता है।
टिप्पणियाँ
कारगिल में पूरा विश्व जनमत भारत के साथ हो गया था |
और लगता है अमेरिका से आपको ज्यादा ही खुन्नस है |
जनाब कारगिल के बाद ही अमेरिकी प्राथमिकताएं बदली और क्लिंटन की भारत यात्रा हुई |
भारत विश्व का दूसरा सबे बड़ा बाज़ार बना |
लगता है बीजेपी को गाली देने के लिए आप कुछ भी अनर्गल प्रलाप करते जा रहे हैं |
और बाल ठाकरे से तो जन्मजात दुश्मनी मालूम देती है |
धन्यवाद
और अमेरिका कम से कम लोकतंत्र तो है न की दारुल इस्लामी मुल्कों के जैसा सारी दुनिया के आतंकियों को पोषने वाला |
जेहाद की अमेरिकी नासमझी ने ही उसे इस बवंडर ( कथित जेहादी आतंकवाद ) में फंसा दिया है , लेकिन हमें तो इस कैंसर का जड़ से नाश करना ही पड़ेगा |
क्यूँकि उत्तर दिशा से,
अमरीका का दस्ता
अफघान पाक सीमा तक पहुँचने के इँतेजामात शुरु हो गये हैँ -
अमरीका ने पाक को आयुध और खूब धन भी तो दे रखा है -
Did you forget American aid & arms sales to Pak ?
भारत से मित्रता कर और व्यापार बढाने से पाकिस्तान को फायदा है
ये बात पाक आज तक समझा नहीँ -
Which is very very sad :-(
शायद पाकिस्तान अपने देश के कुछ लोगोँ की सदा लडने की आदत से , अपना ही बहुत बडा नुकसान करेगा !
अफघानिस्तान के बहादुर मुजाहीद्दीन तो सदा ही लडते रहे हैँ -
They have always been warriors --
पहले ब्रिटीश आये
फिर रशियन
और अमरीकी
और अब पाक सेना से
आगे फिर अमरीकी दस्ता आने ही वाला है -
देखते रहीये -
बस इतना ध्यान रहे कि युध्ध से जनता को हमेशा जिल्लत और बर्बादी उठानी पडती है -
The common people suffer --
आप जैसे पत्रकारोँ का फर्ज़ है कि आम जनता को
युध्ध की भयानकता
और उसकी बुराई से
रुबरु करवायेँ -
दोष देना आसान है -
इन्सान ही इन्सान से
दुशमनी निभाता है -
जब के,
दोस्ती से
अमनो चैन और सुकुन फैलता है -
फिर किसे चुनना जरुरी है ?
आप का क्या ख्याल है ?
- लावण्या
मैंने भी कुरान का व्यापक अद्ध्ययन किया है |
कुरान के जेहाद और कथित जेहादी मुल्लों का जेहाद बिल्कुल अलग है , कुरान के जेहाद से तो सह - अस्तित्व सम्भव है , किंतु इन कठमुल्लों के जेहाद ने दुनिया को नर्क बना दिया है |
अमेरिका से यही अन्तर समझने में भूल तो हुई है किंतु इसमे इस्लाम के झंडाबरदार मुल्कों जैसे सउदी अरब का कम दोष नही जो की पेट्रो डॉलर के लिए अमेरिकी तलवे तो चाट सकते हैं किंतु इस्लाम की सही समझ दुनिया में नहीं फैला सकते |
ये अरब लोग पैगम्बर के वंशज कहलाने के लायक नहीं हैं | इसीलिए आप का अमेरिका पर दोषारोपण करना मुझे खलता है |