बाजीगरों के खेल से होशियार रहिए
संसद में तमाम बाजीगर फिर एकत्र हो गए हैं और हमारे-आपके जेब से टैक्स का जो पैसा जाता है, वह इन्हें भत्ते के रूप में मिलेगा। जाहिर है एक बार फिर इन सबका मुद्दा आतंकवाद ही होगा। मीडिया के हमले से बौखलाए इन बाजीगरों में इस बार गजब की एकजुटता दिखाई दे रही है। चाहे वह आतंकवाद को काबू करने के लिए किसी केंद्रीय जांच एजेंसी बनाने का मामला हो या फिर एक सुर में किसी को शाबासी देने की बात हो। प्रधानमंत्री ने मुंबई पर हमले के लिए देश से माफी मांग ली है और विपक्ष के नेता व प्रधानमंत्री बनने के हसीन सपने में खोए लालकृष्ण आडवाणी ने सरकार द्वारा इस मुद्दे पर अब तक की गई कोशिशों पर संतोष का भाव भी लगे हाथ जता दिया है। आडवाणी ने केंद्रीय जांच एजेंसी बनाने पर भी सहमति जता दी है। आडवाणी यह कहना भी नहीं भूले कि राजस्थान और दिल्ली में बीजेपी की हार का मतलब यह नहीं है कि हमारे आतंकवाद के मुद्दे को जनता का समर्थन हासिल नहीं है।
तमाम बाजीगर नेता जनता का संदेश बहुत साफ समझ चुके हैं और उनकी इस एकजुटता का सबब जनता का संदेश ही है। यह हकीकत है कि मुंबई का हमला देश को एक कर गया है। इतनी उम्मीद बीजेपी और मुस्लिम कट्टरपंथियों को भी नहीं थी। कश्मीर के बारे में मैं बहुत ज्यादा नहीं बता पाउंगा लेकिन शेष भारत से जो सूचनाएं मिलीं, वह यह थीं कि मुंबई हमले के मद्देनजर मुसलमानों ने इस बार बकरीद का त्यौहार उस उत्साह से नहीं मनाया जिसके लिए इस त्यौहार को जाना जाता है। कुर्बानी का गोश्त खाने से परहेज न करने वाले मेरे तमाम हिंदू दोस्त मेरे फोन का इंतजार करते रहे कि शायद बुलावा आ जाए। उनमें से कुछ से रहा नहीं गया तो शाम होते-होते उन्होंने खुद ही पूछ लिया कि इस बार क्या आप भी मुसलमान हो गए हैं? मैंने इस सवाल का मतलब पूछा तो उनका कहना था कि इस बार तो हद ही हो गई है, कोई पूछ ही नहीं रहा। काफी सदमे में हैं भाई लोग। कुछ ने काली पट्टियां भी बांध रखी हैं। यह हाल अकेले किसी एक शहर या कह लीजिए दिल्ली का नहीं था। लखनऊ, फैजाबाद, वाराणसी, बरेली, मेरठ, पटना, हैदराबाद, बंगलौर, मद्रास सभी जगह यही हाल था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की खबरों ने भी इसकी पुष्टि की।
नेता जिसने चालाकी में पहले ही पीएचडी कर रखी है, उसे पब्लिक का मूड भांपने में देर नहीं लगी। इन बाजीगरों की इतनी बड़ी एकजुटता तब इस तरह नजर नहीं आई थी जब दिल्ली, जयपुर और देश के अन्य हिस्सों में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे और जिसमें काफी बेगुनाह लोग मारे गए थे। आडवाणी ने संसद में दिए गए अपने भाषण में एक वाक्य का इस्तेमाल किया है कि पाकिस्तान आतंक का युद्ध छेड़े हुए है। इससे पहले हुए सीरियल ब्लास्ट में इस तरह के शब्दों का प्रयोग नदारद था। तब सिर्फ एक समुदाय विशेष निशाना था। लेकिन इस बार शब्दावली बदली हुई है। पाकिस्तान निशाना है और भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान से क्या लेना-देना, इसलिए बड़ी होशियारी से रुख उधर मुड़ गया है। देखा जाए तो देश के एक प्रमुख राजनीतिक दल की ओर से यह सुखद संकेत है। लेकिन सवाल यही है कि क्या उनकी नीयत पर शक किया जाए। पाकिस्तान बनने से लेकर आज तक उस देश ने हमेशा भारत को तोड़ने की नाकाम कोशिश की है। बांग्लादेश बनने का भी बदला लेना चाहा है लेकिन बीजेपी या उससे पहले भारतीय जनसंघ की भाषा यहां के समुदाय विशेष के लिए जिस तरह की रही है, वह किसी से छिपी नहीं है। चुनाव के आसपास तमाम गड़े मुर्दे उखाड़कर इस समुदाय विशेष को विलेन बनाकर पेश कर दिया जाता है इसलिए बीजेपी का मौजूदा सुखद संकेत कितने दिन सुखद रहेगा, कहना जरा मुश्किल है। लेकिन यह पार्टी अगर इसी बहाने खुद को सुधारना चाहती है तो स्वागत है।
मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जिस तरह खुलासे हो रहे हैं, उससे तो यही लग रहा है कि आतंकवादियों के हौसले इस कदर बढ़ाने के लिए न सिर्फ मौजूदा यूपीए सरकार बल्कि पिछली बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बराबर की जिम्मेदार है। इस हमले का मास्टरमाइंड लश्कर-ए-तैबा के चीफ मौलाना मसूद अजहर को बताया गया है। यह बात अब पूरी तरह साबित हो चुकी है कि अजहर को छुड़ाने के लिए भारतीय विमान का अपहरण कर कंधार (अफगानिस्तान) ले जाया गया। तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह और तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी उस समझौते के खलनायक हैं जो अजहर को छोड़ने के लिए आतंकवादियों ने भारतीय हुक्मरानों से किए थे।
अब देखिए तब तक ओसामा बिन लादेन नामक तथाकथित जेहादी उस इलाके में नहीं पहुंचा था लेकिन हकीकत यही है कि अल कायदा उसी समय से अस्तित्व में आ चुका था और सारे तालिबानी + पाकिस्तानी आतंकवादी + कुछ अन्य छोटे गुरिल्ला संगठनों की मदद से अपने आप को मजबूत करने में जुटे हुए थे। लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसी तो दूर अमेरिका की सबसे बड़ी जासूस एजेंसी सीआईए और एफबीआई को इसकी भनक तक नहीं लगी। आज अमेरिकी फौज पाकिस्तान और अफगानिस्तान की घाटियों में अल कायदा के आतंकवादियों को तलाशती फिर रही है। लेकिन न लादेन मिला और न अल जवाहिरी।
...लेकिन अमेरिका, भारत और पाकिस्तान के लोग एक ऐसे अघोषित घृणा अभियान में शामिल हो गए जिसका आज तक कोई आदि-अंत नहीं है। इस खेल में शामिल आईएसआई के अफसर जरूर इन तीनों देशों के उन नेताओं और अफसरों पर जरूर हंस रहे होंगे जिन्होंने जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कहने पर आतंकवाद के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया था। लेकिन बदले में इन तीन देशों को क्या मिला - अमेरिकी दंभ के प्रतीक वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला, भारत की संसद पर हमला और पाकिस्तान में वहां की सबसे लोकप्रिय नेता बेनजीर भुट्टो की हत्या। इस दौरान जो आम आदमी इन तीनों देशों में मारा गया, उसका कोई हिसाब नहीं है।
कुल निचोड़ यही है कि चाहे वह अमेरिका के बुश हों या फिर भारत के आडवाणी ऐसे तमाम मौकापरस्तों से जनता को बचकर रहने की जरूरत है जिनकी नीयत और नीति में जमीन आसमान का फर्क है।
टिप्पणियाँ
अब तो कुछ ऐसा लिखिए कि जनता जाग्रत हो , प्रेम और भाईचारे के साथ इन तथाकथित नेताओं को जवाब देना जरूरी है
सत्य से परिचित कराते रहने के लिए धन्यवाद