लता मंगेशकर तो 300 बार रोईं, आप कितनी बार ?
मुंबई पर हमले और निर्दोष लोगों के मारे जाने पर उन तीन दिनों में आवाज की मलिका लता मंगेशकर तीन सौ बार रोईं और उनको यह आघात उनकी आत्मा पर लगा। लता जी ने यह बात कहने के साथ ही यह भी कहा कि मुंबई को बचाने में शहीद हुए पुलिस वालों और एनएसजी कमांडो को वह शत-शत नमन करती हैं। पर, जिन लोगों ने उस घटना में मारे गए कुछ पुलिस वालों को शहीद मानने से इनकार कर दिया है और उनके खिलाफ यहां-वहां निंदा अभियान चला रखा है, उनसे मेरा सवाल है कि वह कितनी बार रोए?
छी, लानत है उन सब पर जो मुंबई में एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के चीफ हेमंत करकरे और अन्य पुलिस अफसरों की शहादत पर सवाल उठा रहे हैं। कुछ लोग तो इतने उत्तेजित हैं कि खुले आम यहां-वहां लिख रहे हैं कि इन लोगों की हत्या हुई है, इन्हें शहीद नहीं कहा जा सकता। जैसे शहादत का सर्टिफिकेट बांटने का काम भारत सरकार ने इन लोगों को ही दे दिया है। बतौर एटीएस चीफ हेमंत करकरे की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाली बीजेपी के विवादित नेता और गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी एक करोड़ रुपये लेकर हेमंत की विधवा को देने गए थे, शुक्र है उन्होंने इसे ठुकरा दिया। वरना उसके बाद तो बीजेपी वाले हेमंत को शहीदे आजम मान लेते। लेकिन फिलहाल वह उन्हें शहीद मान रहे हैं जो समझिए कि इस देश पर बड़ा उपकार है।
पर, उन सिरफिरों को आप क्या कहेंगे जो इन शहादतों और खासकर हेमंत की शहादत को नरकगामी बता रहे हैं। मुझे तो लगता है कि ऐसे लोगों की आत्मा मर चुकी है और वे अपने सोचने-समझने की शक्ति खो चुके हैं। सवाल भी कितने बेतुके उठाए जा रहे हैं कि आखिर उन लोगों को अस्पताल जाने की क्या जरूरत थी? कुछ ने लिखा है कि इतने बड़े अफसर को तो आपरेशन का संचालन करना चाहिए था न कि वहां जाना चाहिए था। हेमंत करकरे की टीम में अरुण जाधव नामक सिपाही था और अब वह बयान दे रहा है कि वह जिंदा लाश बनकर उस वाहन में घूमता रहा, जिसे लेकर आतंकवादी भागे थे। हैरानी है कि वह सिपाही बच गया और उसने एक बार भी आतंकवादियों को जवाब देने की कोशिश नहीं की।
जरा कल्पना कीजिए, मुंबई शहर में अचानक आतंकवादी आ धमकते हैं। चारों तरफ अफरातफरी, पुलिस के वायरलेस सेट पर मैसेज गूंज रहे हैं और इन क्षणों में भी कई पुलिस अफसर जान जोखिम में डालकर घरों से बाहर निकलते हैं तो इसका मतलब क्या है? क्या शहादत के लिए कोई और प्रमाण चाहिए? ऐसे हमलों और क्षणों में बड़े-बड़े कमांडरों की बुद्धि भी जवाब दे जाती है। ब्लॉग पर या टीवी पर बैठकर बातें छांटना अलग बात है और आतंकवादियों के बीच में जाकर गोली खाना और बात है।
क्या आप किसी की शहादत को सिर्फ आधार पर झुठलाना चाहते हैं कि वे पुलिस अफसर माले गांव ब्लास्ट की जांच से जुड़े थे और जिन्होंने लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह समेत कई लोगों को इन आरोपों में गिरफ्तार किया है। हालांकि ये तमाम लोग अभी दोषी करार नहीं दिए गए हैं। कुछ लोग चाहते हैं कि कोर्ट और पुलिस उनके अनुसार चले। जब इन बाबाओं या तथाकथित राष्ट्रभक्तों (?) की गिरफ्तारियां हो रही थीं तो भी इन पुलिस अफसरों के खिलाफ निंदा अभियान चल रहा था। अब जब ये लोग शहीद हो चुके हैं तो कमबख्त लोग उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं।
बहरहाल, मैं मुंबई की घटना में शहीद तमाम पुलिस कर्मियों और एनएसजी कमांडो को नमन करता हूं और इस शहादत पर सवाल उठाने वालों को लानत भेजता हूं।
...और वो राज ठाकरे
आखिरकार मुंबई के स्वयंभू ठेकेदार राज ठाकरे ने अपनी चुप्पी तोड़ दी है। उसने बयान दिया है कि ऐसी घटनाएं इसलिए हो रही हैं कि मुंबई में बाहर के लोग आ जाते हैं। उन पर कोई निगरानी नहीं है। उसने महाराष्ट्र के सीएम से मांग की है कि बाहर से आने वाले लोगों पर निगरानी रखी जाए। अब आप ही बताइए कि राज की भाषा क्या कहती है? अगर कोई इस भाषा की अभी निंदा करने लगे कि भाई बाहरी आदमी से आपका क्या आशय है तो उसे फौरन देशद्रोही करार दे दिया जाएगा। बहरहाल, अब आप खुद ही राज ठाकरे नामक व्यक्ति के बारे में जो शब्द बोलना चाहें, बोलिए। हम बीच में कहीं नहीं है। ध्यान रहे कि जिस तरह देश के बाकी हिस्सों में बांग्लादेशी घुसपैठिए समस्या बने हुए हैं, उसी तरह मुंबई में कुछ हिंदी भाषी प्रदेश के लोगों को भी समस्या माना जाता है।
शहीदों को नमन करते हुए सीमा सचदेव की यह कविता जरूर पढ़ें। यहां नीचे लिखे लिंक पर बस क्लिक कर दें। सीधे वहीं पहुंचेंगे। मेरी आवाज़: न जाने क्यों......?
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छी, लानत है उन सब पर जो मुंबई में एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के चीफ हेमंत करकरे और अन्य पुलिस अफसरों की शहादत पर सवाल उठा रहे हैं। कुछ लोग तो इतने उत्तेजित हैं कि खुले आम यहां-वहां लिख रहे हैं कि इन लोगों की हत्या हुई है, इन्हें शहीद नहीं कहा जा सकता। जैसे शहादत का सर्टिफिकेट बांटने का काम भारत सरकार ने इन लोगों को ही दे दिया है। बतौर एटीएस चीफ हेमंत करकरे की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाली बीजेपी के विवादित नेता और गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी एक करोड़ रुपये लेकर हेमंत की विधवा को देने गए थे, शुक्र है उन्होंने इसे ठुकरा दिया। वरना उसके बाद तो बीजेपी वाले हेमंत को शहीदे आजम मान लेते। लेकिन फिलहाल वह उन्हें शहीद मान रहे हैं जो समझिए कि इस देश पर बड़ा उपकार है।
पर, उन सिरफिरों को आप क्या कहेंगे जो इन शहादतों और खासकर हेमंत की शहादत को नरकगामी बता रहे हैं। मुझे तो लगता है कि ऐसे लोगों की आत्मा मर चुकी है और वे अपने सोचने-समझने की शक्ति खो चुके हैं। सवाल भी कितने बेतुके उठाए जा रहे हैं कि आखिर उन लोगों को अस्पताल जाने की क्या जरूरत थी? कुछ ने लिखा है कि इतने बड़े अफसर को तो आपरेशन का संचालन करना चाहिए था न कि वहां जाना चाहिए था। हेमंत करकरे की टीम में अरुण जाधव नामक सिपाही था और अब वह बयान दे रहा है कि वह जिंदा लाश बनकर उस वाहन में घूमता रहा, जिसे लेकर आतंकवादी भागे थे। हैरानी है कि वह सिपाही बच गया और उसने एक बार भी आतंकवादियों को जवाब देने की कोशिश नहीं की।
जरा कल्पना कीजिए, मुंबई शहर में अचानक आतंकवादी आ धमकते हैं। चारों तरफ अफरातफरी, पुलिस के वायरलेस सेट पर मैसेज गूंज रहे हैं और इन क्षणों में भी कई पुलिस अफसर जान जोखिम में डालकर घरों से बाहर निकलते हैं तो इसका मतलब क्या है? क्या शहादत के लिए कोई और प्रमाण चाहिए? ऐसे हमलों और क्षणों में बड़े-बड़े कमांडरों की बुद्धि भी जवाब दे जाती है। ब्लॉग पर या टीवी पर बैठकर बातें छांटना अलग बात है और आतंकवादियों के बीच में जाकर गोली खाना और बात है।
क्या आप किसी की शहादत को सिर्फ आधार पर झुठलाना चाहते हैं कि वे पुलिस अफसर माले गांव ब्लास्ट की जांच से जुड़े थे और जिन्होंने लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह समेत कई लोगों को इन आरोपों में गिरफ्तार किया है। हालांकि ये तमाम लोग अभी दोषी करार नहीं दिए गए हैं। कुछ लोग चाहते हैं कि कोर्ट और पुलिस उनके अनुसार चले। जब इन बाबाओं या तथाकथित राष्ट्रभक्तों (?) की गिरफ्तारियां हो रही थीं तो भी इन पुलिस अफसरों के खिलाफ निंदा अभियान चल रहा था। अब जब ये लोग शहीद हो चुके हैं तो कमबख्त लोग उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं।
बहरहाल, मैं मुंबई की घटना में शहीद तमाम पुलिस कर्मियों और एनएसजी कमांडो को नमन करता हूं और इस शहादत पर सवाल उठाने वालों को लानत भेजता हूं।
...और वो राज ठाकरे
आखिरकार मुंबई के स्वयंभू ठेकेदार राज ठाकरे ने अपनी चुप्पी तोड़ दी है। उसने बयान दिया है कि ऐसी घटनाएं इसलिए हो रही हैं कि मुंबई में बाहर के लोग आ जाते हैं। उन पर कोई निगरानी नहीं है। उसने महाराष्ट्र के सीएम से मांग की है कि बाहर से आने वाले लोगों पर निगरानी रखी जाए। अब आप ही बताइए कि राज की भाषा क्या कहती है? अगर कोई इस भाषा की अभी निंदा करने लगे कि भाई बाहरी आदमी से आपका क्या आशय है तो उसे फौरन देशद्रोही करार दे दिया जाएगा। बहरहाल, अब आप खुद ही राज ठाकरे नामक व्यक्ति के बारे में जो शब्द बोलना चाहें, बोलिए। हम बीच में कहीं नहीं है। ध्यान रहे कि जिस तरह देश के बाकी हिस्सों में बांग्लादेशी घुसपैठिए समस्या बने हुए हैं, उसी तरह मुंबई में कुछ हिंदी भाषी प्रदेश के लोगों को भी समस्या माना जाता है।
शहीदों को नमन करते हुए सीमा सचदेव की यह कविता जरूर पढ़ें। यहां नीचे लिखे लिंक पर बस क्लिक कर दें। सीधे वहीं पहुंचेंगे। मेरी आवाज़: न जाने क्यों......?
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टिप्पणियाँ
1. He wants to threatened to beat up the NSG, Army and Navy commando’s if they enter mumbai again because most of them are non maharati Manoos
2. He also has threatened voilence if the Sign Boards of NSG, Army and Navy are not written in Marathi.
3. He also expressed his anger towards the non marathi media for giving so much attention to NSG, Army and Navy commando’s. Where was the media when my Marathi Manoos gang was beating up innocent taxi drivers in mumbai ??
4. He has also threatened the residents of colaba for chanting “Bharat Mata Ki Jai” after the successful completion of NSG operations. According to him they should have chanted “Jai Maharastra”
5. He said that he has no problems with terrorists so long as they adapt to the Marathi culture and help him beat up innocent non marathis in Mumbai. In fact he welcomes terrorist action in hotels because it will deter outsiders from coming to mumbai
rest of it is "argumentative" --
UNITE against the cowards.
9 cowards are DEAD - 1 is alive.
Did you cry ?
सच मै मै नही रोया, लेकिन मेरी आत्मा मेरा दिल कितना रोया ,
बहुत से लोगों को हिन्दु आतंकवादियों के पकड़े जाने से कष्ट नहीं था( बहुतों को हुआ भी होगा) कष्ट था तो इस आतंकवाद को भगवा कहने से और जब जाँच पूरी क्या आधी भी नहीं हुई तो शोर मचाने से । यही कष्ट बहुतों को तब भी होता है जब आतंकवाद के साथ धर्मों का नाम जोड़ा जाता है और होना भी चाहिए । यदि चार ठिगने आतंकवादी पकड़े जाएँ और यह पता चले की वे आतंक अपनी लम्बाई के नाम पर कर रहे थे तो सब ठिगनों को ठिगने आतंकवाद के नाम पर कोसा नहीं जा सकता । कोसा जाता है तो गलत है । वैसे कितने आतंकवादियों के नार्को टेस्ट होते रहे हैं ? होते थे तो मीडिया इस विषय में अधिक बोल तो नहीं रहा था ।
किसी भी आतंकी को, चाहे वह किसी भी रंग का आतंक कर रहा हो पकड़ा जाना चाहिए व अपराध साबित होने पर सजा मिलनी चाहिए । अपराध के रंग नहीं होते, जब खून बहता है तो वह केवल लाल होता है । किसी भी शहीद को शहीद ही कहा जाएगा चाहे कल तक उसके काम करने के तरीके से बहुत से लोग सहमत न रहे हों । और अब समय आ गया है कि अपराधी को केवल अपराधी माना जाए, आलसी नेता को केवल आलस माना जाए, अकर्मण्यता को केवल अकर्मण्यता और इसमें तेरा मेरा नहीं होना चाहिए ।
घुघूती बासूती
घुघूती बासूती
भले ही कोई किसी पुलिस अफसर को इस लिहाज़ से शहीद न माने की वह लड़ते हुए नही
मारा गया बल्कि अचनचेत हमले में मारा गया ,लेकिन सच्च यह है की वो निकले तो आतंकवाद के विरोध हेतु ही थे और सरिता जी ने सही कहा ,मारा गया हर व्यक्ति शहीद है और उनका क्या जो विदेशी थे | अगर हम
इन्ही प्रश्नों पर बहस करने लगे तो इसका कोई अंत नही |
के आंसू किसी मासूम की जान से ज्यादा कीमती है |
लता जी तीन दिन में तीन सौ बार रोई जैसे उसकी गिनती
की हो |
घूघती बासूती जी ने बहुत बेबाक टिप्पणी की है। भई, बांग्लादेशियों की समस्या तो इस देश में है। अभी तो कांग्रेस की सरकार है, जिसे इस मुद्दे पर साफ्ट माना जाता है लेकिन जब बीजेपी की सरकार थी तो भी बांग्लादेशियों के खिलाफ कोई कारगर कार्रवाई नहीं हो सकी। दरअसल, यह सिस्टम की प्रॉब्लम है। सीमा पर पुलिस और सुरक्षा बल रिश्वत लेकर उन्हें भारत में आने देते हैं। भारत में जहां-तहां वे रिश्वत देकर राशन कार्ड और मतदाता पहचानपत्र बनवा लेते हैं। तो इस मामले में सिस्टम का दोष है।
सुरेश चंद्र गुप्ता जी ने तो सभी को शहीद का दर्जा देने की वकालत की है। उनकी बात जनता की अदालत में है। अगर जनता ऐसा ही सोचती है तो मुझे भी कोई ऐतराज नहीं है। सीमा सचदेव, आपने लिखा है कि लता जी के आंसू कोई कैसे गिन सका, दरअसल यह उन्हीं का बयान था और उसे नवभारत टाइम्स अखबार ने दिल्ली और मुंबई में प्रथम पृष्ठ पर छापा था। देश की इतनी बड़ी हस्ती जब यह बात कह रही है तो उन पर अविश्वास का कोई कारण नहीं है। वैसे भी यह बात उन्होंने प्रतीक रूप में कही थी जिसका मतलब था कि वह बहुत ज्यादा रोईं थीं।
क्या आपको नहीं लगता की हमारे नेता ही घिनौनी राजनीति के वशीभूत होकर हमें आपस में एक नहीं होने देते ..ऐसे में हमें चाहिए की हम वैचारिक दृढ़ता के साथ उसका मुकाबला करें .
जहाँ तक प्रश्न है कि शहीद कौन है और कौन नहीं , --- मेरा मानना है कि वो हर व्यक्ति शहीद है जो आतंक का विरोध करते हुए मारा गया ,चाहे वो स्वदेशी हों या विदेशी .
यह मैंने आपको नही कहा था बल्कि जिस
तरह से इस बात को बढाया गया मीडिया/प्रिंट मीडिया
में उसी पर कहा था | आंसुओ को कोई नही गिन सकता
इस बात में बहुत सच है की नश्तर तो अपने ही चुभोते है। अब्दाली, गजनवी, नादिर शाह इरान वगैरह से आते थे। हर तरह के ज़ुल्म ढहाए इन लुटेरो ने , पर आज वोह भी भूल चूके है और हम भी आगे बढ चुके है। हिन्दोस्तान का आज सबसे बड़ा झगडा अपने खून के भाई पाकिस्तान से है। और छोटे बच्चे बांगला देश से जिसकी उसने अपने ही हाथो से नाल काटी थी। कुछ पीड़ी पूर्व सभी हिंदू ही थे। यदि धर्म पिता है तो धरती जननी है। पिता का इतना गरूर और माँ की पूरी अवहेलना। यह बात दुखद है।
आज कोई इरान आफत के परकाले नही भेज रहा , खून के भाई ही भेज रहे है। पाकिस्तान पूरे नकारने की मानसिकता में है। स्वयं आंदोलित है और आस पास भी गडबडी फैलाता है । यह केहना ठीक नही की सभी पाकिस्तानी ऐसा सोचते है पर देश में वैमनस्य की भावना बलवती है। धर्म एक ऐसी घुट्टी है जिससे भोले के मन में ज़हर भरना अत्यन्त ही आसान है। ऐसी घुट्टी जो धर्म के नाम पर आदमी को आत्मघाती बना दे , यह खतरनाक है। आत्मघाती हत्यारा सौ बमों के बराबर है। पाकिस्तान भी आत्मघात के लिए उधृत है। इससे बचना ही ठीक है। आत्मघाती हमलावर से बच कर रहो यदि मदद मांगता है तो भंवर से निकलने के लिए मदद दो वरना ऐसे मुल्क से किनारा करो।