मेरा जूता है जापानी
यह सच है कि मुझे कविता या गजल लिखनी नहीं आती। हालांकि कॉलेज के दिनों में तथाकथित रूप से इस तरह का कुछ न कुछ लिखता रहा हूं। अभी जब एक इराकी पत्रकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति पर जूता फेंका तो बरबस ही यह तथाकथित कविता लिख मारी। इस कविता की पहली लाइन स्व. दुष्यंत कुमार की एक सुप्रसिद्ध गजल की एक लाइन – एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो – की नकल है। क्योंकि मेरा मानना है कि बुश जैसा इंसान (?) जिस तरह के सुरक्षा कवच में रहता है वहां तो कोई भी किसी तरह की तबियत लेकर पत्थर नहीं उछाल सकता। पत्थर समेत पकड़ा जाएगा। ऐसी जगहों पर तो बस जूते ही उछाले जा सकते हैं, क्योंकि उन्हें पैरों से निकालने में जरा भी देर नहीं लगती।
मुझे पता नहीं कि वह किसी अमेरिकी कंपनी का जूता था या फिर बगदाद के किसी मोची ने उसका निर्माण किया था लेकिन आज की तारीख में वह जूता इराकी लोगों के संघर्ष और स्वाभिमान को बताने के लिए काफी है। इतिहास में पत्रकार मुंतजर जैदी के जूते की कहानी दर्ज हो चुकी है। अब जरा कुछ क्षण मेरी कविता को भी झेल लें – (शायर लोग रहम करें, कृपया इसमें रदीफ काफिया न तलाशें) -
कब तक चलेगी झूठ की दुकान
-यूसुफ किरमानी
एक जूता तो तबियत से उछालो यारो
ताकतें कोई भी हों उनको तो बस मारो-मारो
बात पहुंचे वहां तक जहां पहुंचनी चाहिए
सच्चाई हर सूरत में सामने आनी चाहिए
तुम चलाओ तोप या बरसाओ गोलियां
हम बे-जबान जरूर बोलेंगे अपनी बोलियां
सब जानते हैं तुम्हारी चालाकी और मक्कारी
जनता जब तुमसे कहेगी बंद करो ये ऐय्यारी
हुक्मरां अंधे हों या फिर बहरे
कहां-किस-किस पर लगाएंगे पहरे
हौसला न तोड़ पाएंगे तुम्हारे पैरोकार
वक्त है, अब बाज भी आओ सरकार
कब तलक चलेगी तुम्हारे झूठ की दुकान
देखना खंडहर बन जाएंगे तुम्हारे ये मकान
उसने तो सिर्फ फेंका है आप पर जूता
क्या होता, गर वह उखाड़ फेंकता आपका खूंटा
नीचे लिखी पोस्ट और बुश पर इराकी पत्रकार द्वारा फेंके गए जूते का विडियो जरूर देखें। उससे मेरी इस कविता का संदर्भ समझने में आसानी रहेगी। धन्यवाद।
टिप्पणियाँ
आगे-आगे देखिये होता है क्या।
:)
कविता सुंदर लिखी है.
धन्यवाद
to maza doguna ho jata ,
shukriya,
Hum to bas yehi kahenge:
Joote ko rahne do Joota na uthao
Joota jo uth gaya to bhed khul jayega... theek Bush jaisa
Aise hi current topics par likhte rahiye.