गुंडों की पहचान
मुँह पर साफ़ा बाँधे गुंडों की पहचान कैसे होगी वे सिर्फ जेएनयू में नहीं हैं वे सिर्फ एएमयू में नहीं हैं वे सिर्फ जामिया में नहीं हैं वे कहाँ नहीं हैं वे अब वहां भी है, जहां कोई नहीं है वे तो बिजनौर,मेरठ से लेकर मंगलौर तक में है वे चैनलों में हैं वे अखबारों में हैं वे मंत्रालयों में हैं वे एनजीओ में हैं वे कारखानों में हैं, वे रक्षा ठिकानों तक में हैं वे फिल्मवालों में हैं, गोया हर गड़बड़झाले में हैं वे नाजी राष्ट्रवाद के हर निवाले और प्याले में हैं तो क्या कपड़ों से करोगे इनकी पहचान इनके सिरों पर गोल टोपी भी नहीं इनके चेहरे पर दाढ़ी तक नहीं इनकी आंखों में सूरमा तक नहीं इन्होंने ऊंचा पायजामा भी नहीं पहना लड़कियों के चेहरे पर हिजाब भी नहीं फिर कैसे होगी इनकी पहचान सुना है आतंकी राइफल लेकर चलते हैं पर इनके हाथों में सिर्फ कुल्हाड़ी है कुछ के हाथों में लोहे के रॉड भी हैं कुछ के जबान पर उत्तेजक नारे हैं क्या कुल्हाड़ी से कोई विचार मरता है जेएनयू एक विचार है एएमयू एक विचार है जामिया एक विचार है शाहीन बाग एक विचार है विचार कुल्...