मुशीरुल हसन की आवाज सुनो
दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में 30 अक्टूबर को दीक्षांत समारोह था। प्रो. अनंतमूर्ति मुख्य अतिथि थे और दीक्षांत भाषण भी उन्ही का था। लेकिन जिस भाषण पर सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है वह है वहां के वीसी मुशीरुल हसन का। मुशीरुल हसन के भाषण में जामिया का दर्द बाहर निकल आया है।
उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जामिया के छात्रों के लिए नौकरियां खत्म की जा रही हैं। उन्हें बाहर यह कहकर नौकरी देने से मना कर दिया जाता है कि जामिया यूनिवर्सिटी में तो आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है, इसलिए वहां के पढ़े छात्रों के लिए कोई नौकरी नहीं है। यहां पर प्राइवेट कंपनियों की कैब लाने से ड्राइवर यह कहकर मना कर देते हैं कि वहां तो आतंकवादी रहते हैं, इसलिए वे वहां नहीं जाएंगे।
सचमुच, यह बहुत भयावह हालात हैं। किसी देश की मशहूर यूनिवर्सिटी का वीसी अगर यह बात पूरे होशहवास में कह रहा है तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब इसी जामिया नगर इलाके के बटला हाउस में एक विवादित एनकाउंटर हुआ, जिसमें दो युवक और एक पुलिस वाला मारे गए। इसके बाद वहां राजनीतिक पार्टियां अपने ढंग से राजनीति करते रहे। एनकाउंटर में मारे गए युवक और उनके पकड़े गए साथी जामिया यूनिवर्सिटी के छात्र हैं। इनकी गिरफ्तारी पर मुशीरुल हसन ने सिर्फ यह कहा था कि अभी अदालत न उनको सजा नहीं सुनाई है इसलिए उनको आतंकवादी नहीं कहा जा सकता है और यूनिवर्सिटी उनकी कानूनी मदद करेगी।
लेकिन इसका नतीजा इस रूप में आएगा, यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा है। लेकिन यह बात एक जिम्मेदार यूनिवर्सिटी के वीसी ने कही है तो यकीन न कर पाने का सवाल ही नहीं पैदा होता। जामिया के प्रोफेशनल कोर्स काफी मशहूर हैं और कुछ कोर्स ऐसे हैं जो किसी और यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़ाए जाते। इनमें पढ़ रहे सारे छात्र न तो मुस्लिम हैं और न ही वे सिर्फ दिल्ली या यूपी के रहने वाले हैं। यहां पर सारे एडमिशन एंट्रेस के जरिए होते हैं। यूनिवर्सिटी का नाम और संविधान सिर्फ मुस्लिम चरित्र लिए हुए है, अन्यथा यहां मुस्लिम छात्रों का कोई कोटा नहीं है और न ही उन्हें इस आधार पर चयन में वरीयता मिलती है कि वे मुसलमान हैं। यहां से मॉस कम्युनिकेशन करके निकले छात्र (जो अब तमाम अखबारों व टीवी चैनलों में काम कर रहे हैं) अच्छी तरह जानते हैं कि उनके साथ कितने मुस्लिम लड़के पढ़ते थे।
अगर तमाम कंपनियां यहां से अभी-अभी पढ़कर निकले छात्रों से ऐसा बर्ताव कर रही हैं तो यह बेहद निदंनीय कृत्य है। देखना यह है कि देश के हुक्मरान और विपक्ष में बैठी सियासी पार्टियां इसे किस रूप में लेती हैं। खासकर बीजेपी और कांग्रेस की प्रतिक्रिया किस रूप में सामने आती है, यह अध्ययन का विषय होगा।
दरअसल, दिल्ली में हुए ब्लास्ट और बटला हाउस की घटना के बाद जो माहौल बना है, वह इस देश को खतरनाक स्थिति की ओर ले जा रहा है। अगर समाज का कोई तबका अपने आप को इस तरह अलग-थलग महसूस करना शुरू कर देगा तो इसकी परिणति खतरनाक हो सकती है। यह आग से खेलने की तरह है। जिस देश में उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच या बिहारी भैया और मराठी लोगों के बीच जंग लड़ी जा रही हो, वहां इस तरह की स्थिति पनपना और भी खतरनाक है। पंजाब में किसानों की समस्या से शुरू हुआ सिख आंदोलन कब खालिस्तानी आंदोलन में बदला, यह सब जानते हैं। उसके बाद पंजाब में जो हुआ वह इतिहास में दर्ज है। जम्मू कश्मीर में स्वायतत्ता की मांग के साथ शुरू हुआ आंदोलन आज कहां है, सब जानते हैं। असम में अलग बोडोलैंड की मांग में कब हूजी जैसा आतंकवादी संगठन घुसा और अल्फा को अब वह िजस तरह नियंत्रित कर रहा है, नतीजे सामने आ रहे हैं। 30 अक्टूबर को असम में हुए विस्फोट इसी बात की गवाही देते हैं।
समस्या बढ़ती जा रही है। किस चीज की चुभन कब कौन कहां महसूस करेगा, कोई नहीं जानता लेकिन आम भारतीय तो उसमें पिसेगा ही। इसलिए मुशीरुल हसन की आवाज को सुनने की जरूरत है और अगर सियासी पार्टियों के पास अक्ल है तो वे कुछ उस पर करें भी। अगर इन आवाजों को दबाया गया तो इस मुल्क का भगवान ही मालिक है।
टिप्पणियाँ
उन्होंने शबाना आजमी को डाक्टर बना दिया. अगर शबाना को यह सम्मान उनके समाज और देश को दिए गए किसी महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया है तो बहुत अच्छी बात है. लेकिन अगर उन्हें इस लिए सम्मानित किया गया कि कुछ दिन पहले उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को मुसलमानों के ख़िलाफ़ बताया था, तो मेरे जैसे आम समझ वाले हिन्दुस्तानी को दुःख होगा. अखबार ने लिखा है कि हसन साहब ने हुसैन को भी यह सम्मान दिया था, जिन्होनें हिंदू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाये थे. अगर यह सही है तो इस बात से हमें दुःख हुआ.
अब एक मुद्दा यह बना कि हम तो जामिया के दर्द को महसूस कर रहे हैं, पर क्या हसन साहब और जामिया हमारे दर्द को महसूस करेंगे जो उन्होंने शबाना और हुसैन को इस तरह सम्मानित करके हमें दिया है? दूसरी बात, हिन्दुओं को भी दुःख होता है जब उनके परिवार, रिश्तेदारी और मित्रों में कोई बम धमाकों में जान गंवाता है. क्या हसन साहब और जामिया हिन्दुओं के इस दर्द को महसूस करते हैं?
दर्द तो सब को होता है. हम दूसरों से कहें कि हमारा दर्द महसूस करो पर हम ख़ुद दूसरों का दर्द महसूस न करें तो बात कैसे बनेगी? आइये सब एक दूसरे का दर्द महसूस करें और उसे दूर करने के उपाय खोजें और उन पर अमल करें.
हालात सिर्फ इतने ही खराब नहीं है, इससे भी ज्यादा खराब हैं। बिगड़ना आसान है लेकिन सुधारना बहुत कठिन। जरूरत मुशीरुल हसन साहब की आवाज सुनने की नहीं है, वे तो अब गैर भरोसेमंद हो चुके हैं। अब मुशीरुल हसन साहब के हाथों से तो ये हालात सुधरने से रहे। फिलहाल तो इनके चलते होने का इन्तजार कीजिये और फिर दुआ मनाईये कि कोई समझदार आदमी यहां बैठे।
आप जो पंजाब, काश्मीर, असम और और अभी बिहार-मराठी के जिन खेलों की बात कर रहे हैं वो सभी कांग्रेस (CON-gress) के खेल हैं। इसी कांग्रेस (CON-gress) का का सबसे बड़ा खेल है मुसलमानों को हमदर्द होने का दिखावा करने का। इससे जो देश की बड़ी आबादी वही महसूस कर रही है जो कभी पंजाबियों, काश्मीरियों या असमियों ने किया था। कभी इसके होने वाले नतीजों पर भी गौर फरमाईयेगा।
धन्यवाद
शिवसेना मालेगांव बम विस्फोट मामले में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को कानूनी सहायता देने को तैयार है।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी राजधानी के जामिया नगर स्थित बटला हाऊस पुलिस मुठभेड में गिरफ्तार आतंकवादियों को जामिया मिलिया विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. मुशीरल हसन ने कानूनी सहायता दिए जाने की घोषणा की थी।
क्या कहना भाई लोगो इस खबर पर...
खैर
चर्चा यहाँ शबाना आजमी की भी हुई और मकबूल फ़िदा हुसैन की भी.
शबाना ने अगर अपने अनुभव की चर्चा की तो इसमे क्या बुरा किया ऐसा ही कुछ अनुभव बहुत लोगों का रहा है अगर कुछ लोग इसे स्वीकार नही कर सकते तो उनके लिए कुछ नही कहा जा सकता है.
उन साहब से क्षमा चाहेंगे इस कड़ी प्रतिक्रिया के लिए पर मकबूल फ़िदा हुसैन से आहत होने वालों ने क्या वो पेंटिंग्स देखीं हैं?
क्या उन्होंने खजुराहो को समझा है कभी? क्या ऐसे लोगों को जिन्हें कला और साहित्य की समझ नही है उन्हें उस पर टिप्पणी करनी चाहिए?
हम फ़िर क्षमा चाहेंगे पर जिन्हें हिंदू ग्रंथों की जानकारी कम है उन्हें उसे पढ़ना चाहिए किसी मकबूल फ़िदा हुसैन पर टिप्पणी करने से पहले. नही पढ़ सकते तो कभी खट्टर काका जैसी किताबों से ही जानकारी ले लें पर जिस चीज को नही समझते उसके बारे में बोलने से पहले जान लें