तेरा जाना

रुपया-पैसा, बड़ा कारोबार होने के बावजूद वह मौत से हार गए। मौत को वह चुनौती नहीं दे सके। हालांकि उन्होंने समय-समय पर न जाने कितनों को चुनौती दी और हर लड़ाई को जीतते रहे लेकिन मौत से हुई इस लड़ाई में उन्हें पराजित होना पड़ा। 3 जनवरी की दोपहर जब मैं जीटी रोड पर ड्राइव कर रहा था और मेरा मोबाइल एसएमएस झेलते-झेलते शायद गुस्से में गरम हो चुका था, तभी एक जानी-पहचानी आवाज ने ध्यान सड़क से कहीं और भटका दिया। उन्हीं की मौत की खबर थी।

हतप्रभ...कहां पुष्टि हो, क्या किया जाए। एक मित्र को रिंग किया तो उन्होंने पुष्टि की। तमाम यादें,मुलाकातें एक-एक कर याद आने लगीं। उनका सिगरेट के हर कश के साथ कुछ कहने का बेलौस अंदाज, फिर फैसला लेने का ऐलान होंठ काटकर ऐसे बयान करना मानों इसे बदल पाना मुश्किल होगा।...कुछ गलत फैसले, कुछ सही फैसले...

पता नहीं उनकी नेतृत्व करने की क्षमता से मैं इस कदर क्यों प्रभावित था कि मित्र लोग इसे चाटुकारिता तक मानते रहे। हालांकि उनसे मुझे निजी लाभ या अन्य किसी तरह का लाभ कभी नहीं मिला। लेकिन जिस तरह कंपनी की बैठकों में वह मेरी ईमानदारी का प्रचार करते तो मुझे लगता कि इतना बड़ा पूंजीपति होने के बावजूद मुझ जैसे मामूली आदमी का बखान कर रहा है तो यह जरूर लीक से जरा हटकर है।

...और वह वाकई था। वह एक जाति विशेष से संबंधित होने के बावजूद जिस तरह की सेक्युलर बातें करते और गेरुआवस्त्र धारियों की धज्जियां उड़ाया करते, मुझे वह कई बार चौंकाता था। तमाम सेक्युलर मित्रों को यह भी उसका बिजनेस करने का अंदाज लगता। वह कहते, वह यह सब तुम्हारे जैसे बेवकूफ राष्ट्रभक्तों को प्रभावित करने के लिए करता है। यह भी एक तरह की कॉरपोरेट चाल है प्यारे। उसका बिजनेस तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से आगे बढ़ रहा है। तब भी मैं यही सोचता कि मेरे जैसे मामूली आदमी को यह शख्स प्रभावित करके क्या हासिल करेगा।

...पर उनसे प्रभावित लोगों की बड़ी जमात मैं उस दिन अपनी आंखों से देखकर आय़ा। उनकी उठावनी में वह तमाम चेहरे थे जो बड़े नाम नहीं थे लेकिन उस पूंजीपति की उठावनी में वह मायूस चेहरे लिए हुए जरूर दिखे। ऐसे लोग उनकी किसी न किसी खूबी को बताते नजर आए। फिर मुझे वह सारी बातें...मुलाकातें एक-एक याद आने लगीं। उन्हीं के द्वारा सिगरेट के छोड़े गए धुएं में मैं उनका विचारों में खोया चेहरा देखता रहा।...

आप इसे कुछ भी मानें
शायद आपने इसे शुरु से लेकर अंत तक पढ़ा होगा। मैं खुद को साहित्यकार होने का मुगालता नहीं पाले हुए हूं। आप पता नहीं इसे किस श्रेणी में रखना चाहेंगे...कहानी, लेख, आपबीती, श्रद्धांजलि...जो भी कहना चाहें। एक बिजनेस ग्रुप का संचालन करने वाले शख्स का हाल ही में निधन हुआ है। मैं कहीं न कहीं उनसे जुड़ाव महसूस करता था। इसलिए उन्हीं को याद करते हुए कुछ लिख डाला। इधर काफी अर्से से तमाम उलझनों में घिरा रहने की वजह से अपने इस ब्लॉग पर कुछ लिख भी नहीं पाया था। अब इसी बहाने से फिर शुरुआत की है।

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