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क्या एनपीआर ही एनआरसी है, क्या शक्तिमान ही गंगाधर है

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एनपीआर जो है वो एनआरसी से ख़तरनाक कैसे है... आज हमने काफ़ी वक्त एनपीआर को समझने में लगाया, जिसके बारे में सरकार ने कल विस्तार से जानकारी दी थी... जब आप एनपीआर को पढ़ना शुरू करेंगे तो आपको सब कुछ अच्छा और आसान लगेगा लेकिन अगर आप उस लाइन को भी सरसरी तौर पर पढ़ कर आगे बढ़ गए तो समझिए आप सरकार के इरादे नहीं भाँप पाए... केंद्र सरकार ने कहा कि आपकी सारी जानकारियों का सत्यापन एक रजिस्ट्रार स्तर का कोई अधिकारी करेगा। उसकी पुष्टि के बाद आप का नाम और नागरिकता एक रजिस्टर में दर्ज हो जाएगा। इस एनपीआर का यही नियम सबसे ख़तरनाक है। हमने असम में देखा कि 19 लाख लोगों के नाम नागरिकता कानून से बाहर कर दिए गए। ये 19 लाख वो लोग हैं जिन्होंने दस्तावेज़ तो जमा कराये लेकिन उनमें कोई न कोई कमी निकालकर उनकी एंट्री को ख़ारिज करके उन्हें विदेशी बता दिया गया। इनमें 13 लाख हिंदू और 6 लाख मुसलमान हैं। इसी वजह से असम के लोग एनआरसी और एनपीआर का विरोध कर रहे हैं।  केंद्र सरकार #एनपीआर में बॉयोमीट्रिक (आपकी ऊँगली और हथेली के नि़शान) लेगी या नहीं लेगी, इसे साफ़ नहीं कर रही है। कभी कहती ...

सुन ऐ हुक्मरां, हमारे कपड़ों को न देख, हमारे जेहाद-ए-अकबर को देख

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किनारे पर खड़े लोगों, बस इतना ध्यान में रखना समंदर ज़िद पे आयेगा, तो सबके घर डुबो देगा। -हुसैन हैदरी, शायर, फ़िल्म गीतकार kinaare par khade logon, bas itna dhyaan mein rakhna samandar zidd pe aayega, to sabke ghar dubo dega -Hussain Haidry, Poet, Film Lyrist वह लोग जो अभी भी स्टूडेंट्स के शांतिपूर्ण आंदोलन को दूर से नाप तौल रहे हैं, क्या उन्होंने थोड़ी देर इस पर विचार किया कि आंदोलन जेएनयू में भी हुआ और वहाँ के बच्चे भी सड़कों पर आये लेकिन सिर्फ़ जामिया मिल्लिया इस्लामिया और एएमयू में ही पुलिस क्यों हॉस्टल में घुसी और क्यों एक ही पैटर्न के तहत स्टूडेंट्स को पीटा गया? जामिया और एएमयू के अंदर पुलिस के घुसने का समय शाम का था। एएमयू में तो स्टूडेंट्स न तो सड़कों पर आये और न ही कोई पत्थरबाज़ी की। दिल्ली और यूपी पुलिस में पढ़े लिखे युवक भरती होते हैं और वे जानते हैं कि यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ने वाले बच्चे संजीदा होते हैं। बाहर नारेबाज़ी चल रही थी लेकिन ये बच्चे लाइब्रेरी में पढ़ रहे थे। इसके बावजूद दिल्ली पुलिस और अलीगढ़ पुलिस अंदर घुसी और उन्हे...

अयोध्या को लेकर फिक्रमंद नहीं हैं मुसलमान...

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मेरा यह लेख आज 6 दिसंबर 2019 को नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में प्रकाशित हो चुका है। यहां  हिंदीवाणी के पाठकों के लिए पेश है...इसे एनबीटी की आनलाइन साइट पर भी पढ़ सकते हैं। उसका लिंक इस लेख के अंत में मिलेगा... अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बावजूद बिछी राजनीतिक बिसात सिमटने का नाम नहीं ले रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि 99 फीसदी मुसलमान चाहते हैं कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जाए। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट बनाना था जो अयोध्या में राम मंदिर का काम संभालेगी। 25 दिन से ज्यादा हो चुका है लेकिन ट्रस्ट नहीं बना। इस ट्रस्ट में जगह पाने के लिए तमाम साधु संतों के अखाड़े और कई स्वयंभू बाबा अलग तरह की राजनीति में व्यस्त हैं। यह भी ठीक है कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में तटस्थ चल रहे लोगों के गले भी नहीं उतरा और उसके तमाम विरोधाभास को लेकर बहस अभी भी जारी है। लेकिन यहां जेरे बहस 99 फीसदी मुसलमानों के नाम पर दाय...